समुदाय को विद्यालय से कैसे जोड़ें?

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है जिससे हमारे बहुत से विद्यालयों को जूझना पड़ता है।

 लगातार सरकारी/विभागीय निर्देशों और एस०एम०सी0 के गठन के बावजूद हममें से अधिकांश शिक्षक अभी भी अपने विद्यालयों से समुदाय को अपेक्षानुरूप नहीं जोड़ पा रहे हैं।

इस मुद्दे की पड़ताल पर जाने से पूर्व सबसे पहले हम यह विचार करें कि हमने पिछले छह महीने में कब-कब और किस उद्देश्य से समुदाय के लोगों को स्कूल में बुलाया था या उनसे मुलाकात की थी।

हम पाएँगे कि यह मुलाकातें या निमंत्रण बहुत सीमित मात्रा में तथा औपचारिक ही ज्यादा थे।

 समुदाय के व्यक्तित्व किन्हीं राष्ट्रीय पर्वों या सभाओं में विद्यालय आए भी तो उनकी भूमिका कार्यक्रम में मूक दर्शक की तरह बैठे रहना भर ही रही। 

स्वाभाविक है कि खाली बैठे रहने (निरुददेश्य) की भूमिका में स्वयं को पाकर समुदाय का व्यक्ति हमारे पास आखिर क्यों और कब तक आता जाता रहेगा ?

आज हम सभी का जीवन विभिन्न प्रकार की व्यस्तताओं से भरा है और समुदाय के हर व्यक्ति । 

सबकी कमोबेश यही स्थिति है। समय नहीं मिल पाया आज के दौर का ऐसा वाक्य है कि जिसे हर तीसरा व्यक्ति कहता मिल जाता है। स्वाभाविक भी है कि आजकल के व्यस्त समय में किसी भी .... व्यक्ति को निरुद्देश्य कहीं भी आना जाना या बुलाया जाना सहज नहीं रहा है। 

व्यक्तिगत सत्ता के चलते महीनों हमारा और समुदाय का एक-दूसरे से संवाद स्थापित नहीं हो पाता। इस प्रकार की निरंतर संवादहीनता की स्थिति के चलते समुदाय हमसे और विद्यालय से कटता चला जाता है।

तब क्या हो कि समुदाय हमसे जुड़े? इसके लिये सबसे पहली और जरूरी बात होगी समुदाय कि सदस्यों की विद्यालयीय क्रियाकलापों में नियमित और रचनात्मक उपस्थिति । 

यह उपस्थिति निरुदेदशीय न होकर सोद्देश्य पूर्ण होगी जिसमें आमंत्रित सदस्यों की विद्यालयीय गतिविधियों में रिचनात्मक सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी जैसे-

प्रार्थना सत्र में, कक्षा शिक्षण में, राष्ट्रीय पर्वो पर, बाल मेलों में, प्रदर्शनी, प्रतियोगिताओं में, जयन्तियों में, स्थानीय त्योहारों में, शैक्षिक भ्रमण में, सह शैक्षिक गतिविधियों में आई.सी.टी. के उपयोग में शिल्प कला, खेल, शारीरिक शिक्षा से संबंधित क्रियाकलापों में, संगीत, गायन, वादन, नूत्य के क्रियाकलापों में, स्थानीय पाठ्यक्रम निर्माण में, स्थानीय लोकगीत. लोक नृत्य, लोक कलाओं के संग्रह, संकलन, प्रदर्शन से जुड़े क्रियाकलापों में, स्थानीय उपचार (चिकित्सा पद्धति), इतिहास, भूगोल की जानकारी के क्षेत्रों में, स्थानीय साहित्य की जानकारी में, स्थानीय लाइब्रेरी, स्थानीय संग्रहालय विकसित करने में, स्थानीय खेल का मैदान विकसित करने में विद्यालयों के स्वरूप को संवारने में उक्त बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी संस्था उपलब्ध भौतिक / मानवीय संसाधनों की उपलब्धता की समीक्षा करने के बाद विद्यालय की आवश्यकताओं का चिह्नांकन करना होगा तदुपरान्त उन आवश्यकताओं का वर्गीकरण करते हुए सामुदायिक सहभागिता के प्रकार को स्पष रूप से रेखांकित करते हुए समुदाय से संपर्क स्थापित करना होगा इस प्रकार आवश्यकताओं अनुसार संदर्भों/ स्रोतों की मदद लेते हुए कार्य योजना विकसित कर हम अपने कार्य को और बेहत बना सकते हैं तथा समुदाय से बेहतर जुड़ाव स्थापित कर सकते हैं।

                    सामुदायिक सहयोग की कार्य योजना

 


इस कार्य योजना का सुनियोजित क्रियान्वयन न केवल आपके विद्यालय को आदर्श बनाने मदद करेगा बल्कि आपको संबंधित क्षेत्र में लोकप्रिय भी बनाएगा।







बाल संसद : उद्देश्य, शिक्षक की भूमिका, बाल संसद गठन, एवं समितियों के प्रमुख कार्य


 बाल संसद क्या है? 

बालक- बालिकाओं का एक मंच जिसका प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गठन किया जाता है।

 बाल संसद के उद्देश्य : 

जीवन मूल्यों का विकास व्यक्तित्व विकास, नेतृत्व क्षमता, निर्णय लेने का क्षमता, सही/गलत स्पर्श की समझ, समय प्रबन्ध इत्यादि पर स्पष्ट समझ।

शिक्षक की भूमिका: 

बाल संसद के संयोजक के रूप में सहयोग करना।

              मंत्रिमण्डल/स्वरूप /गठन समितियां: 

1. प्रधानमंत्री 

                           1 व 2 में एक छात्रा का चयन अवश्य हो।

2 उप-प्रधानमंत्री


3. शिक्षा मंत्री

                            सह मीना मंच मंत्री (अनिवार्य रूप से छात्रा है)

4. उपशिक्षा मंत्री


5, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 6. उप स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री


7. जल एवं कृषि मंत्री


8. उप जल एवं कृषि मंत्री


9. पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री 


10. उप पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री


11. साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री


12 उप साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री


                            समितियों के प्रमुख कार्य


मंत्रिमण्डल                                               कार्य

प्रधानमंत्री                          विशेष अवसरों पर विद्यालय में समारोह                                              आयोजित करना एवं महत्वपूर्ण निर्णय लेना


शिक्षा मंत्री                           सभी बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना।


स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री      व्यक्तिगत स्वच्छता, परिसर शौचालय की                                              सफाई पर ध्यान देना।


जल एवं कृषि मंत्री               विद्यालय में पेड़-पौधे, क्यारिया, परिसर के 

                                         सौन्दयीकरण पर ध्यान देना, पीने के पानी                                           की स्वच्छता का ध्यान रखना।


पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री    पुस्तकालय की किताबें पढ़ने की आदत                                              डलवाना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण नवाचारों में                                            सहयोग करना।


सांस्कृतिक मंत्री                     सास्कृतिक गोष्ठी, वार्षिक खेलकुद,                                                     राष्ट्रीय पर्वों पर समारोह आयोजन।


नोट- सभी विद्यालयों में बाल संसद का गठन करना अनिवार्य है।





विद्यालयी शिक्षा में नयी पहलें, अधिगम के उद्देश्य एवम विद्यालयी शिक्षा के लिए समेकित योजना

शिक्षा, मानव संसाधन विकास का मूल है जो देश की सामाजिक-आर्थिक बनावट को संतुलित करने में महत्वपूर्ण और सहायक भूमिका निभाती है बेहतर गुणवत्ता का जीवन प्राप्त करने के लिए एवं अच्छा नागरिक बनने के लिए बच्चों का चहुँमुखी विकास जरूरी है।


 शिक्षा की एक मजबूत नींव के निर्माण से इसे प्राप्त किया जा सकता है। इस मिशन के अनुसरण में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एम.एच.आर.डी.) दो विभागों के माध्यम से काम करता है

 स्कूली शिक्षा और साक्षरता 

 उच्च शिक्षा विभाग

 जहाँ विद्यालय शिक्षा और साक्षरता विभाग देश में स्कूली शिक्षा के विकास के लिए जिम्मेदार है, वहीं उच्च शिक्षा विभाग, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा व्यवस्था में से एक की देखभाल करता है।

 एम.एच.आर.डी. अपने संगठनों जैसे एन.सी.ई.आर.टी, एन.आई.ई.पी.ए. एन.आई.ओ.एस., एन.सी.टी.ई. आदि के साथ मिलकर काम कर रहा है। हालाँकि एम.एच.आर.डी. का दायरा बहुत व्यापक है, यह मॉड्यूल डी.ओ.एस.ई.एल. द्वारा सार्वभौमिक शिक्षा और इसकी गुणवत्ता में सुधार की दिशा में हाल में किए गए प्रयासों पर केंद्रित है।

अधिगम के उद्देश्य

इस मॉड्यूल के अध्ययन से शिक्षार्थी-

डी.ओ.एस.ई.एल. द्वारा स्कूली शिक्षा हेतु किए गए हाल के प्रयासों जैसे- पी. जी. आई., यू.डी.ई.एस.ई.+ आदि के बारे में जागरूकता प्राप्त कर स्कूल में क्रियान्वित कर पाएँगे।

विद्यालय शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए 'समग्र शिक्षा के अंतर्गत उद्देश्यों और प्रावधानों को समझेंगे।

स्कूलों में सीखने-पढ़ने की आदतों को बढ़ावा देने के संदर्भ में पुस्तकालय की पुस्तकों के उपयोग और खेल, रसोईघर से जुड़ी बागवानी (किचन गार्डन; पोषण उद्यान), युवा और पारिस्थितिकी क्लब आदि प्रयासों के माध्यम से बच्चों को आनंदमय एवं अनुभवजन्य अधिगम के अवसर प्रदान करेंगे।

भूमिका

1976 से पहले तक शिक्षा राज्यों की विशेष जिम्मेदारी थी। 1976 का संवैधानिक संशोधन, जिससे शिक्षा समवर्ती सूची में शामिल हुई, एक महत्वपूर्ण दूरगामी कदम था।

 वित्तीय, प्रशासनिक और मूलभूत बदलावों के लिए केंद्र सरकार और राज्यों के बीच ज़िम्मेदारी के नए बंटवारे की आवश्यकता थी।

 हालांकि इससे शिक्षा में राज्यों की भूमिका और जिम्मेदारी काफी हद तक अपरिवर्तित रही है, पर इसके बावजूद केंद्र सरकार ने शिक्षा के राष्ट्रीय और एकीकृत चरित्र को मजबूत करने, सभी स्तरों पर शिक्षा के पेशे सहित अन्य समस्त आयामों में गुणवत्ता और मानक बनाए रखने और देश की शैक्षिक ज़रूरतों के अध्ययन और निगरानी की एक बड़ी ज़िम्मेदारी स्वीकार की। 

देश में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण (यू.ई.ई.) की प्राप्ति के साथ-साथ माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने कई कार्यक्रमों और परियोजनाओं की शुरुआत की, जिन्हें आम तौर पर केंद्र प्रायोजित योजना (सी.एस.एस.) कहा जाता है। 

सी.एस.एस. वे योजनाएँ हैं जो राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों (यू.टी.) की सरकारों द्वारा कार्यान्वित की जाती हैं, लेकिन इनका वित्तपोषण मुख्यतया केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार की भागीदारी भी निर्धारित होती है। शिक्षा पर राष्ट्रीय नीतियों के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए देश की मानव संसाधन क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने तथा समान गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार, विभिन्न केंद्र प्रायोजित योजनाओं के कार्यान्वयन में एकीकृत दृष्टिकोण अपनाती है।

 इसके सर्वमान्य उद्देश्य हैं— गुणवत्तापूर्ण विद्यालय शिक्षा के साथ-साथ पहुँच बढ़ाना; वंचित समूहों और कमजोर वर्गों के समावेश के माध्यम से साम्यता को बढ़ावा देना; और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना।

 हाल ही में एम.एच.आर.डी. ने प्रदर्शन ग्रेड इंडेक्स (पी.जी.आई), यू.डी.आई.एस.ई.+, विद्यालय ऑडिट (शगुनोत्सव) और राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एन.ए.एस.) जैसे कई नये प्रयास किए हैं, ताकि समग्र शिक्षा के अंतर्गत अधिगम प्रतिफलों में सुधार हेतु, प्रशासनिक शासन के मुद्दों और शैक्षणिक कार्यक्रमो सहित, विद्यालयी शिक्षा की संपूर्ण गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके।

 इन पहलों की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन, सभी स्तरों पर समन्वय और राष्ट्रीय स्तर से विद्यालय स्तर तक संस्थानों के बीच मज़बूत संबंध पर निर्भर करती है। 

समग्र शिक्षा- विद्यालयी शिक्षा के लिए समेकित योजना

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 2018-19 में समग्र शिक्षा का शुभारंभ किया। विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में यह एक सर्वसमावेशी कार्यक्रम है, जिसका विस्तार विद्यालय-पूर्व से लेकर बारहवीं कक्षा तक है और इसका उद्देश्य है कि विद्यालयी शिक्षा की प्रभावशीलता, जिसे समरूप अधिगम प्रतिफलों एवं विद्यालय प्रवेश के समान अवसरों के रूप में मापा जाता है, का संवर्धन किया जा सके। 

इसमें सर्व शिक्षा अभियान (एस.एस.ए.), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आर.एम.एस.ए.) और शिक्षक शिक्षा (टी.ई.) की तीन पूर्ववर्ती योजनाएं समाहित है। 

परियोजना उद्देश्यों से शिक्षा की गुणवत्ता और व्यवस्था स्तर पर प्रदर्शन में सुधार के लिए विद्यालयी परिणामों के आधार पर यह योजना राज्यों के उत्साहवर्धन जैसे बदलावों को चिह्नित करती है।

इस योजना में 'विद्यालय' की परिकल्पना विद्यालय-पूर्व, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक एक निरंतरता के रूप में की गयी है।

 योजना की दूरदृष्टि में शिक्षा के लिए सतत विकास लक्ष्य (एस.डी.जी.) के अनुसार विद्यालय-पूर्व से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है। 

एस.डी.जी. लक्ष्य 4.1 में कहा गया है कि "सुनिश्चित करें कि 2030 तक सभी लड़के और लड़कियां, संगत एवं प्रभावी अधिगम प्रतिफलों की ओर ले जाने वाली निःशुल्क, न्यायसंगत एवं गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को पूरा करो" आगे एस.डी.जी. 4.5 में कहा गया है कि "2030 तक, शिक्षा में जेंडर संबंधी विकृतियों को खत्म करें तथा अति संवेदी (वल्नरेबल) लोगों, जिसमें विशेष आवश्यकता समूह और देशज समुदाय के लोगों के साथ ही संवेदनशील परिस्थितियों वाले बच्चे शामिल हैं, के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के सभी स्तरों तक समान पहुँच सुनिश्चित करें।"


विद्यालय व्यवस्था : शिक्षकों के कौशल, विविधता की स्वीकार्यता और समाधान

विद्यार्थियों में अंतर की पहचान करने के लिए संवेदनशीलता विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के गुणों और कमजोरियों, योग्यता और रुचि के बारे में जागरूक होना।


 • विद्यार्थियों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक और भौतिक विविधताओं की स्वीकृति—सामाजिक संरचना, पारंपरिक और सांस्कृतिक प्रथाओं, प्राकृतिक आवास, घर तथा पड़ोस में परिवेश को समझना।

• मतभेदों की सराहना करना और उन्हें संसाधन के रूप में मानना- अधिगम प्रक्रिया में बच्चों के विविध संदर्भ और ज्ञान का उपयोग करना शिक्षण-अधिगम की विभिन्न जरूरतों को समझने के लिए समानुभूति और कार्य- अधिगम शैलियों पर विचार करना और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देना।

 शिक्षार्थियों को विभिन्न विकल्प प्रदान करने के लिए संसाधन जुटाने की क्षमता- आस-पास से कम लागत की सामग्री, कलाकृतियों, अधिगम उपयोगी सहायक स्थानों, मानव संसाधनों और मुद्रित तथा डिजिटल रूप में अनेक संसाधनों को पहचानना एवं व्यवस्थित करना।

• प्रौद्योगिकी के उपयोग से अधिगम सहायता करना- विभिन्न एप्लिकेशन का उपयोग। उदाहरण के लिए गूगल आर्ट एंड कल्चर, गूगल स्काई, गूगल अर्थ, विषय विशिष्ट ऐप्स जियोजेब्रा, ट्रक्स ऑफ़ मैथ और गूगल स्पीका

• अंतर-वैयक्तिक संबंधों मृदु कौशलों से निपटना- सुनने, प्रतिक्रिया देने, बातचीत शुरू करने और बनाए रखने, सकारात्मक संबंध, शारीरिक उपस्थिति और हाव-भाव के कौशल।

जेंडर-संवेदनशील शिक्षा :

हम सभी जानते हैं कि जेंडर सभी विषयों में दखल देने वाला एक सरोकार है और यह ज्ञान के निर्माण के लिए बुनियाद है। जेंडर संवेदनशीलता एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक चिंता है जिसे शिक्षकों को अपने शिक्षण-अधिगम की प्रक्रियाओं में समेकित करना चाहिए। 

सुगमकर्ताओं के रूप में सकारात्मक दृष्टिकोण और शैक्षणिक हस्तक्षेप के द्वारा, वे विद्यार्थियों को सामाजीकरण प्रक्रियाओं से मिले जेंडर तथा रूढ़िवादी दृष्टिकोण को सही रूप से समझने एवं अपनाने में मदद कर सकते हैं।

 शिक्षकों को पाठ्यसामग्री और पाठ्यक्रम संबंधी कार्यों में जेंडर पूर्वाग्रह के कारकों की पहचान करने, पुरुष और महिला पात्रों की भूमिका तय करने और पठन सामग्री के संबंध में पूर्वाग्रह की पहचान करने, भाषायी पूर्वाग्रह का पता लगाने तथा राजनीतिक-सामाजिक एवं आर्थिक प्रक्रियाओं सहित सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को पहचानने की भी आवश्यकता है।

विषयों के अध्यापन में समावेश को बढ़ावा देना-


शीर्षक "मैं, एक शिक्षार्थी के रूप में दिए गए छह कथनों को पढ़ें और उन्हें स्वयं पूरा करें।


मैं, एक शिक्षार्थी के रूप में....


मुझे सीखने में मज़ा आता है, जब---------


मैं जल्दी सीखता हूँ, जब------


पाठ्यपुस्तकों से सीखना। -----------------------  है।


समूहों में सीखना--------------------------------------है।


में किसी और से भली-भाँति सीखता हूँ, जब कोई-----   --------------      -----


मुझे सीखने में मजा आता है, जब-    ----------------


बड़े समूह में प्रत्येक कथन पर अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा करें और उन पर विचार-विमर्श करो यह स्पष्ट है कि हम सभी के लिए सफलतापूर्वक सीखने की अपनी प्राथमिकता है।

 उपरोक्त अभ्यास का उपयोग आपकी कक्षा के बच्चों के साथ विद्यार्थियों के रूप में उनके बारे में अधिक जानने के लिए और तदनुसार शिक्षण की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है। 

आप बच्चों को मौखिक रूप से वाक्य लिखने या प्रतिक्रिया देने के लिए कह सकते हैं।



भाषाओं के शिक्षण में समावेश:

कुछ बच्चों को भाषा सीखने में विशिष्ट कठिनाइयाँ हो सकती हैं। कठिनाइयों को दूर करने के लिए शिक्षकों को उपयुक्त कार्यनीति अपनाने की आवश्यकता हो सकती है। इनमें, ये कार्यनीतियाँ शामिल हो सकती हैं।

 • सभी बच्चों को लाभान्वित करने वाली वास्तविक जीवन स्थितियों से संबंधित सामग्री को शामिल करना। 

• जहाँ किसी भी क्षेत्र में एक से अधिक भाषाओं का उपयोग किया जाता है, वहाँ

अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाने वाली अथवा पसंदीदा भाषा का उपयोग। सभी बच्चों में सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) और ब्रेल-लिपि के बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करना। .

बोली जाने वाली भाषा का उपयोग करने में आने वाली कठिनाइयों की भरपाई के लिए वैकल्पिक संचार प्रणाली।

लेखन में कठिनाइयों का सामना करने वाले बच्चों के लिए आई.सी.टी. का उपयोग करना।

• कुछ बच्चों को लिखित जानकारी को समझने के लिए सहायता की आवश्यकता हो सकती है।

• दृश्य सामग्री से सीखने और लंबे अनुच्छेदों के लिए व्यक्तिगत ध्यान तथा अधिक समय दें। ब्रेल-पठन सामग्री को पढ़ने का अर्थ है वाक्यांशों, वाक्यों आदि को संश्लेषित कर

पूर्णता में याद रखना। यही कारण है कि ब्रेल पाठ को पढ़ने के दौरान दृष्टिबाधित बच्चों को अधिक समय की आवश्यकता होती है।

• श्रवणबाधित बच्चों के साथ काम करने वाले शिक्षकों और अन्य लोगों के लिए ज़रूरी है कि वह नयी शब्दावली को समझने, शब्दों के बीच भेदभाव करने और कई अर्थों वाले शब्दों को समझने में आवश्यकतानुसार सहायता प्रदान करें।

• वाक्यों की रचना में व्याकरण और शब्दों का सही उपयोग करना शामिल है, जो कुछ बच्चों के लिए मुश्किल हो सकता है। व्याकरण (भूत काल, अव्यय, कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य आदि) का उपयोग करने में भी शायद उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

 शिक्षकों को वाक्य निर्माण, विचारों और अवधारणाओं के बीच संबंध बनाने, विचारों को समझने तथा वाक्यांशों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

• संज्ञानात्मक दुर्बलता वाले बच्चों के साथ काम करने वाले शिक्षकों और अन्य लोगों के लिए आवश्यक है कि वे मौखिक भाषा (सुनना, विचारों की अभिव्यक्ति और बोलना), मुखरता (धाराप्रवाह और सुसंगत रूप से बोलने की क्षमता) और पढ़ने (डिकोडिंग ध्वन्यात्मक ज्ञान और शब्द पहचानने) में उनकी सहायता प्रदान करें।

 विद्यार्थी कुछ शब्दों को छोड़ सकता है, उनका स्थान भुला सकता है, एक शब्द की बजाय दूसरा उपयोग कर सकता है और आलंकारिक भाषा, जैसे— मुहावरे, रूपक, उपमा इत्यादि को समझने में कठिनाई का अनुभव कर सकता है।


• बच्चों को कक्षा में भाषा बोध (नयी शब्दावली, वाक्य संरचना, विभिन्न अर्थों और अवधारणाओं वाले शब्दों) या समझने या लिखने में कठिनाई हो सकती है; विशेष रूप से तब, जब कक्षा में तेज़ी से प्रस्तुति की जाती है। 

शिक्षकों को यह भी याद रखने की आवश्यकता है कि कुछ बच्चों को विचारों को व्यवस्थित करने, पाठ याद करने व दोहराने, शब्दों का उच्चारण करने या एक कहानी का क्रम ज्ञात करने और आँखों के तालमेल वाली गतिविधियों तथा लेखन (अस्पष्ट लिखावट, वर्तनी की लगातार गलतियाँ) करते समय कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।


गणित के शिक्षण में समावेश :

कुछ विद्यार्थियों की संबंधित कठिनाइयों को करने के लिए आवश्यक है कि भाषा को दूर सरल बनाया जाए। स्पर्शनीय सामग्री, ज्यामिति के लिए सहायक शिक्षण सामग्री और प्रश्नों को हल करते समय संगणक उपलब्ध कराया जाए।

 बच्चों को ग्राफ़, सारणी या बार चार्ट में आंकड़ों की व्याख्या करने में भी मदद की आवश्यकता हो सकती है। ऐसे विद्यार्थी हो सकते हैं जिन्हें दिशाओं की मौखिक व्याख्या करने या मानसिक गणना करते समय मदद की आवश्यकता हो।

 आई.सी.टी. का उपयोग मात्रात्मक और अमूर्त अवधारणाओं के साथ कठिनाइयों को दूर करने में मदद कर सकता है। दृष्टिबाधित बच्चों के साथ काम करने वाले शिक्षकों और अन्य लोगों को उन्हें स्थानिक

अवधारणाओं को विकसित करने और स्थानिक अवधारणाओं के बीच संबंधों को समझने, त्रि-आयामी वस्तुओं के दो-आयामी स्वरूप को समझने और गणित संबंधी विशेष अक्षरों (प्रतीकों) को समझने के लिए सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है। 

इन बच्चों को गणितीय पाठ की ऑडियो रिकॉर्डिंग (उदाहरण के लिए, समीकरण) की व्याख्या करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। 

इन्हें स्थानिक व्यवस्था, रंग कोड और नेमेथ (Nemeth) या किसी अन्य गणितीय ब्रेल कोड को समझने में अथवा गणितीय पाठ को लिखने और पढ़ने में कठिनाई हो सकती है।

• श्रवणबाधित बच्चों के साथ काम करने वाले शिक्षकों और अन्य लोगों को बच्चों के लिए सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है- भाषायी विकास में देरी के कारण, जिससे सामान्य शब्दावली और गणित की तकनीकी शब्दावली (पारस्परिक, रैखिक जैसे शब्दों) की कमी हो सकती है, गणितीय समस्याओं के अर्थ को समझाने के लिए अत्यधिक शब्दों और बहुअर्थों वाले विभिन्न शब्दों का प्रयोग, जैसे-ब्याज, सारणी, क्रेडिट, दर, आयतन, ऊर्जा, बिंदु, कोण इत्यादि।

 होठों/स्पीच रीडिंग के दौरान विद्यार्थी को शायद कुछ गणित के शब्दों, से— दसवीं और दसवीं, साठ और आठ आदि में भेद करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। 

संज्ञानात्मक कार्यनीतियों के उपयोग से सार्थक जानकारी का चयन करने और समस्याओं को हल करने के लिए आवश्यक नियमों को लागू करने संबंधी सीमाओं के कारण भी समस्यायों का सामना करना पड़ सकता है। 

• संज्ञानात्मक हानि वाले बच्चों को अनुक्रमण, समस्या को चरणबद्ध हल करने और स्थानीय मान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

 गणितीय गणना, संख्या में परिवर्तन, समस्याओं की प्रतिलिपि बनाना और परिचालन प्रतीकों में भ्रम, जैसे कि x की जगह + और संचालन के अनुक्रमों को याद रखने में कठिनाई भी स्पष्ट है।

 बीजगणित और पूर्णांकों आदि में अमूर्त अवधारणाओं को समझने और ज्यामिति में विभिन्न आकृतियों की पहचान, दिशात्मकता और शब्द समस्याओं को समझने में भी बच्चों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।


ईवीएस और विज्ञान के शिक्षण में समावेश:

• अंदर एवं बाहर की जाने वाली गतिविधियों में कुछ विद्यार्थियों को गतिशीलता और प्रयोगोचित हेर-फेर कुशलताओं में सहायता की आवश्यकता हो सकती है।

 विद्यार्थियों को अनुकूलित या वैकल्पिक गतिविधियों, अनुकूलित उपकरण, आई.सी.टी. का उपयोग, वयस्क या साथियों की सहायता, अतिरिक्त समय और उन पाठों में सहायता से लाभ हो सकता है जो उनके लिए आसानी से सुलभ नहीं हो सकते हैं।

 • कम दृष्टि वाले या दृष्टिहीन बच्चों के साथ काम करने वाले शिक्षकों और अन्य लोगों को चाक बोर्ड पर किए गए कार्यों, प्रदर्शनों, प्रस्तुतियों, ग्राफ़िक्स और आरेखों, प्रयोगों, भौतिक सुरक्षा, सार और कठिन अवधारणाओं को समझने के लिए सहायता की आवश्यकता हो सकती है। इस सब के लिए अधिक समय की आवश्यकता भी हो सकती है।

 श्रवणबाधित बच्चों को अमूर्त शब्दों और अमूर्त अवधारणाओं के बीच संबंध को समझने के लिए सहयोग की आवश्यकता हो सकती है।

 प्रकाश संश्लेषण, अधिवास (habitat) और सूक्ष्मजीव जैसी वैज्ञानिक अवधारणाओं को दृश्य सहायक सामग्री के बिना समझने में कठिनाई हो सकती हैं।

 एक से अधिक आयामों/चरणों वाली समस्याओं को हल करना, उदाहरण के लिए कई आयामों, जैसे- संख्या, आकार और रंग के आधार पर वस्तुओं की तुलना, अपेक्षाकृत रूप से केवल आकार के आधार पर वस्तुओं की तुलना करने से जटिल है।

• संज्ञानात्मक दुर्बलता वाले बच्चों की समुचित समझ हेतु, विज्ञान की तकनीकी भाषा समझाने और अवधारणाओं (उदाहरण के लिए, दबाव और बल) के बीच सार्थक संबंध/संबंधों को उजागर करने के लिए उचित योजना बनाने की आवश्यकता है।

 अमूर्त अवधारणाओं को समझने, योजना बनाने, आयोजन, अनुक्रमण और सामान्यीकरण के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। विज्ञान के प्रयोगों का संचालन करते समय साथियों द्वारा दी गई सहायता काफी लाभदायक है।


सामाजिक विज्ञान के शिक्षण में समावेश:

ईवीएस और सामाजिक विज्ञान में सीखने के प्रतिफलों को प्राप्त करने के लिए कुछ विद्यार्थियों को सहायक सामग्रियों एवं अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता हो सकती है पाठ्यपुस्तकों की सुलभता हेतु बोलने वाली पुस्तकें/डी.ए.आई.एस.वाई. (डेज़ी) पुस्तकें; वैकल्पिक संचार विधियों, जैसे आई.सी.टी.या डिजिटल सहायता से बोलकर अपने विचारों को संप्रेषित करने के लिए लेखन में मदद; सामग्री और गतिविधियों का अनुकूलन; दिखाई देने वाली जानकारी का प्रबंधन करने के लिए शिक्षा की सहायक वस्तुएँ या विभिन्न भौगोलिक अवधारणाओं, विशेषताओं और पर्यावरण को समझने के लिए सहायता। 

समूह गतिविधियों, जैसे सहयोगी अधिगम द्वारा परियोजना एवं प्रदत्त कार्य (असाइनमेंट) करने से सभी विद्यार्थी कक्षा की सभी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनेंगे। स्पर्श योग्य आरेख/नक्शे, बोलती किताबें, ऑडियो-विजुअल और ब्रेल सामग्री आदि जैसे संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है।

• शिक्षकों को भौगोलिक शब्दावली और अवधारणाओं की व्याख्या करते हुए, दृष्टिबाधित बच्चों के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है।

 उदाहरण के लिए अक्षांश, देशांतर, दिशा-निर्देश और ग्राफ़िक, दृश्य चित्रण जैसे ग्राफ़िक और स्मारकों की वास्तु संरचना का अध्ययन करते समय दृश्य विवरण प्रदान करना, नक्शा, चित्र, शिलालेख और प्रतीक के बारे में बताना।

• इन बच्चों को पर्यावरण और अंतरिक्ष का अवलोकन करने के लिए भी सहायता की आवश्यकता होती है- भूमि, जलवायु, वनस्पति और वन्य जीवन, संसाधनों और सेवाओं का विवरण अध्ययन सामग्री, जैसे-प्रश्न वर्तनी सूची, महत्वपूर्ण संदर्भ, प्रश्नोत्तर और विद्यार्थियों के लिए उपयोगी अन्य जानकारी को स्पर्शक/उभरे प्रारूप या उचित रंग विरोधाभास के साथ पुनः बनाई अथवा बड़े अक्षरों में प्रदान की जा सकती हैं।

• श्रवणबाधित बच्चों को शब्दावली/तकनीकी शब्दों, अमूर्त अवधारणाओं, तथ्यों, तुलनाओं, प्रभाव संबंधों और घटनाओं के कालक्रम आदि की समझ के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। 

इससे उन्हें इतिहास और नागरिक शास्त्र में भारी भरकम पाठ (पाठ्यपुस्तक स्रोत सामग्री) का अध्ययन करते समय पढ़ने में मदद मिलती है और वे निष्कर्ष निकाल पाते हैं।

संज्ञानात्मक प्रसंस्करण की समस्या रखने वाले कुछ बच्चों के लिए चित्र, चार्ट, ग्राफ़ और नक्शे को समझना मुश्किल हो सकता है। पढ़ने की कठिनाइयों वाले विद्यार्थियों के लिए लंबे पाठ से सार्थक जानकारी निकालना एक चुनौती हो सकती है।

 इसके अलावा शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि घटनाओं के अनुक्रम को याद रखना और उन्हें आपस में जोड़ना, सर्वमान्यीकरण करना तथा पाठ्यपुस्तकों में दी गई जानकारी को मौजूदा परिवेश के साथ जोड़ना भी कभी-कभी समस्याओं का कारण बन सकता है। 

कुछ बच्चों में अमूर्त अवधारणाओं को समझने और उनकी व्याख्या करने की सीमित क्षमता हो सकती है।



समावेशी वातावरण में मूल्यांकन:

पिछले खंड में विविध शिक्षण आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए समावेशी कक्षा निर्माण में आपकी मदद हेतु कुछ विचार एवं उदाहरण प्रस्तुत किए गए। 

इस खंड में समावेशी व्यवस्था में मूल्यांकन को लागू करने के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं और ये आपको समावेशी मूल्यांकन में संलग्न होने के नये तरीके विकसित करने के लिए प्रेरित करेंगे। अपने शिक्षण की योजना बनाते समय यह याद रखना अच्छा है कि मूल्यांकन तो पूरे पाठ-शिक्षण के दौरान होता है। 

यह आपको विषय के शिक्षण में निम्नलिखित चरणों को पहचानने और योजना बनाने की अनुमति देता है। अपने पाठ-शिक्षण के अंत में किए मूल्यांकन से यह समझने में मदद मिलती है कि शिक्षण उद्देश्यों की कितनी प्राप्ति हो पाई है।

• एक मिश्रित क्षमता समूह में एक प्रश्न के लिए विभिन्न प्रतिक्रियाओं को प्रोत्साहित करें और स्पष्ट संदेश दें। एक प्रश्न पूछने के बाद पर्याप्त समय के लिए ठह।

 हमें याद रखना चाहिए कि सामग्री को समझाने के लिए की गई गतिविधियाँ फिर से मूल्यांकन के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं। 

• उत्तर देने में लचीलापन अपनाएं। उदाहरण के लिए, याद करने के बजाय देखकर अथवा पहचानकर चुनने, सही उत्तर को रंग करने, काटने और चिपकाने, मिलान करने, विषम चीज़ को इंगित करने आदि के लिए कहें। मसलन-


• श्रवण प्रसंस्करण की आवश्यकता वाले उत्तरों के लिए एकाक्षर (मोनोसिलेबल्स) में प्रतिक्रियाओं को स्वीकार करें। • पाठ्यपुस्तक के अभ्यासों में वर्णमाला की गतिविधियों की ट्रेसिंग की जगह अक्षर के कट-आउट का उपयोग करें, जिससे विद्यार्थी को वर्णमाला के उतार-चढ़ाव और आकार को अधिक बारीकी से जानने में मदद मिलती है।


बोलने संबंधित देरी वाले विद्यार्थियों को अपने अधिगम का प्रदर्शन वैकल्पिक रूप से चित्रों या टिकटों के उपयोग, सीखे हुए को चित्र में, इशारा करके प्रदर्शित करने की अनुमति दें।

• केवल मौखिक या लिखित प्रति उत्तर के बजाय प्रति-उत्तर प्राप्त करने के लिए फ्लैश कार्ड, शब्द कार्ड (उदाहरण के लिए, शब्दों को पेश करने या व्याकरणिक रूप से सही वाक्य का निर्माण करने के लिए), चित्रों और वास्तविक वस्तुओं का उपयोग करें।

 उदाहरण के लिए जब आप किसी जानवर का नाम कहते हैं तो बच्चे को फ्लैश कार्ड लेने के लिए कहें। वास्तविक वस्तुओं की मदद से उत्तर या मिलान की जाँच जैसी गतिविधियां की जा सकती हैं।


निष्कर्ष:

यह मॉड्यूल, विद्यालयों को समावेशी बनाने के काम में लगे हुए शिक्षकों और अन्य सभी हितधारकों की, अपने कार्य हेतु उस आवश्यक ज्ञान, दृष्टिकोण और कौशल प्राप्ति में मदद करेगा, जो विभिन्न समूहों के विद्यार्थियों के साथ प्रभावी ढंग से काम करने के लिए जरूरी है। 

यह सामग्री पाठकों को राष्ट्रीय नीतियों, पाठ्यचर्या की रूपरेखा, विशेष रूप से एन.सी.एफ. 2005, सीखने के प्रतिफलों और उन्हें प्राप्त करने के लिए उपयुक्त तकनीकों के बारे में नजदीकी से जानने में मदद करेगी। 

यह शिक्षकों को इन बातों में सक्षम बनाने में मददगार होगा— समावेशी कार्यनीतियों का उपयोग करने और प्रत्येक बच्चे को समूह के सदस्य के रूप में स्वीकार करने, सभी विद्यार्थियों की ज़रूरतों के लिए कक्षा को भौतिक और व्यावहारिक रूप से पुनर्गठित करने तथा गतिविधियों की योजना इस तरह से बनाने ताकि कक्षा में सभी विद्यार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित हो और दूसरा विद्यालय में, विद्यार्थियों की विविधता को संबोधित करने हेतु व्यवहार हो।


स्व-मूल्यांकन:

. पाठ पढ़ाते समय विविध आवश्यकता वाले विद्यार्थियों की सहायता करने के लिए आप अपने शिक्षण विषय में जो भी परिवर्तन करेंगे, उन्हें सारांशित करें।


आपके विचार में जो सबसे महत्वपूर्ण है, उससे शुरू करते हुए इनकी प्राथमिकता


1.


2.


3.


शिक्षक के रूप में, उस समर्थन और मार्गदर्शन को पहचानें जो इन परिवर्तनों को करने में आपकी


मदद करेगा। ये बदलाव सभी बच्चों के लिए कैसे फायदेमंद हो सकते हैं? अपने विद्यालय में अन्य सहयोगियों के साथ अपने उत्तरों की तुलना करें और अपनी सूची में नये विचार जोड़ें। • मैं सभी बच्चों के लिए मूल्यांकन को कैसे सार्थक और समावेशी बनाऊँगा? अपनी सूची की तुलना अपने साथी से करें।




एन.सी.एफ. 2005 के अनुसार, मूल्यांकन का उद्देश्य नहीं है: 

बच्चों को भय के वातावरण में पढ़ने के लिए मजबूर करना। 'धीमा सीखने वाले विद्यार्थियों' या अव्वल आने वाले विद्यार्थियों' या 'समस्या वाले बच्चों के रूप में विद्यार्थियों को पहचानना या लेबल करना। ऐसी श्रेणियाँ बच्चों में अलगाव पैदा करती हैं और सीखने का दायित्व पूर्णतया बच्चों पर डालकर, उन्हें शिक्षा शास्त्र की भूमिका और उद्देश्य से अलग कर देती हैं।




समावेशी शिक्षा और आर.पी.डब्ल्यू.डी. अधिनियम, 2016


हाल ही में पारित आर.पी.डब्ल्यू.डी. अधिनियम, 2016 जिसे हिंदी में दिव्यांगजन अधिकार कानून, 2016 के रूप में भी जाना जाता है, समावेशी शिक्षा को परिभाषित करता है और इसे बढ़ावा देता है-

समावेशी शिक्षा का अर्थ, शिक्षा की एक ऐसी प्रणाली से है जिसमें सामान्य और विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थी एक साथ सीखते हैं और शिक्षण-अधिगम व्यवस्था को विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों की विभिन्न प्रकार की शिक्षण अधिगम की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उपयुक्त रूप से अनुकूलित किया जाता है। (आर.पी.डब्ल्यू.डी. अधिनियम, 2016 का अनुच्छेद 1 एम)




'द एनिमल स्कूल' (जानवरों का विद्यालय)-विश्लेषण के लिए एक कहानी

 एक बार जानवरों ने फैसला किया कि उन्हें 'नयी दुनिया की समस्याओं को संबोधित करने के लिए कुछ अलग करना होगा, इसलिए उन्होंने एक विद्यालय तैयार किया। उन्होंने दौड़, चढ़ाई, तैराकी और उड़ान से जुड़ी एक गतिविधि पाठ्यचर्या को अपनाया।

पाठ्यचर्या संचालन आसान बनाने के लिए सभी जानवरों को प्रत्येक विषय लेना आवश्यक बनाया गया।


 बत्तख तैराकी में उत्कृष्ट थी। वास्तव में, अपने प्रशिक्षण से भी बेहतर थी, लेकिन उड़ान में उसे केवल पास होने लायक ग्रेड मिले और वह दौड़ने में बहुत कमजोर थी। 

चूँकि दौड़ने में वह बेहद कमज़ोर थी, इसलिए उसे दौड़ने का अभ्यास करने के लिए विद्यालय के बाद रुकना पड़ा और तुर्की भी छोड़नी पड़ी।

ऐसा तब तक किया गया, जब तक कि तैरने में सहायक उसके जालीदार पैर खराब नहीं हो गए और वह तैराकी में औसत स्तर पर आ गई, लेकिन विद्यालय में औसत स्वीकार्य था। 

इसलिए किसी को भी इस बात की ज़रा-सी भी चिंता नहीं थी, सिवाय बत्तख के खरगोश ने अपनी शुरुआत कक्षा में दौड़ने में अव्वल आने से की, लेकिन तैराकी में उसे इतना सारा काम (अभ्यास एवं पूरक) करना पड़ा कि उसका मानसिक संतुलन जैसे बिगड़ ही गया था।

 गिलहरी चढ़ाई करने में तब तक उत्कृष्ट थी, जब तक कि उसकी रुचि खत्म नहीं हुई, लेकिन फिर उसके शिक्षक ने उसे बार-बार पेड़ से नीचे आने की बजाय केवल जमीन से पेड़ की ओर ही बार-बार जाने के लिए कहा और मामला बिगड़ना शुरू हो गया।

 उसे बहुत मेहनत करने के लिए कहा गया और परिणामस्वरुप उसे चढ़ाई में 'सी' और दौड़ने में 'डी' ग्रेड मिला।


जॉर्ज रिएविस की काल्पनिक कहानी, 'द एनिमल स्कूल' का एक रूपांतरण, जिसे मूल रूप से 1940 में लिखा गया था, जब वह सिनसिनाटी पब्लिक स्कूलों के अधीक्षक थे।


• बाज़ एक समस्या वाला बच्चा था और उसे गंभीरता से अनुशासित किया गया। चढाई की कक्षा में उसने अन्य सभी लोगों को पेड़ से ऊपर पहुंचने में हरा दिया. लेकिन उसे पसंद नहीं किया गया क्योंकि उसने वहाँ तक पहुँचने के लिए अपने तरीके का उपयोग करने पर जोर दिया। • वर्ष के अंत में एक असामान्य ईल जो बेहद अच्छी तरह से तैर सकती थी, थोड़ी चढ़ाई, थोड़ी दौड़-भाग और थोड़ा-बहुत उड़ भी सकती थी, को सबसे अधिक औसत अंक मिले और वह विजेता बनी। प्रेअरी कुत्ते विद्यालय से बाहर ही रहे और प्रशासन से लड़ते रहे क्योंकि खुदाई और बिल बनाने को पाठ्यचर्या में शामिल नहीं किया जा रहा था


कार्य-पत्रिका हेतु विचार साझा करें-

. सभी जानवरों ने एक ही जैसे विषय क्यों लिए? क्या उन सभी को इससे लाभ मिला?

. विद्यालय द्वारा सभी विषयों में औसत होना स्वीकार्य था। क्या यह सभी जानवरों के लिए उपयुक्त था?

आपके विचार में गिलहरी को पेड़ के ऊपर से नीचे की ओर उड़कर क्यों नहीं आने दिया गया? 

• बाज़ को एक समस्या वाले बच्चे के रूप में क्यों देखा गया? आपके विचार में प्रेअरी कुत्ते पाठ्यचर्या में खुदाई करना और बिल बनाना क्यों शामिल करना चाहते थे?


विद्यालयों में भेदभाव, शारीरिक दंड, दुर्व्यवहार या छेड़छाड़/बदमाशी का डर तो नहीं ही होना चाहिए। साथ ही, शिक्षकों को अपने अधिगम कार्यों और शिक्षणशास्त्रीय अभ्यासों की योजना इस तरह से बनाने की ज़रूरत है कि सभी बच्चे, शिक्षा प्रक्रिया में समान रूप से भाग ले सकें।

 कक्षा का माहौल ऐसा होना चाहिए कि हर बच्चा उदासी महसूस करने, ऊबने,डरने या अकेले रहने के बजाय, खुश और तनावमुक्त महसूस करे। सभी बच्चों को समान रूप से दिए गए शिक्षा के मौलिक अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए सभी विद्यार्थियो के लिए सुरक्षित और समावेशी वातावरण बनाना महत्वपूर्ण है। 

प्रत्येक बच्चे को अधिकार है कि उसे अपने समुदाय के विद्यालय में प्रवेश के लिए और शिक्षकों एवं साथियों के साथ सम्मानपूर्वक जुड़ाव एवं सम्मिलित होने के लिए सहयोग मिले। 

अध्ययनों से पता चला है कि अलगाव वाली स्कूली शिक्षा की तुलना में समावेश शिक्षा का तरीका कम खर्चीला और शैक्षणिक एवं सामाजिक रूप से अधिक प्रभावी है।

 जब सभी बच्चे, उनकी पृष्ठभूमि या सीखने की जरूरतों पर आधारित भेदभाव के बिना एक साथ शिक्षित होते हैं, तो सभी को लाभ होता है और यही समावेशी शिक्षा की आधारशिला है। 

बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और अधिगम के अवसर प्रदान करने के लिए विद्यालय और शिक्षकों को अत्यधिक मेहनत के साथ अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए।


सीखने के प्रतिफल, शिक्षण-विधियाँ, समावेशी शिक्षा में आ शिक्षकों की भूमिका

रा.शै.अ.प्र.प. ने सीखने के प्रतिफल को विकसित किया है जो पठन सामग्री को रटकर याद करने पर आधारित मूल्यांकन से दूर हटाने के लिए बनाया गया है।


 योग्यता (सीखने के प्रतिफल) आधारित मूल्यांकन पर जोर देकर, शिक्षकों और पूरी व्यवस्था को यह समझने में मदद की गई है कि बच्चे ज्ञान, कौशल और सामाजिक-व्यक्तिगत गुणों और दृष्टिकोणों में परिवर्तन के मामले में वर्ष के दौरान एक विशेष कक्षा में क्या हासिल करेंगे।

 सीखने के प्रतिफल ज्ञान और कौशल से परिपूर्ण ऐसे कथन हैं जिन्हें बच्चों को एक विशेष कक्षा या पाठ्यक्रम के अंत तक प्राप्त करने की आवश्यकता है और यह अधिगम संवर्धन की उन शिक्षणशास्त्रीय विधियों से समर्थित हैं जिनका क्रियान्वयन शिक्षकों द्वारा करने की आवश्यकता है।

 ये कथन प्रक्रिया आधारित हैं और समग्र विकास के पैमाने पर बच्चे की प्रगति का आकलन करने के लिए गुणात्मक या मात्रात्मक दोनों तरीके से जाँच योग्य बिंदु प्रदान करते हैं। पर्यावरणीय अध्ययन के लिए सीखने के दो प्रतिफल नीचे दिए गए हैं।


. विद्यार्थी विभिन्न आयुवर्ग के लोगों, जानवरों और पक्षियों में भोजन तथा पानी की आवश्यकता, भोजन और पानी की उपलब्धता तथा घर एवं आस-पास के परिवेश में पानी के उपयोग का वर्णन करता है।


• विद्यार्थी मौखिक/लिखित/अन्य तरीकों से परिवार के सदस्यों की भूमिका, परिवार के प्रभावों (लक्षणों/विशेषताओं/आदतों/प्रथाओं) और एक साथ रहने की आवश्यकता का मौखिक/लिखित या किसी अन्य माध्यम से वर्णन करता है।

 उपर्युक्त सीखने के प्रतिफलों को प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से या जोड़े अथवा समूहों में काम करने के अवसर प्रदान किए जाते हैं और उन्हें आस-पास के परिवेश का अवलोकन और अन्वेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, उन्हें मौखिक लिखित चित्र/संकेतों में अपने अनुभव दर्ज एवं व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है।

 बच्चों को बड़ों के साथ चर्चा करने और विभिन्न स्थानों पर जाने, उनकी पसंद के विषय पर उनसे जानकारी एकत्र करने और निष्कर्षों पर समूहों में चर्चा करने की अनुमति देने की आवश्यकता है।

आरंभिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल सभी बच्चों, जिसमें विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे (सी.डब्ल्यू.एस.एन.) और वंचित समूहों से संबंधित बच्चे भी सम्मिलित हैं, को प्रभावी रूप से सीखने के अवसर प्रदान करने के लिए हैं।

 इन्हें विभिन्न पाठ्यक्रम क्षेत्रों, जैसे—पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और भाषा के लिए विकसित किया गया है।

 सीखने के प्रतिफल सभी बच्चों, में विशेष आवश्यकता वाले बच्चे (सी.डब्ल्यू.एस.एन.) भी शामिल हैं, की शिक्षणशास्त्रीय प्रक्रियाओं और पाठ्यचर्या संबंधी अपेक्षाओं से जुड़े हैं।

 वंचित समूहों से संबंधित बच्चों के प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं।

• अधिगम प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें और उन्हें अन्य बच्चों की तरह प्रगति करने में मदद करें। बच्चों की आपस में तुलना करने से बचें। • व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यचर्या और सीखने के परिवेश में बदलाव करना।

. विभिन्न पठन क्षेत्रों में अनुकूलित गतिविधियों का प्रावधान

• उम्र और सीखने के स्तरों के अनुरूप सुलभ पाठ और सामग्री। कक्षाओं का उपयुक्त प्रबंधन, जैसे—शोर, चकाचौंध आदि का प्रबंधन। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.), वीडियो या डिजिटल स्वरूप का उपयोग करके अतिरिक्त सहायता का प्रावधान।

गतिशीलता सहायक यंत्र (व्हील चेयर, बैसाखी, सफ़ेद बेंत), श्रवण-सहायक, ऑप्टिकल या गैर-ऑप्टिकल सहायता, शैक्षिक सहायता (टेलर फ्रेम, एबेकस आदि)। • अन्य बच्चों को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की विशेषताओं और कमज़ोरियों के प्रति संवेदनशील बनाना।

• आकलन के सफल समापन के लिए उपयुक्त विधि और अतिरिक्त समय का चयन करना। घरेलू भाषा के लिए सम्मान और सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश (जैसे-परंपराएँ और रीतिगत प्रथाएँ आदि) से जुड़वा।


सभी बच्चों के लिए सीखने के प्रतिफल प्राप्त करने हेतु शिक्षण-विधियाँ समावेशी शिक्षा-शिक्षकों की भूमिका :

 शिक्षा प्रक्रिया का वह एक हिस्सा जो विशेष आवश्यकता वाले और हाशिए पर रह रहे अन्य बच्चों को समावेशित करता है, के लिए एक महत्वपूर्ण वैचारिक विश्लेषण की आवश्यकता है कि क्यों वर्तमान में उपलब्ध नियमित मुख्यधारा प्रणाली, विद्यालयी-उम्र के सभी बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने में सफल नहीं हो रही है।

 इसके लिए आवश्यकता है कि स्थानीय संदर्भों में मौजूदा संसाधनों एवं नवीन प्रथाओं की पहचान, पहुँच, सहभागिता एवं अधिगम धातुओं की जाँच भी की जानी चाहिए।

 नीचे दी गई कहानी 'द एनिमल स्कूल' (जानवरों का विद्यालय) पढ़ें। कहानी पढ़ने के बाद दिए गए प्रत्येक प्रश्न पर अपने विचार पूरे समूह के साथ साझा करें-

शिक्षकों को यह याद रखना चाहिए कि प्रभावी और समावेशी शिक्षण सभी बच्चों के लिए अच्छा है। इससे बच्चों की विलक्षण विशेषताओं/गुणों और कमज़ोरियों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है और इस प्रकार उनकी व्यक्तिगत अधिगम की आवश्यकताओं को भी पूरा किया जाता है।

 सीखने के प्रतिफलों को प्राप्त करने के लिए सभी विद्यार्थियों को अधिगम के प्रभावी अवसर प्रदान करने होंगे, जिसके लिए विशिष्टता से समावेशिता तक एक नाटकीय बदलाव की आवश्यकता है। यदि हमें विद्यालय में सफलता (एन.सी.एफ. 2005) हासिल करनी है तो न केवल सांस्कृतिक विविधता बल्कि विविध सामाजिक तथा आर्थिक पृष्ठभूमि वाले और शारीरिक, मनोवैज्ञानिक एवं बौद्धिक विशेषताओं में भिन्नता वाले बच्चों को भी ध्यान में रखना होगा।


राष्ट्रीय पाठ्यचर्या(एन.सी.एफ. 2005 ) की रूपरेखा – ऐतिहासिक अवलोकन (पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकें और विशेषताएँ)

एन.सी.एफ. 2005 एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। कक्षा-कक्ष के संबंध में इसके निहितार्थों को अधिक गहराई से समझने से पहले विभिन्न नीतियों और रूपरेखाओं के ऐतिहासिक अवलोकन की आवश्यकता है। 




पाठ्यचर्या संबंधित सामग्री विकास की संस्कृति के साथ, रा.शै.अ.प्र.प. (एन.सी.ई.आर.टी.) की स्थापना 1961 में हुई थी और 1975 में पहली पाठ्यचर्या रूपरेखा विकसित की गई थी।

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुवर्तन के रूप में रा.शै.अ.प्र.प. ने वर्ष 1988 में प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा नामक एक और पाठ्यचर्या की रूपरेखा तैयार की।

इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 द्वारा सुझाए गए सर्वमान्य मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया। वर्ष 2000 में, स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2000 तैयार की गई।

 इस पाठ्यचर्या का मुख्य ज़ोर अधिगम पर था, जो ऐसी शिक्षा की ओर ले जाता हो जो असमानता से लड़ने में मदद करती है और विद्यार्थियों की सामाजिक, सांस्कृतिक,भावनात्मक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संबोधित करती है।

एन.सी.एफ. 2005

वर्ष 2005 में, रा.शै.अ.प्र.प. ने स्कूली शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर 21 आधार-पत्रों के साथ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 तैयार की। 

नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बाल अधिकार अधिनियम, 2009 में स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के कार्यान्वयन का उल्लेख करते हुए विद्यार्थी-केंद्रित ऐसे पर्यावरण निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही गयी है, जिसमें विद्यार्थी किसी तनाव के बिना सीखते हैं।

 अधिक जानकारी के लिए, वेब लिंक https://mhrd.gov.in/rte देखें। सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के मद्देनजर, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (एन.सी.एफ. 2005) में स्कूली शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्यों को पहचाना गया है

• बच्चों को उनके विचार और कार्य में स्वतंत्र होना और दूसरों के प्रति और उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशील बनाना।

• बच्चों को एक लचीली और रचनात्मक तरीके से नवी स्थितियों का सामना करने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिए सशक्त बनाना।

 • बच्चों में विकास की दिशा में काम करने और आर्थिक प्रक्रियाओं और सामाजिक परिवर्तन में योगदान करने की क्षमता का विकास करना। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्कूलों को समानता, गुणवत्ता और लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। देश की विविधता को देखते हुए, विद्यार्थियों के संदर्भों को कक्षा में लाना महत्वपूर्ण है।

 एन.सी.एफ. 2005 पाठ्यपुस्तकों से परे जाने के लिए शिक्षकों की भूमिका पर जोर देती है ताकि बच्चे अपने स्वयं के अनुभवों से रोल प्ले, ड्राइंग, पेंटिंग, ड्रामा, शैक्षिक भ्रमण और प्रयोगों के संचालन के माध्यम से सीख सकें।

एन.सी.एफ. 2005 में मूल्यांकन को अधिगम और शिक्षा की अंतर्निहित प्रक्रियाओं के रूप में देखने की जरूरत पर भी जोर दिया गया है। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षक अपने परीक्षण के परिणामों की प्रतीक्षा करने, रिकॉर्डिंग तथा रिपोर्टिंग पर समय व्यतीत करने के बजाय तत्काल सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से अपने तरीके से बच्चों का निरंतर और व्यापक रूप से मूल्यांकन करें।

 इसके अलावा, इसमें न केवल गणित, भाषा, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान बल्कि जीवन कौशल, सामाजिक, व्यक्तिगत, भावनात्मक और मनु गतिक कौशल सीखने पर भी महत्व दिया जाता है।

 एन.सी.एफ. 2005 में विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षणशास्त्र पर प्रकाश डाला गया है, जिसका अनुसरण तब किया जा सकता है जब पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों और कक्षा की गतिविधियों की योजना को विकसित करते समय भी विद्यार्थी पर ध्यान केंद्रित हो।

 उदाहरण के लिए, यदि हम प्राथमिक स्तर पर पौधों के बारे में एक विवरण शामिल करना चाहते हैं तो पाठ्यक्रम को उन पौधों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो बच्चे अपने दैनिक जीवन में देख सकते हैं, छू सकते हैं और जिनके बारे में बात कर सकते हैं।

 पाठ्यपुस्तक में उसी का विवरण प्रदान करना चाहिए। शिक्षक उन अवसरों की योजना बना सकते हैं जहां बच्चे अपने घरों, पड़ोस, स्कूलों आदि में देखे गए पौधों के पोस्टर बना सकते हैं और साझा कर सकते हैं।

 इस प्रक्रिया में वे अपने अनुभवों को पाठ्यपुस्तक में दिए गए अनुभवों से जोड़ेंगे। ऐसा करते समय, शिक्षक प्रत्येक बच्चे के सीखने के प्रतिफलों में प्रगति का निरीक्षण करेंगे।



चर्चा के बिंदु

जोड़े बनाकर कार्य करें और एक शिक्षक के आमतौर पर विद्यालय में बीतने वाले दिनों के बारे में जानें। यदि शिक्षा के उपर्युक्त उद्देश्यों में से किसी को भी दिन-प्रतिदिन के शिक्षण में साकार किया जा रहा है तो इसके बारे में चर्चा करें? आप अपने दिन कैसे व्यतीत करते हैं?


विद्यालय के विषय और एन.सी.एफ. 2005

आइए, हम एन.सी.एफ. 2005 और विभिन्न विषयों के शिक्षण पर बारीकी से विचार करें। इसमें बताया गया है कि भाषाओं के शिक्षण के दौरान बहुभाषी प्रवीणता को बढ़ावा देने के लिए भाषा का संसाधन के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। 

भाषा के अर्जन को हर विषय-क्षेत्र में महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि यह पूरे पाठ्यचर्या में महत्व रखता है। पढ़ना और लिखना, सुनना और बोलना, यह समस्त पाठ्यचर्या क्षेत्रों में, बच्चे की प्रगति में योगदान करते हैं अतः इन्हें पाठ्यचर्या की योजना का आधार होना चाहिए। 

गणित को इस तरह से पढ़ाए जाने की ज़रूरत है कि यह समस्याओं को तैयार करने और हल करने के लिए सोच, तर्क और कल्पना की क्षमता का संवर्धन करे विज्ञान के शिक्षण को नया रूप दिया जाना चाहिए ताकि यह बच्चों को रोज़मर्रा के अनुभवों की जाँच और विश्लेषण करने में सक्षम बनाए। 

हर विषय में पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर ज़ोर दिया जाना चाहिए और इसके लिए विस्तृत श्रेणी की गतिविधियाँ बनाई जानी चाहिए, जिनमें कक्षा के बाहर किए जाने वाले क्रियाकलाप भी शामिल हों। सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में हाशिए पर रह रहे समूहों के परिप्रेक्ष्य में एकीकरण पर जोर देते हुए अनुशासनात्मक संकेतकों को पहचानने का प्रस्ताव है। हाशिए पर रह रहे

समूहों और अल्पसंख्यक संवेदनशीलता से संबंधित बच्चों के प्रति जेंडर, न्याय और संवेदनशीलता संबंधित जानकारी सामाजिक विज्ञान के सभी क्षेत्रों द्वारा प्रदान की जानी चाहिए। 

एन.सी.एफ. 2005 में, चार अन्य पाठ्यचर्या क्षेत्रों पर भी ध्यान आकर्षित किया गया है कार्य, कला एवं विरासत संबंधी शिल्प, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा तथा शांति इसमें इन क्षेत्रों को पाठ्यचर्या के दायरे में लाने की संस्तुति की जाती है। 

प्राथमिक चरण में अधिगम को काम के साथ में जोड़ने के लिए कुछ ठोस कदम इस आधार पर सुझाए गए हैं कि काम करने से, ज्ञान अनुभव में बदल जाता है और इससे आत्मनिर्भरता रचनात्मकता और सहयोग जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्य उत्पन्न होते हैं।

 चार प्रमुख क्षेत्रों अर्थात संगीत, नृत्य, दृश्य कला और थिएटर को सम्मिलित करते हुए शिक्षा के सभी स्तरों में, एक विषय के रूप में कला के अध्ययन की संस्तुति की गई है, जिसमें अंत: क्रियात्मक दृष्टिकोण पर जोर दिया गया है।


 एन.सी.एफ. 2005 के अनुसरण में, पठन विषय क्षेत्रों में विकसित पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में विद्यार्थी केंद्रित शिक्षणशास्त्र को समावेशी व्यवस्था की आवश्यकतानुसार बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

 हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि प्रत्येक बच्चे में सीखने की क्षमता है, लेकिन सामग्री, परिवेश, स्थिति और सार्थकता, अधिगम को दिलचस्प बनाती है।

 इसलिए, किसी भी पाठ्यपुस्तक को पढ़ाते समय, हमें इन उद्देश्यों और इस पर भी विचार करने की आवश्यकता होती है कि इसका उपयोग विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और लाभ-वंचित घरों की पृष्ठभूमि वाले सभी बच्चों के साथ कैसे किया जा सकता है।


चर्चा के बिंदु

• क्या विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षणशास्त्र का उपयोग बड़ी कक्षाओं में किया जा सकता है? 

• क्या सभी विषयों को पढ़ाने की योजना विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षणशास्त्र का उपयोग करके बनाई जा सकती है?


पाठ्यचर्या :

हम सभी विद्यालयीकरण की प्रक्रिया से गुजर चुके हैं। हम जानते हैं कि विद्यालय में विद्यार्थियों के समग्र विकास में योगदान देने वाली सभी गतिविधियाँ पाठ्यचर्या पर केंद्रित होती हैं। 

पाठ्यचर्या और उसके लेन-देन को समझना सभी हितधारकों को पाठ्यपुस्तक की सामग्री, संज्ञानात्मक और मानवीय मूल्यों के विकास तथा जेंडर से संबंधित सरोकारों को एकीकृत करने एवं अधिगम की प्रक्रिया में सभी विद्यार्थियों के समावेशन प्रक्रिया से जुड़ने में मदद करता है।

पाठ्यचर्या को निर्धारित करने वाले बुनियादी कारकों में शामिल हैं— अधिगम की प्रकृति, स्वीकृत सिद्धांतों और सामाजिक प्रभावों द्वारा प्रदान किए गए मानव विकास का ज्ञान। 

इसके अलावा, समाज की आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ काफ़ी हद तक पाठ्यक्रम की प्रकृति, सामग्री, विषयों, विषयवस्तु एवं उसकी व्यवस्था निर्धारित करती हैं।

 पाठ्यचर्या को परिवर्तनकारी भूमिका भी निभानी होती है। शिक्षकों और शिक्षक प्रशिक्षकों के रूप में हम जानते हैं कि कुछ ऐसे पहलू हैं जो अनौपचारिक रूप से एक विद्यालय प्रणाली में सिखाए जाते हैं जिसे छिपी हुई

वर्या कहा जाता है। यूपी हुई पाठ्यचर्या में वे सभी व्यवहार, दृष्टिकोण और मनोभाव शामिल हैं जो नीं स्कूली शिक्षा के दौरान प्राप्त करते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि एक छिपी हुई वर्या वह है जो विद्यार्थी विद्यालय में ग्रहण करते हैं और यह अध्ययन के औपचारिक कम का हिस्सा हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है।


पाठ्यक्रम:

पाठ्यक्रम कक्षावार और विषयवार, पढ़ाए जाने वाले विषयों की सूची प्रदान करता है। इसमें विषय और मूल्यांकन मानदंडों को पूरा करने के लिए समय अवधि भी प्रदान की जाती है।

 पाठ्यक्रम एक दस्तावेज़ है जो पढ़ाई जाने वाली विषयवस्तु की जानकारी देता है और अपेक्षाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है।

 शिक्षण के लिए यह एक आवश्यक दस्तावेज़ है जिसमें पाठ्यक्रम के मूल तत्व रेखांकित होते है, जैसे कि कौन से विषय शामिल किए जाएँगे, साप्ताहिक अनुसूची और परीक्षाएँ, असाइनमेंट्स और संबंधित अधिभार सूची।

 पाठ्यक्रम में सीखने के प्रतिफल, आकलन, सामग्री और शैक्षणिक रीतियों के बीच संबंध को स्पष्ट किया जाता है। अधिगम के दौरान विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करने हेतु पठन विषयों को जिस रचनात्मक तरीके से सुव्यवस्थित किया जाता है, पाठ्यक्रम उसको भी प्रकट करता है। 

एक शैक्षणिक पाठ्यक्रम के लिए चार आवश्यक घटक है— विषय और प्रश्न, उद्देश्य, सुझाई गई गतिविधियाँ, शिक्षकों के लिए संसाधन और नोट्स।

पाठ्यपुस्तकें:

पाठ्यपुस्तकें, पाठ्यक्रम में शामिल विषयों/विषयवस्तुओं पर सामग्री प्रदान करती हैं। पाठ्यपुस्तक सभी विद्यार्थियों के लिए एक मुद्रित/डिजिटल शिक्षण संसाधन है। उन्हें एन.सी.एफ. के परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थी के अनुकूल और चिंतनशील होने की आवश्यकता है।


विद्यार्थी केंद्रित पाठ्यपुस्तकों की विशेषताएँ:

कम जानकारी और अधिक गतिविधियों के साथ अंत: क्रियात्मकता।

• विद्यार्थियों को अपने स्वयं के ज्ञान को प्रतिबिंबित करने और निर्माण करने के लिए स्थान प्रदान करती हैं।

.देश की विविधता को शामिल करती हैं।

.संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करती हैं। सामाजिक सरोकारों, जैसे- जेंडर, समावेशन आदि के प्रति संवेदनाओं के लिए जगह प्रदान करती हैं।

• काम करने के लिए जगह प्रदान करने का प्रयास करती हैं। आई.सी.टी. को स्थान प्रदान करने का प्रयास करती हैं। अंतर्निहित मूल्यांकन करती हैं। 

• सरल भाषा में सामग्री प्रस्तुत करती हैं।


• कला, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा को एकीकृत करती हैं।


विद्यालयों में पुस्तकालय की भूमिका:

एन.सी.एफ. 2005 में एक विद्यालय के पुस्तकालय का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि विद्यालय पुस्तकालय को एक ऐसे बौद्धिक स्थान के रूप में देखा जाना चाहिए जहाँ शिक्षक, बच्चे और समुदाय के सदस्य अपने ज्ञान और कल्पना को गहरा बनाने के साधन खोजने की उम्मीद कर सकते हैं।

 विद्यालय का पुस्तकालय, सभी पाठ्यक्रमों के सभी विद्यार्थियों के लिए, सीखने का एक प्रमुख केंद्र हो सकता है। साक्षरता पर हुए अध्ययनों में इस बात की पुष्टि होती है और जिसे शिक्षक वर्षों से जानते भी रहे हैं - बच्चों का किताबों से जितना अधिक संपर्क होता है, वे उतने ही अच्छे पाठक बनते हैं।

 पुस्तकालयों के व्यापक उपयोग के माध्यम से पुस्तकों के साथ लिप्त होकर और प्रतिदिन बच्चों के लिए पढ़कर, शिक्षक बेहतर पठन-व्यवहार को बढ़ावा दे सकते हैं।

 वे बच्चों को पाठ्यपुस्तकों से परे ज्ञान के स्रोतों का पता लगाने की संभावना प्रदान करते हैं। आज बच्चों के पुस्तकालयों में रखा साहित्य केवल कहानियां ही नहीं है, बल्कि इसमें काल्पनिक, काल्पनिक और कविता जैसी पुस्तकों की एक विस्तृत श्रृंखला भी शामिल है। 

पुस्तकालय प्रारंभिक कक्षा के बच्चों से लेकर युवा वयस्कों तक सभी को सीखने में योगदान दे सकते हैं और साथ ही यह शिक्षकों के लिए ज्ञान का एक महान भंडार हो सकते हैं। 

विद्यालय पुस्तकालय एक अलग कमरे या कक्षा पुस्तकालय या अन्य किसी ऐसे तरीके से चलाए जा सकते हैं जो विद्यालय को उचित लगे और जिसमें सफलता की संभावना हो।

 महत्वपूर्ण यह है कि किताबों के साथ बच्चों के मेल-जोल को संभव बनाया जाए।

 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के संदर्भ में विद्यालय के प्रधान अध्यापकों, शिक्षकों, पुस्तकालयाध्यक्षों द्वारा विद्यालय में पुस्तकालय स्थापित करने और चलाने के लिए कुछ आवश्यक दिशानिर्देश प्रदान करने के लिए एक पुस्तकालय प्रशिक्षण मॉड्यूल, रा.शै.अ.प्र.प./ राज्य द्वारा विकसित किया जा सकता है।


चर्चा के बिंदु

अपनी कक्षा में पाठ्यपुस्तकों से परे जाने का एक शिक्षण अनुभव साझा करें। इस तरह के अनुभव में आपके विद्यार्थियों की भागीदारी और सीखने की क्षमता क्या रही है? पुस्तकालय स्कूली शिक्षा का एक महत्वपूर्ण घटक हैं, लेकिन अधिकतर इन्हें पुस्तकों से भरा स्थान माना जाता है। पुस्तकालय के माहौल को अधिक जीवंत और गतिशील बनाने के बारे में अपने विचार साझा करें।