शिक्षण योजना कैसे बनायें? देखें कक्षा शिक्षण हेतु कुछ शिक्षण योजनाएँ नमूने के रूप में
भाषा विकास के तरीके एवं सम्बन्धित गतिविधियां
शिक्षक प्रतिवर्ष माह अप्रैल में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों का आरग्भिक परीक्षण करके उनके अधिगम सम्प्रापित स्तर जानने की प्रक्रिया करेंगे जो बच्चे आरम्भिक परीक्षण में कक्षा 1-2 के लर्निग आउटकम के स्तर पर होंगे उन्हें 50 कार्य दिवसीय फाउण्डेशन लर्निंग शिविर में भाषा/ गणितीय गतिविधियां सम्पादित करके मुख्यधारा में लाना होगा तत्पश्चात् कक्षा 3-4 और 5 की भाषा / गणितीय दक्षताओं के विकास की गतिविधियों सम्पादित करना उचित होगा।
भाषा उपयोग से ही सीखी जाती है। इसलिए भाषा शिक्षण में सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने के कारण का उपयोग करना चाहिए।
शिक्षक के रूप में हमारा कार्य है बच्चों में भाषा के विविध रूपों में उपयोग का कारण उत्पन्न करना।
भाषा में अर्थ का निर्माण सन्दर्भ के सहारे होता है। हम अपने मन में कही अथवा सुनी गई बात के अर्थ का निर्माण करते हैं, फिर उसकी अभिव्यक्ति होती है मन में शब्दों के माध्यम से छवि बनाना भाषा सीखने के लिए सबसे आवश्यक है। इस स्तर पर भाषा शिक्षण में निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
कक्षा में व्यक्तिगत और समूह कार्य का उचित संतुलन बनाये रखना। कक्षा में बातचीत को प्रोत्साहित करने वाली गतिविधियों का बहुलता से समावेश किया जाना।
भाषा सीखने-सिखाने में नियोजित रूप से परिवेशीय संसाधनों का उपयोग किया जाना।
पाठ्यपुस्तक पर कार्य के दौरान क्यू आर. (QR) कोड, दीक्षा पोर्टल, पुस्तकालय का नियमित प्रयोग किया जाना।
भाषा शिक्षण में याद्दाश्त के उपयोग के मौके देना एक बहुत ही कारगर तरीका है इसका बराबर उपयोग किया जाना। कक्षा का वातावरण प्रिंट रिच हो। बच्चों में प्रिंट सामग्री के प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए
लर्निग आउटकम को लाइब्रेरी से जोड़ा जाना। बच्चों के बीच भाषा सम्बंधी प्रतियोगिताओं जैसे- वाद-विवाद, भाषण, कवि दरबार, कहानी
सुनाओ, पोस्टर बनाओ, कहानी, चेतावनी बनाओ जैसे प्रतियोगिताएं नियमित अन्तराल पर कराते हुए प्रोत्साहन देना। • बच्चों के आसपास परिवेश में हो रही घटनाओं समस्याओं, चिंताओं से अवगत होने के लिए प्रोजेक्ट कार्य रूप में ऐसे विषय दिए जाना जिनमें बच्चे सम्बंधित स्थान, वस्तु अथवा पात्र को देख एवं सुन कर उससे जानकारी प्राप्त कर पाएँ और कक्षा में प्रस्तुत कर पाएँ। बच्चों से स्थानीय लोककथाओं, लोकगीत, मुहावरों, परिवेशीय कहावतों आदि का संकलन कराना।
ध्यान रहे एक अच्छा भाषा शिक्षक वह होता है जो कक्षाकीय परिस्थितियों के अनुसार परिवेश में मौजूद वस्तुओं, स्थिति- परिस्थिति को भाषा सीखने-सिखाने का মন बना लेता है।
कौशल विकास की गतिविधियाँ
हिन्दी भाषा के लर्निंग आउटकम को हासिल करने के लिए उच्च मानसिक कौशल विकास बन्धी गतिविधियों के कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं। इनको पढ़, समझकर अभ्यास कर ले। इनकी उपयोग शिक्षण में का प्रयास करें। कोशिश यह हो कि इन गतिविधियों में से एक-दो गतिविधियाँ यों के साथ रोज की जायें। इन गतिविधियों के साथ कक्षा शिक्षण की पाक्षिक योजना बनाते समय मिन्नांकित बिन्दुओं पर ध्यान दें
गतिविधियों को बनाते एवं करते समय देखें कि- कौन सी गतिविधि किस लर्निंग आउटकम के लिए है। फिर पाठ्यपुस्तक से जोड़कर देखें कि- किस गतिविधि का उपयोग किस पाठ के शिक्षण के
साथ किया जा सकता है?
* इसके बाद इन गतिविधियों को दृष्टि में रखकर लर्निंग आउटकम को प्राप्त करने के लिए शिक्षण योजना बनायें कोशिश हो कि हर दिन एक मौखिक और एक लिखित गतिविधि अवश्य हो।
इनमें से कई गतिविधियाँ ऐसी हैं जिनको बार-बार बदलकर नए रूप में कराया जाना अथवा दोहराया जाना ठीक होगा। इन सभी गतिविधियों का उपयोग करने से पहले स्वयं समझना और करके देखना जरूरी है। इसके लिए साथी शिक्षकों के साथ चर्चा और अभ्यास करना महत्वपूर्ण होगा।
सुनना-बोलना
1. आसपास के परिवेश का वर्णन अकेले अथवा दो या चार के समूह में। 2 किसी देखी गई वस्तु के बारे में वर्णन करना – अकेले, दो, चार अथवा पूरी कक्षा के सम्मुख ।
3. किसी देखी गई और समझी गई प्रक्रिया का वर्णन करना अकेले, छोटे-छोटे समूह में अथवा पूरी कक्षा के सम्मुख ।
4. दिए गए प्रकरण या विषय के बारे में वर्णन करना - अकेले, छोटे समूह में या पूरी कक्षा के सम्मुख।
5. चित्र का वर्णन - अकेले या समूह में।
6. किसी व्यक्ति या चरित्र का वर्णन - अकेले, छोटे समूह या पूरी कक्षा के सम्मुख ।
7. किसी पाठ के बारे में चारों प्रकार के प्रश्नों (ज्ञानात्मक, बोधात्मक, कौशलात्मकएवं अनुप्रयोगात्मको के प्रश्नोत्तरों पर आधारित चर्चा ।
8. पढ़े गए पाठ का वर्णन - अकेले, पीयर समूह, छोटा समूह या पूरी कक्षा के सम्मुख। 9. किसी घटना का वर्णन अकेले. दो लोग, चार लोग।
10, दो शब्दों को मिलाकर वाक्य - अकेले या समूह में।
11. संज्ञा (बिस्तर साईकिल, किला, लालटेन, कलम) और विशेषण (उजला, काला, गर्म, सकपकाया और डरावना) को मिलाकर पाँच वाक्य - समूह में।
12. वाक्यों की श्रृंखला पूरा करना।
एक छोटे समूह या पूरी कक्षा।
लेकिन ... था। तो वह....
13. वाक्य का विस्तार - अकेले पीयर ग्रुप, छोटा समूह अथवा पूरी कक्षा
जैसे- यह किताब है।
- यह भाषा की किताब है।
- यह मेरी भाषा की किताब है।
- यह मेरी भाषा की सुन्दर किताब है।
14. दो वस्तुओं के बीच बातचीत करना - बल्ला और गेंद, स्लेट और पेंसिल, पेड और पक्षी, चक्र और मोटर साइकिल, हल और कौवा, बिजली का खंभा और पेड़ - दो के समूह में।
15. कारण की तलाश - जैसे मैं वहाँ समय पर नहीं पहुँच सका क्योंकि तर्कपूर्ण वाक्यों को लिखकर (पूर्ण करना)
16. अपना पसंदीदा भोजन, स्थान एवं किसी खेले को लें इसे निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर वर्णित करें
आप क्या देखते हैं, आकार, रंग, परिवर्तन,
आप क्या सुनते हैं- किसी की आवाज, कुछ होने की, कुछ करने, किसी दूसरे के साथ बात करने या किसी वस्तु का उपयोग करने वाले लोगों की।
आपके चेहरे पर आपके हाथ का तापमान या स्पर्श कैसा लगता है ?
किस प्रकार की गंध, चमक या और कुछ और दिख रहा है?
ना-लिखना
1. निर्देश समझकर कार्य करना - लिखित निर्देश दें कि पढ़कर कार्य करना है पाठ्यपुस्तक में दिए गए विविध निर्देशों को पढ़कर उसका मतलब बताने के विविध अभ्यास कराये।
2. निर्देशों को क्रम देनाः दो कार्यों के लिए मिले-जुले निर्देश दिए गए हैं, उनको अलग करना और क्रम देना। जैसे- चाय बनाने की प्रक्रिया और कपड़ा धोने की प्रक्रिया।
3. निर्देश बनानाः किसी कार्य के बारे में ऐसे निर्देश बनाना कि उसे पढ़कर कोई उस कार्य को कर पाए।
4. कोई वस्तु, जगह, घटना या आयोजन को चुनें- उसके बारे में प्रश्नों (चारों प्रकार के ज्ञानात्मक, बोधात्मक, कौशलात्मक अनुप्रयोगात्मक) की सूची बनाना और एक दूसरे से पूछना फिर उस पर चर्चा करना
किसका सवाल बेहतर और क्यों?
किसका जवाब बेहतर और क्यों? कौनसा सवाल सबसे ज्यादा सोचने को मजबूर करता है?
जवाब देने की दृष्टि से कौन से प्रश्न सबसे मजेदार हैं और क्यों? कौन सा मुश्किल या उबाऊ है? क्यों?
5. प्रक्रिया का क्रमिक लिखित वर्णन करना।
6. किसी वस्तु को असामान्य स्थान पर रखें (अपनी कल्पना में) जैसे
एक पेड़ के शीर्ष पर एक चम्मच
छत के ऊपर एक साबुन
कक्षा के अंदर एक बकरी
चीनी रखे जाने वाले डिब्बे में पेंसिल
बिस्तर पर एक बाल्टी
फिर इस पर नीचे दिए गए कार्य कराना
चर्चा करें - इसके पीछे क्या संभावित कारण हो सकते हैं?
कल्पना के आधार पर चित्र बनाना।
इसके आधार पर कहानी या कविता लिखना।
संवाद लिखना कि उनके बीच में क्या बातचीत हो रही होगी?
7. समस्याओं को हल करना एक समस्या का उदाहरण दें- किसी घर की टाइल वाली छत पर दो टाईलों के बीच में एक गेंद फंस गई है इसे कैसे पायेंगे जबकि उस पर चढना सुरक्षित नहीं है? फिर चर्चा करें कि इसके हल के बारे में कैसे सोचा? बच्चे जो बताएँ उसे दोहराते रहें। फिर इसमें से चुनकर कोई एक विधि उनके समक्ष रखें और पूछे कि- इसका उपयोग करके और किस समस्या का हल निकाल सकते हो? इसी तरह विभिन्न विधियों एवं समस्याओं पर चर्चा करें कि वे इसे हल करने के लिए किस तरीके का उपयोग करेंगे।
8. किसी बच्चे से किसी विशेष प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए कहें, फिर पूछे यह कैसे किया जाएगा, जबकि इसमें से महत्वपूर्ण आइटम गायब हो गया है, जैसे- रोटी बनानी है पर तवा नहीं है?
आटा गूंथना है पर उसके लिए कोई बर्तन नहीं हैं?
निबन्ध लिखना है पर पेन या पेंसिल नहीं है?
9. आत्म विश्लेषणः डर, उत्साह, खुशी निराशा आदि मानवीय भावनाओं के बारे में किए गए अनुभवों का वर्णन करना
हम उन्हें क्यों महसूस करते हैं?
किन स्थितियों में ये उचित नहीं हैं?
हमें उनके बारे में क्या करना चाहिए?
उनके साथ कैसे निपटें?
यह कब उचित हैं और कब नहीं है?
10. किसी दिए गए उत्तर के लिए प्रश्न पूछना
जैसे
. उत्तर है 'हाँ' तो सवाल क्या होंगे?
नही के लिए क्या सवाल होंगे?
'कभी नहीं के लिए
शायद' के लिए
'कभी-कभी के लिए
उत्तर है किसी शहर का नाम तो क्या सवाल होंगे?
. उत्तर है कक्षा के किसी बच्चे का नाम तो सवाल क्या होंगे?
जानकारी पाने के लिए सवालः किस तरह की जानकारी प्राप्त करने के लिए किस तरह के प्रश्न पूछने चाहिएं। इससे सम्बन्धित विविध प्रकार के अभ्यास कराना।
जैसे- नाम शब्द का इस्तेमाल किए बिना और किसी का नाम कैसे पता करेंगे? अपने इलाके या गाँव के बारे में जानकारी एकत्रित करना और दस्तावेज बनानाः
12. आसपास किस तरह के पेड़-पौधे, जानवर, फसलें, घर, विविध प्रकार के कामों में उपयोग किए जाने वाले औजार, विविध प्रकार के वस्त्र उपलब्ध हैं फिर इन पर चर्चा करें, कौन सा सबसे कम पाया जाता है और कौन सा सबसे अधिक क्यो? यदि इसमें दो इलाकों के बीच कोई अंतर है, तो वह अंतर क्यों है?
अपने क्षेत्र में किए गए विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए लागत की दरें खोजें। फिर चर्चा करें उनके बीच एक अंतर क्यों है?
13. मैन्युअल बनाना और दूसरों को प्रशिक्षित करना: चाय बनाना, पत्थर के टुकड़ों से खेलना, कपड़े धोना, खिचड़ी पकाना, पतंग उड़ाना आदि के करने की प्रक्रिया के पहले बच्चों से सूचीबद्ध करने के लिए कहें फिर पूछे कि वे क्या इसमें बदलाव करेंगे अगर यही काम दूसरों को सिखाना है? फिर दोबारा लिखने के लिए कहें और प्रस्तुत करायें।
14. नोट लेना या अपने अवलोकनों का लिखित वर्णन करना: किसी अवलोकन के बारे में लिए गए नोट्स (आप ऐसा संक्षिप्त नोट स्वयं बना लें) को बच्चों को दिखाएँ। फिर उनसे चर्चा करें कि अपने किसी देखे हुए स्थान के बारे में लिखित वर्णन कैसे लिखेंगे, जैसे किसी दुकान पर साईकिल मरम्मत, फल की दुकान पर किया जाने वाला मोल-भाव, किसी शादी में खाना पकाना, फसल की कटाई और मड़ाई। फिर उनसे वर्णन लिखवाना।
15. किसी को मनानाः किसी को कुछ करने के लिए (मौखिक रूप से) मनाने के लिए प्रयास करना (और दूसरा व्यक्ति मना कर देता है, विरोध करता है)
16. योजना बनाना और उसका.पालन करना: किसी कार्य की योजना बनाना अपनी बनाई गई योजना का पालन करना, रिकॉर्ड रखना, और जो किया गया था उसे चिड़ित करना।
जैसे - यदि आपको किसी ऐसे स्थान पर पहुंचना है जहाँ साइकिल से 10 मिनट में पहुँचा जा सकता है परन्तु आपके पास साइकिल नहीं है?
स्कूल आने के बाद आप क्या करेंगे? कितने समय तक?
17. पाठ्यपुस्तकों के साथ पढ़ना और लिखनाः किसी पाठ को पढ़ाए जाने से पहले बच्चों को कुछ रोचक सवाल दें। वे समूह में पाठ को पढ़कर इन सवालों का उत्तर लिखें। इसी तरह वे किसी पाठ को पढ़कर कुछ सवाल बनाएँ। फिर उनका उत्तर लिखने के लिए दुस न समूहों को दें। लिखे गए उत्तरों को समूह में अदल-बदल कर उत्तर चेक करने और का पर चर्चा का कार्य कराएँ।
18. वाक्य संयोजन- 20 से 25 शब्दों की चिट बना लें। एक वाक्य बोलें। फिर एक बच्चा उसका से एक चिट उठाए और उस चिट में लिखे गए शब्द को सम्मिलित करते हुए वाक्य बोले शर्त यह है कि बच्चे द्वारा बोला गया वाक्य पहले वाक्य से जुड़ा हो।
क्रमशः बारी-बारी बच्चा चिट उठाए और वाक्य बोले। जब पूरी कक्षा के साथ ऐसा हो जाये तब बोले गए सभी वाक्यों को याद करके लिखने को कहें। लिखने के बाद उसे फिर से और अच्छा बनाने और सुधारने का अभ्यास कराएँ।
- वस्तु वर्गीकरण- विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के कुछ नाम लिखें। बच्चों से कहें कि वे इनका विविध प्रकार की श्रेणियों में बाँटें। किस प्रकार की श्रेणी में कौन सी वस्तु आएगी। इसी प्रकार पाँच शब्दों में से जो समूह से मिलता-जुलता न हो उसे अलग करना।
मेज़, कुर्सी, बेंच, स्टूल, अलमारी गोभी, टमाटर, आलू, बैंगन, तवा अपना पसंदीदा भोजन, स्थान एवं किसी खेल को लें। इसे निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर करें- ससे माना
आप क्या देखते हैं, आकार, रंग, परिवर्तन,
आप क्या सुनते हैं- किसी की आवाज, कुछ होने की, कुछ करने, किसी दूसरे का साथ बात करने या किसी वस्तु का उपयोग करने वाले लोगों की। आपके चेहरे पर आपके हाथ का तापमान या स्पर्श कैसा लगता है ? किस प्रकार की गंध, चमक या और कुछ और दिख रहा है?
गणित सीखने-सिखाने का सही क्रम क्या होना चाहिए?
बच्चों के पास स्कूल आने से पहले गणित से सम्बन्धित अनेक अनुभव पास होते हैं बच्चों के तमाम खेल ऐसे जिनमें वे सैंकड़े से लेकर हजार तक का हिसाब रखते हैं। वे अपने खेलों में चीजों का बराबर बँटवारा कर लेते हैं।
अपनी चीजों का हिसाब रखते हैं। छोटा-बड़ा, कम-ज्यादा, आगे-पीछे, उपर-नीचे, समूह बनाना, तुलना करना, गणना करना, मुद्रा की पहचान, दूरी का अनुमान, घटना-बढ़ना जैसी तमाम अवधारणाओं से बच्चे परिचित होते हैं।
हम बच्चों को प्रतीक ही सिखाते हैं। उनके अनुभवों को प्रतीकों से जोड़ना महत्वपूर्ण है।
गणित मूर्त और अमूर्त से जुड़ने और जूझने का प्रयास है अवधारणाएँ अमूर्त होती हैं चाहे विषय कोई भी हो।
गणितीय अमूर्तता को मूर्त, ठोस चीजों की मदद से सरल बनाया जा सकता है। जब मूर्त को अमूर्त से जोड़ा जाता है तो अमूर्त का अर्थ स्पष्ट हो जाता है।
प्रस्तुतीकरण के तरीकों से भी कई बार गणित अमूर्त प्रतीत होने लगता है।
शुरुआती दिनों में गणित सीखने में ठोस वस्तुओं की भूमिका अहम होती है इस उम्र में बच्चे स्वाभाविक तौर पर तरह-तरह की चीजों से खेलते हैं, उन्हें जमाते. बिगाड़ते और फिर से जमाते हैं।
इस प्रक्रिया में उनकी सारी इंद्रियों सचेत होती हैं, और वे उनके सहारे मात्राओं को टटोलते व समझते रहते हैं - यहीं से शुरू होती है गणित सीखने की प्रक्रिया।
गणित सीखने का एक निश्चित क्रम है। पहले ठोस वस्तुओं के साथ काम, चित्रों के साथ काम और बाद में संकोश तथा प्रतीकों के साथ काम करना आवश्यक है।
गणित में जोड़ शिक्षण के तरीके और गतिविधियां, देखें गतिविधियों के माध्यम से
गणित सीखने-सिखाने के परम्परागत तरीकों में गणित सीखने की प्रक्रिया की लगातार होती गयी है और धीरे-धीरे वह परिणाम आधारित हो गयी।
आप भी अपनी कक्षा में यही सब नहीं कर रहे हैं? कैसा माहौल रहता है आपकी गणित की कक्षा में? इसी माहौल से गुजर कर आपके सवालों के सही जवाब भी देने लगते होंगे।
पर क्या आपने जानने की कोशिश की कि ने सही जवाब देने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाया? एक साधारण जोड़ को बच्चे ने इस प्रकार किया।
यहाँ विचार करें तो आप पाते हैं कि पहले प्रश्न को बच्चे ने सही हल किया परन्तु दूसरे शल में वही प्रक्रिया अपनाने के बाद भी क्यों उसका उत्तर सही नहीं हैं? क्या हमारी लक्ष्य केवल इतना है कि बच्चा जोड़ना सीख लें? या उसमें जोड़ करने की
प्रक्रिया की समझ भी विकसित करनी है वास्तव में जोड़ की समझ के विकास में निहित है। दो या अधिक वस्तुओं या चीजों को एक साथ मिलने से परिणाम के रूप में वस्तुओं की संख्या का बढ़ना।
स्थानीय मान का शामिल होना।
. यह समझना है कि हासिल अर्थात जोड़ की क्रिया में परिणाम दस या अधिक होने पर दहाई की संख्या अपने बायें स्थित दहाइयों में जुड़ती हैं जिसे हासिल समझा जाता है।
. परिणाम के साथ ही प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण होती है। बच्चे जोड़ के सवाल खुद पहचान लेते हैं और हल कर लेते हैं ।
शिक्षण के तरीके और गतिविधियां:
बच्चों में इन दक्षताओं एवं कौशलों के विकास के लिये हमें कई तरह के उदाहरण देने होते और अभ्यासों को करने के मौके देने जरूरी होते हैं। यह मौके हम निम्नांकित प्रकार से पलब्ध करा सकते हैं।
कंकड़, पत्थर, बीज, पत्ती, कॅचे आदि बहुत सी वस्तुओं को बच्चों के अलग-अलग समूहों में मिलाने का अभ्यास कराना।
मौखिक रूप से बताने का मौका देना अर्थात भाषा का प्रयोग। चित्र का सहारा लेकर उसी संबोध को स्पष्ट कराना अर्थात चित्रों का प्रयोग।
अन्त में प्रतीक, संकेतों के माध्यम से मिलाने की क्रिया करना।
इस प्रकार हम जोड़ की अवधारणात्मक समझ में वस्तुओं या संख्याओं का 'बढ़ना पहुँचते हैं इसे अधिक गहराई से समझने-समझाने के लिए निम्नांकित गतिविधियों। क्रियाकलापों/तरीकों को सीखने-सिखाने तथा आकलन में प्रयुक्त कर सकते हैं।
गतिविधि - 1, बोल भाई कितने, बोल बहना कितने
बच्चों को गोल घेरे में खड़ा करें। बच्चों से गोल-गोल दायें से बायें घूमने को कहें।
जब बच्चे घेरे में घूम रहे हों तब अचानक से 'बोल भाई कितने बोल बहना कितन बोलते-बोलते शिक्षक कोई संख्या बोलें।
• बोली हुई संख्या के बराबर संख्या का बच्चे समूह बनायेंगे।
. यह प्रक्रिया कई बार दोहराकर अलग-अलग संख्याओं का बोध करायेंगे । जैसे-3 बच्चे घूमते-घूमते अचानक से 3-3 के समूह में खड़े हों।
बच्चों से 3 अथवा अन्य जो भी संख्यायें गतिविधि के दौरान बोली गई हैं उन संख्याओं कितने समूह बने।
इस पर चर्चा करके फिर उसके माध्यम से जोड़ करके कुल संख्या पता कराये।
गतिविधि - 2, मिलाओ, बताओ
दो-दो बच्चों के समूह बनायें।
5 से अधिक वस्तुएँ किसी भी बच्चे के पास न हों।
दोनों बच्चों को वस्तुएँ मिलाने को कहें । अब वस्तुओं को गिनवाकर संख्या पता करें।
स्पष्ट करें- वस्तुओं को मिलाने से बनने वाला वस्तुओं का नया समूह 'बड़ा' होन है।
दस वस्तुएँ होने पर जो समूह बनता है उसे 'दहाई' कहते हैं। इकाई के स्थान कुछ नहीं बचेगा अर्थात इकाई शून्य (0) हो जायेगी।
गतिविधि - 3
. १ बच्चों को साथ खड़ा करें और एक बच्चे को अलग खडा करके दहाई की संकल्पना को स्पष्ट करें।
9 बच्चों के साथ अलग-अलग खड़ा 1 बच्चा आ जाये तो दस बच्चों का एक समूह बन जायेगा।
दस बच्चों का 1 समूह है और अलग खड़े बच्चों की संख्या 'कुछ नहीं अर्थात शून्य (०) है।
इस प्रकार दस बच्चों का जो समूह बनता है उसे एक दहाई (10) से व्यक्त करते हैं। इस प्रकार कई बार इस गतिविधि को कराकर 1 दहाई और इकाई की अवधारणा स्पष्ट करते हुए जोड़ की समझ विकसित की जाए।
दहाई की संकल्पना स्पष्ट होने के पश्चात एक तरफ दस बच्चे और दूसरी तरफ दो बच्चे खड़ा करके गिनवायें एवं इकाई, दहाई की अवधारणा स्पष्ट करें।
चरण 1 - वस्तुओं के माध्यम से
• परिवेश में उपलब्ध वस्तुओं को बच्चों से गिनवाकर, शरीर के अंगों, हाथ-पैर की उंगलियाँ आदि गिनवाकर संख्या पूछे। एक समान वस्तुओं को लेकर पूछें, गिनो, मिलाओ और बताओ। पहले एक एक वस्तु का
जोड़, फिर दो-दो वस्तुओं का जोड़ फिर तीन-तीन, इसी प्रकार करते हुए बिना हासिल के जोड़ को वस्तुओं के माध्यम से करवायें।
चरण 2 - चित्रों के माध्यम से
चरण 3- संख्याओं, अंकों के माध्यम से
अंक लिखकर उसी अंक के बराबर चित्र बनाकर जोड़ कर सकते हैं- जैसे
संख्याओं और अंकों की पहचान होने पर केवल अंक लिखकर बिना हासिल वाले जोड़की अवधारणा स्पष्ट करें।
गतिविधि - 4
चरण 1- ठोस वस्तुओं के प्रयोग द्वारा
बच्चों को 5-5 के छोटे समूहों में बाँट दें।
प्रत्येक समूह में अलग-अलग बीज, तीली, कंकड़, पत्ती दे।
अब बच्चों से 10 वस्तुओं के कुछ समूह, बण्डल
ढेरियों बनाने को कहे। कुछ खुली वस्तुएँ भी समूहों में रहें।
इसके बाद दी गयी संख्याओं के बराबर संख्या को वस्तुओं से प्रदर्शित करायें।
दोनों संख्याओं की ढेरियों, समूहों, बण्डलों और खुली वस्तुओं को मिलाकर अलग-अलग समूह बनवायें।
अब बण्डलों, समूहों, ढेरियों तथा खुली कुल वस्तुओं की संख्या पूछे। जो संख्या बच्चे बतायें उसे ढेरियों, बण्डलों, समूहों से गिनवाकर स्पष्ट करें। फिर इसे चित्र के माध्यम से निम्नवत हल करायें।
चरण 2 - चित्र के माध्यम से
ठोस वस्तुओं की तरह ही चित्र के माध्यम से हल करायें- इसके लिए शिक्षक बोर्ड पर सवाल दें जिनको तीलियों के बंडल और खुली तीलियों के माध्यम से बच्चों से हल कराये। साथ ही अंक का ज्ञान भी करायें।
उसके बाद सभी बच्चों को बतायें कि "दाशमिक संख्या पद्धति में 10 इकाइयों की एक दहाई" बनती है। इसके बाद बोर्ड पर सवाल दें और उन्हें चित्रों के माध्यम से हल करने को कहें।
चरण 3 - संख्या के माध्यम से
शिक्षक पहले स्वयं दो-तीन सवाल संख्या के माध्यम से हल करके बतायें। फिर बच्चों से पाठ्यपुस्तक एवं अभ्यास पुस्तिका में दिए गए सवालों को हल कराएं। इसी तरह से 3 अंकों एवं चार ओं का जोड़ करायें।
हासिल का जोड़
38 और 48 का जोड़ करने की प्रक्रिया निम्नांकित चरणों में की जायेगी।
चरण -1 ठोस वस्तुओं के प्रयोग द्वारा
बच्चों को 5-5 के छोटे समूहों में बाँट दें।
. बच्चों के प्रत्येक समूह में 10-10 तीलियों के बण्डल और अलग से कुछ तीलियों लेने के लिए कहें।
दी गयी दोनों संख्याओं के बराबर की संख्या में बण्डलों और तीलियों को लेकर अलग-अलग संख्या समूह में बनवायें।
दोनों संख्याओं के आधार पर बने दो समूहों को मिलाकर बनाये गये समूह को गिनवा कर स्पष्ट करें।
फिर इसे चित्र के माध्यम से हल करायें।
परण-2 चित्र के माध्यम से
चरण-3 संख्याओं के साथ अभ्यास
हासिल वाले जोड़ के सवालों के कुछ उदाहरण श्यामपट्ट पर हल करें, बच्चों से कराएं बच्चों से पाठ्यपुस्तक में दिए गए अभ्यासों पर कार्य कराएं। उनसे चर्चा करते रहें- सवाल को
हल किया?
38 48 = 86
यहाँ बच्चों को यह समझने में मदद करें कि- "10 इकाई होते ही एक दहाई" बन जाती है।
इसलिए इकाई वाली संख्या जो कि 6 है को इकाई के स्थान पर और दहाई जो कि दस है उसे दहाई वाली संख्या में जोड़ देना होगा।
प्रेरणा तालिका
शिक्षण, अधिगम और आकलन में आई.सी.टी. (सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी) का समाकलन
यह मॉड्यूल आई.सी.टी. की अवधारणा और शिक्षण-अधिगम में इसकी संभावनाओं पर चर्चा करता है।
मॉड्यूल का उद्देश्य शिक्षक को समीक्षात्मक रूप से विषयवस्तु, संदर्भ, शिक्षण-अधिगम की पद्धति का विश्लेषण करने और उपयुक्त आई.सी.टी. के बारे में जानने के लिए तैयार करना है।
इसके साथ ही यह प्रभावी ढंग से समेकित नीतियाँ बनाने के बारे में भी उन्हें सक्षम बनाता है।
अधिगम के उद्देश्य:
इस मॉड्यूल को सही ढंग से समझने के बाद, शिक्षार्थी-
• आई.सी.टी. का अर्थ स्पष्ट कर सकेंगे;
• विषयस्तु के मूल स्वरूप और शिक्षण-अधिगम की नीतियों के अनुकूल उपयुक्त शिक्षण साधनों की पहचान कर सकेंगे।
• विविध विषयों के लिए शिक्षण, अधिगम व मूल्यांकन हेतु विभिन्न ई-केटेंट (डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध सामग्री), उपकरण, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर की जानकारी प्राप्त साधनों की पहचान कर सकेंगे;
• आई.सी.टी. विषयवस्तु शिक्षणशास्त्र समेकन के आधार पर शिक्षण-अधिगम की रूपरेखा निर्माण एवं क्रियान्वयन कर सकेंगे।
परामर्शदाता ध्यान दें:-
• परामर्शदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जरूरत के अनुसार प्रशिक्षण स्थल पर टेस्कटॉप/ लैपटॉप, प्रोजेक्शन सिस्टम, स्पीकर, मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध हो।
परामर्शदाता के लिए प्रशिक्षण के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री को पढ़ना व समझना जरूरी है।
मॉड्यूल में दिए गए उदाहरणों के अलावा परामर्शदाता अन्य उदाहरणों का भी उपयोग कर सकते हैं।
सत्र को आरंभ करने से पहले, सभी अनिवार्य संसाधनों को प्रशिक्षण स्थल पर उपयोग की जा रही प्रणालियों (डेस्कटॉप/लैपटॉप) के साथ जांचना आवश्यक है।
* सत्र में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए शिक्षार्थियों को अपने मोबाइल स्मार्ट फ्रोन को साथ लाने के लिए सूचित किया जाना चाहिए। यदि संभव हो तो उसमें इंटरनेट की सुविधा भी होनी चाहिए
• मॉड्यूल में दी गई गतिविधियों का संचालन करने के लिए निर्देशों का पालन करें।
आई.सी.टी. की भूमिका:
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते हैं चूंकि हर बच्चा अलग होता है, इसलिए वह एक विशिष्ट तरीके से सीखता है।
वास्तविकता तो यह है कि शिक्षार्थियों को अगर एक से अधिक ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करके पढ़ाया जाए, तो वे बेहतर ढंग से सीख सकते हैं। अधिगम को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक से अधिक ज्ञानेंद्रिय कार्यनीतियाँ दृश्य, श्रवण, गतिसंवेदी और स्पर्शनीय (यानी सुनना,देखना, सूंघना, चखना और छूना) है।
पाठ्यपुस्तकें, आस-पास का परिवेश, कक्षाओं की चारदीवारों के भीतर और बाहर हुए अनुभव शिक्षण-अधिगम के संसाधन अधिगम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक बच्चा स्वयं सीखने वाला, आत्मनिर्भर, समीक्षात्मक और रचनात्मक विचारक तथा समस्या समाधानकर्ता बने।
इसके लिए उसे सक्षम बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए बच्चे को आँकड़े सूचना एकत्र करने, विश्लेषण करने, संश्लेषण करने और आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण तथा इसे दूसरों के साथ साझा करने की आवश्यकता होती है।
ये प्रक्रियाएँ बच्चों को अवधारणा गठन में मदद करती हैं। अत: जरूरी है कि बच्चे पाठ्यपुस्तकों के अलावा भी ज्ञान अर्जित करें और अधिक से अधिक डिजिटल और बाह्य संसाधनों का उपयोग करें।
इसी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) शिक्षण-अधिगम परिवेश में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। बहुत ही कम समय में आई.सी.टी., आधुनिक समाज के बुनियादी निर्माण ढाँचे में से एक बन गया है। आजकल आई.सी.टी. की समझ और बुनियादी कौशल में महारत हासिल करना, पढ़ने-लिखने और संख्यात्मकता के साथ-साथ शिक्षा के मुख्य भाग का एक हिस्सा बन गया है।
आई.सी.टी.की अवधारणा:
गतिविधि 1
आई.सी.टी. ने शिक्षण-अधिगम सहित सभी क्षेत्रों में शिक्षक किस तरह से सीखने और मूल्यांकन के विस्तार के लिए सामग्री पर विचार करते हैं, उचित तरीकों का उपयोग करके सामग्री को पहुंचाते हैं, उपयुक्त संसाधनों को एकीकृत करते हैं और कार्यनीतियों को अपनाते हैं, के तरीके पर भी पड़ा है।
डिजिटल दुनिया में होने वाली प्रगति को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों को शिक्षण और अधिगम के लिए आई.सी.टी. का व्यावसायिक रूप से उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में आई.सी.टी. को समेकित करने का अर्थ केवल इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना ही नहीं है, बल्कि जो क्रांतिकारी बदलाव ला दिये हैं।
इसका प्रभाव, नए युग के विषय पढ़ाना और सीखना है, यह उससे संबंधित तक्ष्यो और सौखने के प्रतिफलो को प्राप्त करने का भी माध्यम है।
शिक्षकों को समझना चाहिए कि कैसे तकनीक को शिक्षणशास्त्र और विषयवस्तु को सीखने के लिए एकीकृत किया जाता है, जिससे ज्ञान
अर्जित होता है। नीचे दिए गए चित्र में यह दिखाया गया है कि कैसे तेज़ी से बदलती तकनीकों को शैक्षणिक पद्धतियों और विषयवस्तु से जुड़े क्षेत्रों के साथ एकीकृत किया जा सकता है। आई.सी.टी. इस संदर्भ के बारे में बात करता है।
आई.सी.टी. को समेकित करते समय विचार किए जाने वाले मानदंड:
विचार किए जाने वाले प्रमुख मानदण्ड संदर्भ, विषयवस्तु या विषय का स्वरूप, शिक्षण अधिगम विधि और तकनीकी के प्रकार और उसकी विशेषताएँ आदि हैं।
समावेशी शिक्षा क्या है? समावेशी शिक्षा की विशेषताएं एवं रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन
कक्षा में बच्चों के साथ कार्य करते हुए आपने अनुभव किया होगा कि
हर बच्चा स्वयं में कोई न कोई विशिष्टता एवं विविधता लिए होता है । उनके रुचि और रुझानों में भी यह विविधता पाई जाती है।
यह विविधता काफी हद तक उनके परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण या शारीरिक आकार प्रकार से प्रभावित होती है। बच्चों में इस विविधता के कारण कुछ खास श्रेणियाँ उभरकर आती हैं। जैसे- तेज/धीमी गति से सीखने वाले, शारीरिक कारणों से सीखने में बाधा अनुभव करने वाले बच्चे, परिवेशीय व लैंगिक विविधता वाले बच्चे।
इनमें कुछ और श्रेणियाँ भी जुड़ सकती हैं। शिक्षक के रूप में इतनी विविधता से भरे बच्चों को हमें कक्षा के भीतर सीखने का समावेशी वातावरण देना होता है।
समावेशी शिक्षा अर्थात् ऐसी शिक्षा जो सबके लिए हो। विद्यालय में विविधताओं से भरे सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ एक कक्षा में शिक्षा देना ही समावेशी शिक्षा है।
समावेशी शिक्षा से तात्पर्य है वह शिक्षा जिसमें किसी एक विशेष व्यक्ति श्रेणी पर निर्भर न होकर सभी को शामिल किया जाता है ।
"समावेशन शब्द का अपने-आप में कुछ खास अर्थ नहीं होता है। समावेशन के चारों ओर जो वैचारिक, दार्शनिक, सामाजिक और शैक्षिक ढाँचा होता है वही समावेशन को परिभाषित करता है। समावेशन की प्रक्रिया में बच्चे को न केवल लोकतंत्र की भागीदारी के लिए सक्षम बनाया जा सकता है. बल्कि लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए दूसरों के साथ रिश्ते बनाना, अन्तक्रिया करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है।
(एन0सी0एफ0 2005, पृ0सं0 96)
समावेशी शिक्षा की विशेषताएं
यह विद्यालय में नामांकित सभी बच्चों के लिए है। बच्चों के शारीरिक मानसिक एवं बौद्धिक स्तर का खासतौर से ध्यान रखा जाता है।
ऐसी शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है जिनमें सभी बच्चे अपने स्तर और क्षमता के अनुसार शामिल होते हैं। बच्चों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता है।
. समावेशी, शिक्षा, कमजोर, प्रतिभाशाली, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच तथा दिव्यांगता में कोई भेद-भाव नहीं करती।
सभी बच्चों को सम्मान और अपनेपन की संस्कृति के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है। समावेशी शिक्षा "एकीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें दिव्यांग बच्चों को भी
सामान्य बच्चों की तरह ही शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है। शिक्षकों को अपनी कक्षा में सहयोग की भावना के विकास हेतु निम्नलिखित तरीकों का उपयोग करना चाहिए जिससे समावेशी महील का सृजन हो सके।
• खेलों का आयोजन
समस्या समाधान की प्रक्रिया में सभी बच्चों को शामिल करना।
किताबों व गीतों का आदान-प्रदान।
बच्चों का दल (Team) बनाना।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधताओं को स्वीकार करने नकी एक मनोवृत्ति है जिसके अन्तर्गत विविध क्षमताओं वाले बच्चे सामान्य शिक्षा प्रणाली में एक साथ सीखते हैं।
जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किये जाने वाले भेदभाव का निषेध करता है, उसी प्रकार समावेशी शिक्षा बच्चों को विभिन्न ज्ञानेन्द्रिय, शारीरिक, बौद्धिक. सामाजिक, आर्थिक आदि कारणों से उत्पन्न किसी भी प्रकार की विविधता के बावजूद स्वतंत्र अधिगमकर्ता के रूप में देखती है।
समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का समर्थन करती है।
समावेशी शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसमें शिक्षक केवल अपने शिक्षण कार्य को ही नहीं करते हैं बल्कि बच्चों को कक्षा में उचित ढंग से समायोजन करते हुए और उनके लिए विविधतापूर्ण गतिविधियों का निर्माण भी करते हैं।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि समावेशन की नीति को प्रत्येक विद्यालय और सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था में किये जाने की जरूरत है।
रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन
विद्यालय स्तर पर वर्ष भर शैक्षिक/सह शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। आयोजनों की आख्याओं के क्रमवार संकलन को दस्तावेजीकरण कहा जाता है। कार्यक्रमों के दस्तावेजीकरण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है
क्यों किया गया अर्थात इसके आयोजन का उद्देश्य क्या था?
कार्यक्रम में क्या-क्या हुआ?
कार्यक्रम की प्रमुख बातें क्या थी?
कब किया गया?
किस क्रम में किया गया?
कैसे हुआ अर्थात कौन सी प्रक्रिया अपनाई गई?
भविष्य में बेहतर आयोजन के लिए किस प्रकार की कार्ययोजना बनानी होगी? रियोटिंग- उपयुक्त रिपोटिंग किसी भी कार्यक्रम के आयोजन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह न केवल विभागीय सूचना मात्र होती है बल्कि हमारे द्वारा किए गए क्रियाकलापों का क्रमबद्ध एवं वैध दस्तावेज होती है जो किसी भी स्तर पर किए गए कार्य की स्पष्ट झलक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष को पाठक तक पहुचाती है।
रिपोर्टिंग के सम्बंध में ध्यान देने हेतु मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं
• कार्यक्रम के उद्देश्य व निष्कर्ष को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाए। भाषा सरल, सहज व सुस्पष्ट हो।
कम से कम शब्दों में पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा स्पष्ट करता हो। प्रमुख बिन्दुओं तथा उल्लेखनीय प्रसंगों को प्रमुखता से उभारा जाए।
. अनावश्यक प्रसंगों का उल्लेख करने से बचा जाए।
रिपोर्ट में वैध प्रमाणों जैसे फोटो/वीडियो/ समाचार पत्रों की कटिंग दिया जाए।
वर्ल्ड क्लास कैसे होगी हायर एजुकेशन?
एजुकेशन समिट 2020 के कॉलेज कॉलिंग सेशन में डीयू के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर दिनेश सिंह, जेएनयू के वाइस चांसलर
प्रोफेसर एम जगदीश कुमार और आईआईटी दिलनाली के डायरेक्टर प्रो वी रामगोपाल राव जुड़े।
हॉयर एजुकेशन से जुड़े मुद्दों पर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी और बताया कि कितने जरूरी बदलाव लंबे समय से रुके हुए थे, जो छात्रों के हित के लिए अब किए जाएंगे।
प्रोफेसर दिनेश सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 4 साल का कोर्सर्स छात्रों के लिए बहुत सुविधाजनक होगा।
छात्र 1 साल का कोर्स कर सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा और तीन साल पूरे करके डिग्री ले जाएगा और जब चाहें कोर्स से एग्जिट ले जाएगा।
इससे छात्रों को फ्लेक्सिबिलिटी और फ्रीडम दोनों मिलेंगे। इससे छात्रों को अपनी पसंद के सब्नजेक्ट पर फोकस करने में आसानी होगी।
पूरे कोर्स के दौरान छात्र अपने बारे में कहते हैं कि एग्जिट लेने के लिए स्वतंत्र रूप से वे यह खुद तय कर लेंगे कि वे कब नौकरी करना चाहते हैं या किसी सबजेट पर रिसर्च करना चाहते हैं। उनहोनें देश को उत्तरलेज इकॉनमी बनाने की बात भी कही।
जेएनयू के वीसी प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि हॉयर एजुकेशन में दाखिले लेने वाले छात्र अपने बड़े लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए पढ़ाई कर रहे होंगे जबकि उन्हें आज़ादी मिलेगी कि वे सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिग्री में से पढ़ाई करना चाहते हैं।
IIT दिलनली के डायरेक्टर प्रो वी रामगोपाल राव ने माना कि जरूरी बदलाव लंबे समय से रुके हुए थे।
राजनीतिक कारणों से देश की शिक्षा व्यवस्थाओं में जरूरी बदलाव नहीं हुए हैं लेकिन अब इसमें बुनियादी सुधार हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वे अलग अलग रुचियां रखने वाले छात्रों को एक साथ लाने के बड़े पक्षधर हैं।
वे मानते हैं कि अलग-अलग सब्नजेक्ट्स में स्पेसिफिकेशन रखने वाले छात्र एक साथ एक पेपर में पढ़ाई करते हैं।
ऐसा भी देखा जा सकता है कि AIIMS में तकनीकी शिक्षा शिक्षा के शिक्षादंत हों या IIT में मेडिकल शट्रीम के पाठटूडेंट्स हों या पाठय में AIIMS और IIT का इंटिग्रेशन भी देखने को मिल सकता है।
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