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नवंबर 1, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सामुदायिक सहयोग हेतु कार्य-योजना निर्माण कैसे करें?

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विद्यालय प्रबंध समिति (SMC) के सदस्य विद्यालय और समुदाय के बीच प्रमुख सेतु हं भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक विद्यालय को एस०एम०सी0 सहयोग से सामुदायिक सहयोग की कार्य योजना विकसित करनी होगी। कार्य योजना के संभावित क्षेत्र निम्नवत हो सकते हैं। (अ) भौतिक संसाधन-चहारदिवारी, पंखा, फर्नीचर, स्टेशनरी, पेयजल, स्मार्ट बोर्ड, शैक्षिक तकनीकी से संबंधित उपकरण आदि। (ब) मानवीय संसाधन-सामुदायिक संसाधनों का कक्षा-कक्षीय एवं अन्य सहशैक्षिक क्रियाकलाप में उपयोग।  उक्त बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी संस्था उपलब्ध भौतिक / मानवीय संसाधनों की उपलब्धता की समीक्षा करने के बाद विद्यालय की आवश्यकताओं का चिह्नांकन करना होगा तदुपरान्त उन आवश्यकताओं का वर्गीकरण करते हुए सामुदायिक सहभागिता के प्रकार को स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हुए समुदाय से संपर्क स्थापित करना होगा।  इस प्रकार आवश्यकताओं के अनुसार संदर्भों/ स्रोतों की मदद लेते हुए कार्य योजना विकसित कर हम अपने कार्य को और बेहतर बना सकते हैं तथा समुदाय से बेहतर जुड़ाव स्थापित कर सकते हैं ।         ...

शिक्षण के तरीके और गतिविधियाँ

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परिवेश, पर-परिवार, कक्षा-कक्षा में उपलब्ध विभिन्न आकृति की वस्तुओं पर बातचीत करने छूकर पता करने, उलटने--पलटने एवं विविध रूपों में जमाने के अनुभव का भीका देने से बच्चों में ज्यामितीय आकृति सम्बन्धी अवधारणात्मक समझ का विकास होता है। यह समझ निम्नांकित रूपों में हो सकती है- एक ही आकृति के कई रूप हो सकते हैं। एक ही आकृति में एक से अधिक रूप समाहित होते हैं। एक आकृति के अलग-अलग संयोजन से नयी आकृतियाँ बनती हैं। अलग-अलग प्रकार की आकृतियों को समझने के लिए एक ही प्रकार के तरीके कारगर नहीं होते अर्थात प्रत्येक प्रकार की आकृति को एक ही प्रकार से नहीं समझा जा सकता। इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे यह भी समझने व अनुभव करने में समर्थ हो जाते हैं कि गेंद और गोले का चित्र उसे पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पाता है।  यह वृत्ताकार क्षेत्र से किस प्रकार भिन्म है? इन आकृतियों की समझ उन्हें आगे चलकर परिमाप, क्षेत्रफल एवं आयतन तक किस प्रकार ले जाती है? इनके अवधारणात्मक समझ के विकास के लिए शुरुआती कक्षाओं में आगे दिए गए सुझाव और गतिविधियों का शिक्षण में प्रयोग बच्चों के सीखने में सार्थक प्रभाव लाएगा। गतिविधि-1, अ...

विद्यालयों में सहशैक्षिक गतिविधियों को कैसे क्रियान्वित करें?

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प्रारम्भिक विद्यालयों में सह शैक्षिक गतिविधियों के आयोजन में प्रधानाध्यापक एवं अध्यापक की भूमिका को निम्नवत् देखा जा सकता है।  • विद्यालयों में सहशैक्षिक गतिविधियों को कैसे क्रियान्वित करें, इसके बारे में परस्पर चर्चा करना तथा आवश्यक सहयोग प्रदान करते हुए निरंतर संवाद बनाये रखना। क्रियाकलापों का अनुश्रवण करना तथा आयी हुई समस्याओं का निराकरण सभी की सहभागिता द्वारा करना। इन क्रियाकलापों में बालिकाओं की सहभागिता अधिक से अधिक हो साथ ही साथ सभी छात्रों की प्रतिभागिता सुनिश्चित हो, इस हेतु सामूहिक जिम्मेदारी लेना।। • समय सारिणी में खेलकूद/ पीटी,ड्राइंग, क्राफ्ट, संगीत, सिलाई/बुनाई व विज्ञान के कार्यों प्रतियोगिताएं हेतु स्थान व वादन को सुनिश्चित करना।  • स्कूलों में माहवार/त्रैमासिक कितनी बार किस प्रकार की प्रतियोगिताएं कराई गई, इसकी जानकारी प्राप्त करना एवं रिकार्ड करना। बच्चों के स्तर एवं रुचि के अनुसार कहानियां, चुटकुले, कविता आदि का संकलन स्वयं करना तथा बच्चों से कराना।  • विज्ञान/गणित सम्बन्धी प्रतियोगिताओं हेतु विषय से सम्बन्धित प्रश्न बैंक रखना। आवश्यक वस्तुओं का संग्रह ...

समुदाय को विद्यालय से कैसे जोड़ें?

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यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है जिससे हमारे बहुत से विद्यालयों को जूझना पड़ता है।  लगातार सरकारी/विभागीय निर्देशों और एस०एम०सी0 के गठन के बावजूद हममें से अधिकांश शिक्षक अभी भी अपने विद्यालयों से समुदाय को अपेक्षानुरूप नहीं जोड़ पा रहे हैं। इस मुद्दे की पड़ताल पर जाने से पूर्व सबसे पहले हम यह विचार करें कि हमने पिछले छह महीने में कब-कब और किस उद्देश्य से समुदाय के लोगों को स्कूल में बुलाया था या उनसे मुलाकात की थी। हम पाएँगे कि यह मुलाकातें या निमंत्रण बहुत सीमित मात्रा में तथा औपचारिक ही ज्यादा थे।  समुदाय के व्यक्तित्व किन्हीं राष्ट्रीय पर्वों या सभाओं में विद्यालय आए भी तो उनकी भूमिका कार्यक्रम में मूक दर्शक की तरह बैठे रहना भर ही रही।  स्वाभाविक है कि खाली बैठे रहने (निरुददेश्य) की भूमिका में स्वयं को पाकर समुदाय का व्यक्ति हमारे पास आखिर क्यों और कब तक आता जाता रहेगा ? आज हम सभी का जीवन विभिन्न प्रकार की व्यस्तताओं से भरा है और समुदाय के हर व्यक्ति ।  सबकी कमोबेश यही स्थिति है। समय नहीं मिल पाया आज के दौर का ऐसा वाक्य है कि जिसे हर तीसरा व्यक्ति कहता मिल जाता ...

बाल संसद : उद्देश्य, शिक्षक की भूमिका, बाल संसद गठन, एवं समितियों के प्रमुख कार्य

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  बाल संसद क्या है?  बालक- बालिकाओं का एक मंच जिसका प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गठन किया जाता है।   बाल संसद के उद्देश्य :  जीवन मूल्यों का विकास व्यक्तित्व विकास, नेतृत्व क्षमता, निर्णय लेने का क्षमता, सही/गलत स्पर्श की समझ, समय प्रबन्ध इत्यादि पर स्पष्ट समझ। शिक्षक की भूमिका:  बाल संसद के संयोजक के रूप में सहयोग करना।               मंत्रिमण्डल/स्वरूप /गठन समितियां:  1. प्रधानमंत्री                             1 व 2 में एक छात्रा का चयन अवश्य हो। 2 उप-प्रधानमंत्री 3. शिक्षा मंत्री                             सह मीना मंच मंत्री (अनिवार्य रूप से छात्रा है) 4. उपशिक्षा मंत्री 5, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 6. उप स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 7. जल एवं कृषि मंत्री 8. उप जल एवं कृषि मंत्री 9. पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री  10. उप पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री 1...