समावेशी शिक्षा क्या है? समावेशी शिक्षा की विशेषताएं एवं रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन

कक्षा में बच्चों के साथ कार्य करते हुए आपने अनुभव किया होगा कि


हर बच्चा स्वयं में कोई न कोई विशिष्टता एवं विविधता लिए होता है । उनके रुचि और रुझानों में भी यह विविधता पाई जाती है।

 यह विविधता काफी हद तक उनके परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण या शारीरिक आकार प्रकार से प्रभावित होती है। बच्चों में इस विविधता के कारण कुछ खास श्रेणियाँ उभरकर आती हैं। जैसे- तेज/धीमी गति से सीखने वाले, शारीरिक कारणों से सीखने में बाधा अनुभव करने वाले बच्चे, परिवेशीय व लैंगिक विविधता वाले बच्चे।

 इनमें कुछ और श्रेणियाँ भी जुड़ सकती हैं। शिक्षक के रूप में इतनी विविधता से भरे बच्चों को हमें कक्षा के भीतर सीखने का समावेशी वातावरण देना होता है।

समावेशी शिक्षा अर्थात् ऐसी शिक्षा जो सबके लिए हो। विद्यालय में विविधताओं से भरे सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ एक कक्षा में शिक्षा देना ही समावेशी शिक्षा है।

समावेशी शिक्षा से तात्पर्य है वह शिक्षा जिसमें किसी एक विशेष व्यक्ति श्रेणी पर निर्भर न होकर सभी को शामिल किया जाता है ।


"समावेशन शब्द का अपने-आप में कुछ खास अर्थ नहीं होता है। समावेशन के चारों ओर जो वैचारिक, दार्शनिक, सामाजिक और शैक्षिक ढाँचा होता है वही समावेशन को परिभाषित करता है। समावेशन की प्रक्रिया में बच्चे को न केवल लोकतंत्र की भागीदारी के लिए सक्षम बनाया जा सकता है. बल्कि लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए दूसरों के साथ रिश्ते बनाना, अन्तक्रिया करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है।

(एन0सी0एफ0 2005, पृ0सं0 96)


समावेशी शिक्षा की विशेषताएं


यह विद्यालय में नामांकित सभी बच्चों के लिए है। बच्चों के शारीरिक मानसिक एवं बौद्धिक स्तर का खासतौर से ध्यान रखा जाता है।

 ऐसी शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है जिनमें सभी बच्चे अपने स्तर और क्षमता के अनुसार शामिल होते हैं। बच्चों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता है।

. समावेशी, शिक्षा, कमजोर, प्रतिभाशाली, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच तथा दिव्यांगता में कोई भेद-भाव नहीं करती।

सभी बच्चों को सम्मान और अपनेपन की संस्कृति के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है। समावेशी शिक्षा "एकीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें दिव्यांग बच्चों को भी

सामान्य बच्चों की तरह ही शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है। शिक्षकों को अपनी कक्षा में सहयोग की भावना के विकास हेतु निम्नलिखित तरीकों का उपयोग करना चाहिए जिससे समावेशी महील का सृजन हो सके।


• खेलों का आयोजन


समस्या समाधान की प्रक्रिया में सभी बच्चों को शामिल करना।


किताबों व गीतों का आदान-प्रदान।


बच्चों का दल (Team) बनाना।


इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधताओं को स्वीकार करने नकी एक मनोवृत्ति है जिसके अन्तर्गत विविध क्षमताओं वाले बच्चे सामान्य शिक्षा प्रणाली में एक साथ सीखते हैं।

 जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किये जाने वाले भेदभाव का निषेध करता है, उसी प्रकार समावेशी शिक्षा बच्चों को विभिन्न ज्ञानेन्द्रिय, शारीरिक, बौद्धिक. सामाजिक, आर्थिक आदि कारणों से उत्पन्न किसी भी प्रकार की विविधता के बावजूद स्वतंत्र अधिगमकर्ता के रूप में देखती है।

 समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का समर्थन करती है।

समावेशी शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसमें शिक्षक केवल अपने शिक्षण कार्य को ही नहीं करते हैं बल्कि बच्चों को कक्षा में उचित ढंग से समायोजन करते हुए और उनके लिए विविधतापूर्ण गतिविधियों का निर्माण भी करते हैं।

 संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि समावेशन की नीति को प्रत्येक विद्यालय और सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था में किये जाने की जरूरत है।


रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन


विद्यालय स्तर पर वर्ष भर शैक्षिक/सह शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। आयोजनों की आख्याओं के क्रमवार संकलन को दस्तावेजीकरण कहा जाता है। कार्यक्रमों के दस्तावेजीकरण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है


क्यों किया गया अर्थात इसके आयोजन का उद्देश्य क्या था?


कार्यक्रम में क्या-क्या हुआ?


कार्यक्रम की प्रमुख बातें क्या थी?


कब किया गया?


किस क्रम में किया गया?


कैसे हुआ अर्थात कौन सी प्रक्रिया अपनाई गई?


भविष्य में बेहतर आयोजन के लिए किस प्रकार की कार्ययोजना बनानी होगी? रियोटिंग- उपयुक्त रिपोटिंग किसी भी कार्यक्रम के आयोजन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है।

 यह न केवल विभागीय सूचना मात्र होती है बल्कि हमारे द्वारा किए गए क्रियाकलापों का क्रमबद्ध एवं वैध दस्तावेज होती है जो किसी भी स्तर पर किए गए कार्य की स्पष्ट झलक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष को पाठक तक पहुचाती है।


रिपोर्टिंग के सम्बंध में ध्यान देने हेतु मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं


• कार्यक्रम के उद्देश्य व निष्कर्ष को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाए। भाषा सरल, सहज व सुस्पष्ट हो।


कम से कम शब्दों में पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा स्पष्ट करता हो। प्रमुख बिन्दुओं तथा उल्लेखनीय प्रसंगों को प्रमुखता से उभारा जाए।


. अनावश्यक प्रसंगों का उल्लेख करने से बचा जाए।


रिपोर्ट में वैध प्रमाणों जैसे फोटो/वीडियो/ समाचार पत्रों की कटिंग दिया जाए।

वर्ल्ड क्लास कैसे होगी हायर एजुकेशन?

 एजुकेशन समिट 2020 के कॉलेज कॉलिंग सेशन में डीयू के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर दिनेश सिंह, जेएनयू के वाइस चांसलर


प्रोफेसर एम जगदीश कुमार और आईआईटी दिलनाली के डायरेक्टर प्रो वी रामगोपाल राव जुड़े।

  हॉयर एजुकेशन से जुड़े मुद्दों पर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी और बताया कि कितने जरूरी बदलाव लंबे समय से रुके हुए थे, जो छात्रों के हित के लिए अब किए जाएंगे।

 प्रोफेसर दिनेश सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 4 साल का कोर्सर्स छात्रों के लिए बहुत सुविधाजनक होगा।

  छात्र 1 साल का कोर्स कर सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा और तीन साल पूरे करके डिग्री ले जाएगा और जब चाहें कोर्स से एग्जिट ले जाएगा।  

इससे छात्रों को फ्लेक्सिबिलिटी और फ्रीडम दोनों मिलेंगे।  इससे छात्रों को अपनी पसंद के सब्नजेक्ट पर फोकस करने में आसानी होगी। 

 पूरे कोर्स के दौरान छात्र अपने बारे में कहते हैं कि एग्जिट लेने के लिए स्वतंत्र रूप से वे यह खुद तय कर लेंगे कि वे कब नौकरी करना चाहते हैं या किसी सबजेट पर रिसर्च करना चाहते हैं।  उनहोनें देश को उत्तरलेज इकॉनमी बनाने की बात भी कही।

 जेएनयू के वीसी प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि हॉयर एजुकेशन में दाखिले लेने वाले छात्र अपने बड़े लक्ष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए पढ़ाई कर रहे होंगे जबकि उन्‍हें आज़ादी मिलेगी कि वे सर्टिफिकेट, डिप्‍लोमा या डिग्री में से पढ़ाई करना चाहते हैं।

  IIT दिलनली के डायरेक्टर प्रो वी रामगोपाल राव ने माना कि जरूरी बदलाव लंबे समय से रुके हुए थे।

  राजनीतिक कारणों से देश की शिक्षा व्यवस्थाओं में जरूरी बदलाव नहीं हुए हैं लेकिन अब इसमें बुनियादी सुधार हो रहे हैं।

 उन्होंने कहा कि वे अलग अलग रुचियां रखने वाले छात्रों को एक साथ लाने के बड़े पक्षधर हैं।

  वे मानते हैं कि अलग-अलग सब्नजेक्ट्स में स्‍पेसिफिकेशन रखने वाले छात्र एक साथ एक पेपर में पढ़ाई करते हैं। 

 ऐसा भी देखा जा सकता है कि AIIMS में तकनीकी शिक्षा शिक्षा के शिक्षादंत हों या IIT में मेडिकल शट्रीम के पाठटूडेंट्स हों या पाठय में AIIMS और IIT का इंटिग्रेशन भी देखने को मिल सकता है।

सामुदायिक सहयोग हेतु कार्य-योजना निर्माण कैसे करें?

विद्यालय प्रबंध समिति (SMC) के सदस्य विद्यालय और समुदाय के बीच प्रमुख सेतु हं भूमिका निभा सकते हैं।

इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक विद्यालय को एस०एम०सी0 सहयोग से सामुदायिक सहयोग की कार्य योजना विकसित करनी होगी। कार्य योजना के संभावित क्षेत्र निम्नवत हो सकते हैं।


(अ) भौतिक संसाधन-चहारदिवारी, पंखा, फर्नीचर, स्टेशनरी, पेयजल, स्मार्ट बोर्ड, शैक्षिक तकनीकी से संबंधित उपकरण आदि।


(ब) मानवीय संसाधन-सामुदायिक संसाधनों का कक्षा-कक्षीय एवं अन्य सहशैक्षिक क्रियाकलाप में उपयोग।

 उक्त बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी संस्था उपलब्ध भौतिक / मानवीय संसाधनों की उपलब्धता की समीक्षा करने के बाद विद्यालय की आवश्यकताओं का चिह्नांकन करना होगा तदुपरान्त उन आवश्यकताओं का वर्गीकरण करते हुए सामुदायिक सहभागिता के प्रकार को स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हुए समुदाय से संपर्क स्थापित करना होगा।

 इस प्रकार आवश्यकताओं के अनुसार संदर्भों/ स्रोतों की मदद लेते हुए कार्य योजना विकसित कर हम अपने कार्य को और बेहतर बना सकते हैं तथा समुदाय से बेहतर जुड़ाव स्थापित कर सकते हैं ।


            सामुदायिक सहयोग की कार्य योजना


इस कार्य योजना का सुनियोजित क्रियान्वयन न केवल आपके विद्यालय को आदर्श बनाने में मदद करेगा बल्कि आपको अपने कार्य क्षेत्र में लोकप्रिय भी बनाएगा।


सामुदायिक सहभागिता की गतिविधियाँ


अध्यापकों द्वारा अभिभावकों से बैठक में प्रतिभाग करने हेतु व्यक्तिगत तौर पर संपर्क किया जाय।


समस्त अध्यापकों द्वारा विद्यालय प्रबन्धन समिति की मासिक बैठक में प्रतिभाग किया जाय । लेखपाल, ए.एन.एम. और ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि से संपर्क कर एस०एम०सी0 की बैठक में प्रतिभाग करने हेतु अनुरोध किया जाय।


बैठक में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति पर चर्चा की जाय। यदि छात्र छात्राओं की उपस्थिति 60 प्रतिशत से कम है तो अभिभावकों के साथ विचार-विमर्श किया जाय कि बच्चों की उपस्थिति को कैसे बढ़ाया जाय।


एस.एम.सी. की मासिक बैठक में विद्यालय न आने वाले बच्चों का विवरण तैयार कर उनके परिवारों से सम्पर्क करके यथा सम्भव सहायता प्रदान कर उन्हें अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए प्रेरित किया जाये।


. बैठक में अभिभावकों के साथ निःशुल्क पाठ्य-पुस्तकों, यूनिफॉर्म, जूता-मोजा, स्कूल बैग एवं स्वेटर वितरण पर चर्चा एवं छात्र छात्राओं को प्रत्येक दिन यूनिफॉर्म में आने के लिये प्रेरित किया जाये।


एम.डी.एम. योजना के अन्तर्गत मीनू के अनुसार नियमित रूप से भोजन वितरण एवं व्यवस्था में सहयोग लिया जाय।


- विद्यालय भवन के रख-रखाव एवम् साफ सफाई की व्यवस्था पर चर्चा की जाए।


- स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कारीगरों, संगीत, कहानी सुनाने में निपुण अभिभावकों को विद्यालय में आमंत्रित कर बच्चों को जानकारी दी जाए।


- एस०एम०सी० की बैठक में लिये गये निर्णयों व कार्यवृत्ति के अभिलेखीकरण को एस०एम०सी0 बैठक रजिस्टर में दर्ज करते हुए प्रेरणा ऐप (PRERNA App) पर अपलोड किया जाए।

 विद्यालय प्रबन्धन समिति (एस0एम0सी0) के सदस्यों द्वारा बैठकों में लिये गये उनके निर्णयों को समुदाय में सार्वजनिक किया जाय जिससे समुदाय के लोग भी विद्यालय के प्रति संवेदनशील व अपने सभी बच्चों के शत-प्रतिशत नामांकन, उपस्थिति, ठहराव एवं गुणवत्तायुक्त शिक्षा में एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते सहयोग प्रदान करें।


- एस0एम0सी0 के कार्यों एवं उनके उत्तरदायित्वों के बोध एवं सभी समुदाय के लोगों को जागरूक करने के लिए जनपहल रेडियो कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है।

 यह कार्यक्रम समुदाय को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि एस०एम०सी0 के सदस्य एवं अभिभावक कैसे अपने कार्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वहन करेंगे।

प्रत्येक एस0एम0सी0 के सदस्य को "जन पहल हस्त पुस्तिका उपलब्ध करायी गया है, जिसमें बाल अधिकार, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, विद्यालय प्रबन्धन समिति की संरचना एवं गठन, विद्यालय विकास योजना, विद्यालय प्रबन्ध समिति एवं स्थानीय प्राधिकारी के सदस्यों के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों, को स्पष्ट किया गया है।

 इसमें बच्चों की शिक्षा एवं विद्यालय के संचालन एवं प्रबंधन में विद्यालय प्रबन्ध समितियों द्वारा मासिक बैठक, एस०एम०सी0 बैठक रजिस्टर, दिव्यांग बच्चे, हाउस होल्ड सर्वे, विशेष प्रशिक्षण, गुणवत्ता शिक्षा एवं बालिका शिक्षा के अन्तर्गत किये जा रहे कार्यक्रमों, यथा कायाकल्प /स्वच्छ भारत अभियान, जन पहल रेडियो कार्यक्रम, मध्याहन भोजन योजना एवं स्कूल में बच्चों की सुरक्षा हेतु गाईडलाइन की जानकारी, के साथ सामान्य अभिलेखों, वित्तीय अभिलेखों का रखरखाव, एस0एम0सी0 का ग्राम शिक्षा समिति/ स्थानीय प्राधिकारी एवं अन्य विभागों से समन्वय के बारे में जानकारी दी गयी है।


शिक्षण के तरीके और गतिविधियाँ

परिवेश, पर-परिवार, कक्षा-कक्षा में उपलब्ध विभिन्न आकृति की वस्तुओं पर बातचीत करने छूकर पता करने, उलटने--पलटने एवं विविध रूपों में जमाने के अनुभव का भीका देने से बच्चों में ज्यामितीय आकृति सम्बन्धी अवधारणात्मक समझ का विकास होता है। यह समझ निम्नांकित रूपों में हो सकती है-


एक ही आकृति के कई रूप हो सकते हैं।


एक ही आकृति में एक से अधिक रूप समाहित होते हैं। एक आकृति के अलग-अलग संयोजन से नयी आकृतियाँ बनती हैं।


अलग-अलग प्रकार की आकृतियों को समझने के लिए एक ही प्रकार के तरीके कारगर नहीं होते अर्थात प्रत्येक प्रकार की आकृति को एक ही प्रकार से नहीं समझा जा सकता।


इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे यह भी समझने व अनुभव करने में समर्थ हो जाते हैं कि गेंद और गोले का चित्र उसे पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पाता है।

 यह वृत्ताकार क्षेत्र से किस प्रकार भिन्म है? इन आकृतियों की समझ उन्हें आगे चलकर परिमाप, क्षेत्रफल एवं आयतन तक किस प्रकार ले जाती है? इनके अवधारणात्मक समझ के विकास के लिए शुरुआती कक्षाओं में आगे दिए गए सुझाव और गतिविधियों का शिक्षण में प्रयोग बच्चों के सीखने में सार्थक प्रभाव लाएगा।


गतिविधि-1, अपर देख, नीचे देख, बायें देख, दायें देख


बच्चों को गोल घेरे में खड़ा करें। आप बीच में खडे होकर गतिविधि का संचालन करें। बच्चे ऊपर देख, नीचे देख, बायें देख, दायें देख दोहराते हुए गोल घेरे में घूमेंगे।

 आप उनसे ऐसे सवाल पूछते रहें- क्या है गोल, क्या है गोल? क्या है चौकोर, क्या है चौकोर? क्या है तिकोना, क्या है तिकोना? बच्चे आपके सवाल के आधार पर कक्ष या आसपास मौजूद धीजों के नाम बतायेंगे।

 गतिविधि कराने के बाद बच्चों से गतिविधि के दौरान बोले गए नामों की श्रेणीवार सूची बनवाए।



गतिविधि-2


बच्चों के दो समूह बनायें। बच्चे कक्षा-कक्ष में उपस्थित चीजों के आकार के बारे में प्रश्नोत्तर करेंगे। एक समूह प्रश्न करे तथा दूसरा समूह पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देगा। यही कार्य समूह की भूमिकाीत बदस कार कराएं। हर सवाल के जवाब में जो समूह सही और ज्यादा चीजों के बताएगा, वह जीतेगा।


कौन-कौन चीजें गोल है?


क्या-क्या चौकोर है? बेलनाकार वस्तुएं कौन सी है?


क्या कक्षा में कोई वस्तु शंक्वाकार है?


गतिविधि को विस्तार देते हुए बाह्य परिवेश की वस्तुओं की आकृतियों के बारे में घर की वस्तुओं की बनावट के बारे में प्रश्नोत्तर कराएं।


गतिविधि-3


घर, परिवार, पास-पड़ोस में पायी जाने वाली विभिन्न आकृति वाली वस्तुओं के आकार-प्रकार के बारे में बातचीत करें। रसोई एवं कक्षा में पायी जाने वाली विभिन्न वस्तुओं के आकार प्रकार पर चर्चा करें।


गतिविधि-4


विभिन्न आकृति वाली वस्तुओं को कक्षा में रखें अब समान आकृति वाली वस्तुओं को बच्चों से अलग करवायें।

 वस्तुओं के नाम पूछे। हर एक की बनावट के बारे में चर्या करें। विभिन्न वस्तुओं की आकृतियों की पहचान के बाद एक-दूसरे से भिन्नता के कारणों पर बातचीत करें।


गतिविधि-5


वक्रतल एवं समतल का अनुभव कराने के लिए ऐसे तलों वाली वस्तुएँ- (गेंद, बेलन, शंक, घन, घनाभ) बच्चों को दें।

 वस्तुओं के तलों पर बच्चों को हाथ फिराने को कहें. फिर उनसे उस पर बातचीत करें।


• कितने तल और किस-किस प्रकार के हैं?

 किनारे कितने है?


कागज से घन, घनाभ बनाये घन और घनाभ बच्चों को देकर अवलोकन करायें। फिर कोर, तल, कोने को गिनवाकर स्पष्ट करें। धन और घनाभ के तलों पर 1 से 6 तक की संख्याएँ लिखवाकर तलों की संख्या स्पष्ट करायें।


गणित किट में उपलब्ध वस्तुओं (घन, घनाभ, गोला, बेलन, शंकु) से तलों की पहचान लुढ़काकर खिसकाकर करायें, फिर तलों को स्पष्ट करें।



गतिविधि-6


बच्चों से सूची बनवायें


कौन-कौन खिलौने शंक्वाकार है?


गोलाकार, बेलनाकर एवं शंक्वाकार सब्जियाँ कौन-कौन सी हैं?


कौन-कौन से फल समान आकृति के है?


मिठाइयों का नाम उनकी आकृतियों के नाम के साथ लिखवायें।


घर में कौन-कौन से बर्तन बेलनाकार है?


कक्षा में कौन-कौन सी चीजें आयताकार दिख रही हैं?


गतिविधि -7


बच्चों को छोटे समूह में बाँटकर सीकों या माचिस की तीलियों का उपयोग करते हुए नभुजाकार, आयताकार, वर्गाकार आकृतियाँ बनवाएँ और हर समूह द्वारा बनाई गई आकृति के बारे बातचीत करें।

अलग-अलग आकृति बनाने में लगी तीलियों/सीकों की संख्या गिनवाकर पता करायें ।


अलग-अलग आकृति में लगी तीलियों की तुलना करायें। आयताकार एवं तकर आकृति में समानता और अन्तर पता करायें।


- पाक आकृति में लगी तीलियों / सीकों की लम्बाई में एक साथ रखवाकर कुल लम्बाई पता कराय। फिर बतायें-यही परिमाप है।


पटरी की सहायता से अलग-अलग भुजा नपवायें। फिर तुलना कराकर योग करवायें


विद्यालयों में सहशैक्षिक गतिविधियों को कैसे क्रियान्वित करें?

प्रारम्भिक विद्यालयों में सह शैक्षिक गतिविधियों के आयोजन में


प्रधानाध्यापक एवं अध्यापक की भूमिका को निम्नवत् देखा जा सकता है।

 • विद्यालयों में सहशैक्षिक गतिविधियों को कैसे क्रियान्वित करें, इसके बारे में परस्पर चर्चा करना तथा आवश्यक सहयोग प्रदान करते हुए निरंतर संवाद बनाये रखना।

क्रियाकलापों का अनुश्रवण करना तथा आयी हुई समस्याओं का निराकरण सभी की सहभागिता द्वारा करना। इन क्रियाकलापों में बालिकाओं की सहभागिता अधिक से अधिक हो साथ ही साथ सभी छात्रों की प्रतिभागिता सुनिश्चित हो, इस हेतु सामूहिक जिम्मेदारी लेना।।

• समय सारिणी में खेलकूद/ पीटी,ड्राइंग, क्राफ्ट, संगीत, सिलाई/बुनाई व विज्ञान के कार्यों प्रतियोगिताएं हेतु स्थान व वादन को सुनिश्चित करना। 

• स्कूलों में माहवार/त्रैमासिक कितनी बार किस प्रकार की प्रतियोगिताएं कराई गई, इसकी जानकारी प्राप्त करना एवं रिकार्ड करना। बच्चों के स्तर एवं रुचि के अनुसार कहानियां, चुटकुले, कविता आदि का संकलन स्वयं करना तथा बच्चों से कराना।

 • विज्ञान/गणित सम्बन्धी प्रतियोगिताओं हेतु विषय से सम्बन्धित प्रश्न बैंक रखना।

आवश्यक वस्तुओं का संग्रह रखना।

जन सहभागिता एवं सहयोग हेतु जनसंपर्क मेले, बाल मेले, प्रदर्शनी का आयोजन, शिक्षाप्रद फिल्मों को दिखाने की व्यवस्था करना।

 विद्यालय स्तर पर विभिन्न प्रकार की कार्यशाला, सेमीनार, गोष्ठियों एवं प्रतियोगिताओं का आयोजन शिक्षकों एवं बच्चों दोनों ही स्तरों के लिए किया जाना।


खेल गतिविधियां एवं प्रतियोगिताएं

बच्चों के बहुमुखी विकास और विद्यालय से लगाव के लिए खेल गतिविधियों एवं प्रतियोगिताओं आयोजन आवश्यक है। इनसे जहाँ एक और उनका शारीरिक- मानसिक विकास होता है वहीं धुरती फुर्ती भी बनी रहती है।

 कुछ बच्चे जिनका रूझान खेल के प्रति अधिक होता है वे खेलों सहारे जीवन में बहुत आगे तक बढ़ जाते है।

खेल गतिविधियों में शामिल है- योग, व्यायाम पी. टी. आत्मरक्षा के तरीकों (जूड़ो/ताईक्वान्डो) साथ इनडोर-आउटडोर खेल।

 हमारे विद्यालयों में खेल के लिये पीरियड भी निर्धारित हैं प्रार्थना गत और अतिरिक्त समय पर भी इन गतिविधियों के लिये अवसर हैं । 

हमारे विद्यालयों के बच्चे भन्न स्तर की खेल प्रतियोगतिाओं में भी भाग लेते है। निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार नियम के अनुसार हर विद्यालय में खेल सामग्री होना अनिवार्य किया गया है फलस्वरूप आजकल सभी विद्यालयों में खेल सामग्री उपलब्ध है।

 अत: बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु में नियमित रूप से विद्यालय में खेल गतिविधियों का आयोजन करना चाहिए।

सम्भावित समय सारणी



                                                           

                               सामिग्री



सोचें!


 आपके विद्यालय में कौन-कौन से उपकरण/सामग्री उपलब्ध है? इनको लगातार उपयोग और समृद्ध करने की क्या योजना है? 


क्या आपके विद्यालय में बच्चों के लिए खेल प्रतियोगिताएँ होती हैं? यदि हाँ, तो कौन-कौन सी? यदि नहीं, तो हो पाएं, इसकी क्या कार्य योजना है?

 क्या आपके विद्यालय के सभी शिक्षक/ बच्चे/एस. एम. सी. के सदस्य तथा अभिभावक इस व्यवस्था में शामिल हैं?




समुदाय को विद्यालय से कैसे जोड़ें?

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है जिससे हमारे बहुत से विद्यालयों को जूझना पड़ता है।

 लगातार सरकारी/विभागीय निर्देशों और एस०एम०सी0 के गठन के बावजूद हममें से अधिकांश शिक्षक अभी भी अपने विद्यालयों से समुदाय को अपेक्षानुरूप नहीं जोड़ पा रहे हैं।

इस मुद्दे की पड़ताल पर जाने से पूर्व सबसे पहले हम यह विचार करें कि हमने पिछले छह महीने में कब-कब और किस उद्देश्य से समुदाय के लोगों को स्कूल में बुलाया था या उनसे मुलाकात की थी।

हम पाएँगे कि यह मुलाकातें या निमंत्रण बहुत सीमित मात्रा में तथा औपचारिक ही ज्यादा थे।

 समुदाय के व्यक्तित्व किन्हीं राष्ट्रीय पर्वों या सभाओं में विद्यालय आए भी तो उनकी भूमिका कार्यक्रम में मूक दर्शक की तरह बैठे रहना भर ही रही। 

स्वाभाविक है कि खाली बैठे रहने (निरुददेश्य) की भूमिका में स्वयं को पाकर समुदाय का व्यक्ति हमारे पास आखिर क्यों और कब तक आता जाता रहेगा ?

आज हम सभी का जीवन विभिन्न प्रकार की व्यस्तताओं से भरा है और समुदाय के हर व्यक्ति । 

सबकी कमोबेश यही स्थिति है। समय नहीं मिल पाया आज के दौर का ऐसा वाक्य है कि जिसे हर तीसरा व्यक्ति कहता मिल जाता है। स्वाभाविक भी है कि आजकल के व्यस्त समय में किसी भी .... व्यक्ति को निरुद्देश्य कहीं भी आना जाना या बुलाया जाना सहज नहीं रहा है। 

व्यक्तिगत सत्ता के चलते महीनों हमारा और समुदाय का एक-दूसरे से संवाद स्थापित नहीं हो पाता। इस प्रकार की निरंतर संवादहीनता की स्थिति के चलते समुदाय हमसे और विद्यालय से कटता चला जाता है।

तब क्या हो कि समुदाय हमसे जुड़े? इसके लिये सबसे पहली और जरूरी बात होगी समुदाय कि सदस्यों की विद्यालयीय क्रियाकलापों में नियमित और रचनात्मक उपस्थिति । 

यह उपस्थिति निरुदेदशीय न होकर सोद्देश्य पूर्ण होगी जिसमें आमंत्रित सदस्यों की विद्यालयीय गतिविधियों में रिचनात्मक सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी जैसे-

प्रार्थना सत्र में, कक्षा शिक्षण में, राष्ट्रीय पर्वो पर, बाल मेलों में, प्रदर्शनी, प्रतियोगिताओं में, जयन्तियों में, स्थानीय त्योहारों में, शैक्षिक भ्रमण में, सह शैक्षिक गतिविधियों में आई.सी.टी. के उपयोग में शिल्प कला, खेल, शारीरिक शिक्षा से संबंधित क्रियाकलापों में, संगीत, गायन, वादन, नूत्य के क्रियाकलापों में, स्थानीय पाठ्यक्रम निर्माण में, स्थानीय लोकगीत. लोक नृत्य, लोक कलाओं के संग्रह, संकलन, प्रदर्शन से जुड़े क्रियाकलापों में, स्थानीय उपचार (चिकित्सा पद्धति), इतिहास, भूगोल की जानकारी के क्षेत्रों में, स्थानीय साहित्य की जानकारी में, स्थानीय लाइब्रेरी, स्थानीय संग्रहालय विकसित करने में, स्थानीय खेल का मैदान विकसित करने में विद्यालयों के स्वरूप को संवारने में उक्त बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी संस्था उपलब्ध भौतिक / मानवीय संसाधनों की उपलब्धता की समीक्षा करने के बाद विद्यालय की आवश्यकताओं का चिह्नांकन करना होगा तदुपरान्त उन आवश्यकताओं का वर्गीकरण करते हुए सामुदायिक सहभागिता के प्रकार को स्पष रूप से रेखांकित करते हुए समुदाय से संपर्क स्थापित करना होगा इस प्रकार आवश्यकताओं अनुसार संदर्भों/ स्रोतों की मदद लेते हुए कार्य योजना विकसित कर हम अपने कार्य को और बेहत बना सकते हैं तथा समुदाय से बेहतर जुड़ाव स्थापित कर सकते हैं।

                    सामुदायिक सहयोग की कार्य योजना

 


इस कार्य योजना का सुनियोजित क्रियान्वयन न केवल आपके विद्यालय को आदर्श बनाने मदद करेगा बल्कि आपको संबंधित क्षेत्र में लोकप्रिय भी बनाएगा।







बाल संसद : उद्देश्य, शिक्षक की भूमिका, बाल संसद गठन, एवं समितियों के प्रमुख कार्य


 बाल संसद क्या है? 

बालक- बालिकाओं का एक मंच जिसका प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गठन किया जाता है।

 बाल संसद के उद्देश्य : 

जीवन मूल्यों का विकास व्यक्तित्व विकास, नेतृत्व क्षमता, निर्णय लेने का क्षमता, सही/गलत स्पर्श की समझ, समय प्रबन्ध इत्यादि पर स्पष्ट समझ।

शिक्षक की भूमिका: 

बाल संसद के संयोजक के रूप में सहयोग करना।

              मंत्रिमण्डल/स्वरूप /गठन समितियां: 

1. प्रधानमंत्री 

                           1 व 2 में एक छात्रा का चयन अवश्य हो।

2 उप-प्रधानमंत्री


3. शिक्षा मंत्री

                            सह मीना मंच मंत्री (अनिवार्य रूप से छात्रा है)

4. उपशिक्षा मंत्री


5, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 6. उप स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री


7. जल एवं कृषि मंत्री


8. उप जल एवं कृषि मंत्री


9. पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री 


10. उप पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री


11. साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री


12 उप साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री


                            समितियों के प्रमुख कार्य


मंत्रिमण्डल                                               कार्य

प्रधानमंत्री                          विशेष अवसरों पर विद्यालय में समारोह                                              आयोजित करना एवं महत्वपूर्ण निर्णय लेना


शिक्षा मंत्री                           सभी बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना।


स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री      व्यक्तिगत स्वच्छता, परिसर शौचालय की                                              सफाई पर ध्यान देना।


जल एवं कृषि मंत्री               विद्यालय में पेड़-पौधे, क्यारिया, परिसर के 

                                         सौन्दयीकरण पर ध्यान देना, पीने के पानी                                           की स्वच्छता का ध्यान रखना।


पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री    पुस्तकालय की किताबें पढ़ने की आदत                                              डलवाना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण नवाचारों में                                            सहयोग करना।


सांस्कृतिक मंत्री                     सास्कृतिक गोष्ठी, वार्षिक खेलकुद,                                                     राष्ट्रीय पर्वों पर समारोह आयोजन।


नोट- सभी विद्यालयों में बाल संसद का गठन करना अनिवार्य है।