शिक्षण संग्रह (Compendium) : शिक्षण संग्रह की अवधारणा एवं आवश्यकता - ( Concept and Need)

यह सर्वविदित है कि प्राथमिक विद्यालय के वातावरण का प्रभाव बच्चों (विद्यार्थियों) के सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है। प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षक/शिक्षिका अपने कार्य एवं आचरण के माध्यम से विद्यार्थियों में अनेक अच्छी आदतों जैसे- अनुशासित रहना, विद्यालय के नियमों का पालन करना, शिक्षकों का आदर-सम्मान करना, आपस में एक दूसरे का सहयोग करना आदि को सहज रूप में अंतरित द विकसित करते रहते हैं यही गुण कालांतर में बच्चों के व्यक्तित्व एवं सामाजिक जीवन में संस्कारों के रूप में परिलक्षित होते हैं।

बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में विद्यालय के शैक्षिक वातावरण की इस महत्त्वपूर्ण भूमिका के सन्दर्भ में अगर हम विचार करते हैं तो प्रमुख रूप से निम्नांकित अवयव उभर कर आते हैं विद्यालय भवन का अत्यंत आकर्षक और साफ सुथरा होना।

विद्यालय भवन की बाउण्ड्री वॉल का राष्ट्रीय प्रतीकों, रोचक खेलों, पशु-पक्षियों के रंगीन चित्रों से सुसज्जित होना।

विद्यालय भवन की दीवारों, खम्भों फर्श, बरामदों को महापुरुषों के चित्रों, आदर्श वाक्यों/सूक्तियों, वर्णमाला आदि से सुसज्जित होना।

कक्षा-कक्षों में समय सारिणी, शैक्षिक चार्ट्स मॉडल्स, लर्निंग आउटकम्स के चार्ट्स,रासायनिक सूत्र, गणित, विज्ञान के सूत्रों का भली प्रकार से प्रदर्शित होना।

 विद्यालय प्रांगण में पेड़-पौधे, वाटिका/ फुलवारी, सुसज्जित सक्रिय पुस्तकालय, खेल का मैदान/खेल सामग्री आदि का होना। प्रार्थना स्थल पर प्रतिदिन योग/व्यायाम/पी.टी./सामान्य ज्ञान/प्रेरक प्रसंगों जैसी गतिविधियों का होना।

. कक्षाओं में शिक्षकों द्वारा शिक्षण योजना के अनुसार पूरी लगन के साथ शिक्षण किया जाना।

कक्षाओं में बच्चों द्वारा सहज भाव से आनंदपूर्वक सीखने में संलग्न रहना। शिक्षकों द्वारा बच्चों के कार्यों का निरन्तर आकलन करते हुए सकारात्मक फीडबैक देना।

 कुल मिलाकर स्कूल का ऐसा वातावरण कि जिसमें विद्यार्थियों को न केवल शिक्षकों के द्वारा कल्कि कक्षाओं के तथा विद्यालय परिसर के परिवेश से भी सीखने को मिले।

वस्तुतः शिक्षण संग्रह (Compendium) से आशय एक पुस्तिका के रूप में ऐसी सूचनाओं का ग्रह है जो आकर्षक स्कूल परिसर, शिक्षण कौशलों, शिक्षण योजनाओं, लर्निग आउटकम्स, पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं जैसे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारको से सम्बन्धित हैं तथा जिनका उपयोग शिक्षक दैनिक कक्षा शिक्षण के नियोजन एवं क्रियान्वयन कर सकते हैं।

आप शिक्षण संग्रह का उपयोग कैसे करेंगे ?

शिक्षण संग्रह का विकास शिक्षकों की आवश्यकताओं एवं उनके कार्य क्षेत्र में आने समस्याओं को दृष्टिगत रखकर किया गया है जिसमें प्रारम्भिक शिक्षा से संबंधित विविध सूचनाओं। उपयोगी जानकारियों का संकलन है।

 शिक्षा संग्रह (Compendium) का उपयोग निम्नवत तरीको करते हुए हम अपने कार्य को सरल-सुगम व रोचक बना सकेंगे।

शिक्षण संग्रह में उदाहरण स्वरूप दी गयी शिक्षण योजनाओं का उपयोग विषय आवश्यकतानुरूप कक्षा शिक्षण में करें।

संग्रह में शामिल भाषा, गणित, विज्ञान इत्यादि विषयों से संबंधित शैक्षिक क्रियाकलाप रो शैक्षिक खेल एवं गतिविधियाँ दी गयी है, जिनका कक्षा शिक्षण में उपयोग करके शिक्षण रोचक एवं प्रभावी बनाया जा सकेगा। संग्रह में कक्षावार,विषयवार, लर्निंग आउटकम्स और आकलन की विधियों का संदर्भ शि गया है जिससे इनपर सुगमतापूर्वक कार्य किया जा सकता है।

 विद्यालय भवन एवं परिवेश को आकर्षक व सीखने में सहायक के रूप में किस प्रकार उप किया जा सकता है, शिक्षण संग्रह से इसका संदर्भ लेकर आप अपने विद्यालय भवन ,परिवेश को आकर्षक तथा बच्चों को सीखने का साधन उपलब्ध करा सकते हैं।

 संग्रह में स्कूल में की जा रही प्रातःकालीन और सांध्यकालीन सभाओं एवं अनेक सह शै गतिविधियों एवं खेलकूद गतिविधियों का विवरण दिया गया है जिसके आधार पर इन स को रोचक व उपादेय बनाया जा सकेगा।

इस शिक्षण-संग्रह में अनेक शैक्षिक नवाचारों (Innovation) का उल्लेख किया गया है जि उपयोग आप कक्षा शिक्षण को प्रभावी बनाने तथा विद्यालय के भौतिक परिवेश को संस समृद्ध बनाने में कर सकते हैं।

शिक्षण संग्रह में प्रधानाध्यापकों के लिए विद्यालय नेतृत्व संबंधी जानकारियां दी गयी जिनका उपयोग कर प्रधानाध्यापक अपने विद्यालय विकास की योजना बनाकर अपने विद्यालयों में अपेक्षित शैक्षिक वातावरण का सृजन कर सकते हैं।

संग्रह में उत्तर प्रदेश में कार्यरत कुछ शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापकों के द्वारा सफलतापूर्वक किए जा रहे अनुकरणीय कार्यों की दी गई जिनको ध्यानपूर्वक हम अपने विद्यालय में गुणवत्तायुक्त शिक्षा एवं भौतिक संसाधनों की व्यवस्था सुनिश्चित कर सकते हैं। 

शिक्षण संग्रह शिक्षकों की व्यावसायिक दक्षता विकास हेतु उपयोगी जानकारियों वेबसाइट, वेब लिंक, शैक्षिक साहित्य की हेल्पलाइन सम्पर्क सूत्र इत्यादि का विवरण दिया गया है जिनका सुगमता से उपयोग कर शिक्षक व्यावसायिक दक्षता का विकास कर सकेंगे।

 शिक्षण संग्रह में प्रभावी को अंग्रेजी वर्णमाला A से Z तक मार्गदर्शक सूत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसका उपयोग हम कक्षा शिक्षण में सफलतापूर्वक कर सकते हैं। भी यही चाहते कि सभी बच्चे सहज रूप से सीखें। 

उन्हें सीखने में आनन्द का अनुभव हो। पाठशाला में आकर्षक एवं संसाधन समृद्ध वातावरण हो जो बच्चों को सीखने और व्यक्तित्व निर्माण सहायक हो।

शिक्षकों के पास कक्षा शिक्षण सम्बन्धी ऐसी सभी एवं उपकरण उपलब्ध हो, जिनका उपयोग दैनिक शिक्षण कार्यों में कर सकें।

शिक्षक, बच्चों समुदाय के मध्य तालमेल हो। यह सब संभव हो, इसी दृष्टिकोण से आवश्यक हो।

बच्चों का चिन्हांकन - बच्चों के अधिगम स्तर में अंतर को कैसे पता करें?

एक शिक्षक होने के नाते उपरोक्त स्थितियों में आप क्या करेंगे?

1. शैक्षिक सत्र के प्रारंभ में : आपकी कक्षा (कक्षा 3 से 8 तक) में जब बच्चे प्रवेश लेते हैं तब आरम्भिक परीक्षण के माध्यम से प्रत्येक बच्चे के वर्तमान अधिगम स्तर का पता लगाया जा सकता है।

 इससे आपको बच्चों के अधिगम स्तर में अंतर का पता चल जाएगा। फिर आप आवश्यकतानुसार अपनी शिक्षण योजना बनाकर अधिगम स्तर के अंतर (गैप) को कम करने का प्रयास कर सकेंगे। 

आरम्भिक परीक्षण के लिए प्रत्येक विषय में आधारभूत आकलन प्रपत्र बनाना होगा।

 इसके प्रश्न पिछली कक्षा तक की मूलभूत दक्षताओं (लर्निंग आउटकम) के आधार पर बनाये जाएंगे। इसके लिए मूलभूत दक्षताओं की विषयवार सूची पूर्व में ही बना लें।

 उदाहरण के लिए, कक्षा 8 के बच्चों के आधारभूत आकलन प्रपत्र में कक्षा 1 से 7 की मूलभूत दक्षताओं के आधार पर प्रश्न बनाए जाएंगे यहाँ यह ध्यान रखना है कि प्रत्येक प्रश्न किस कक्षा के किस लर्निंग आउटकम पर आधारित है, यह अलग से अवश्य लिख लिया जाए। 

इससे बाद में शिक्षकों को यह जानने में आसानी होगी कि किर लर्निंग आउटकम पर बच्चों के साथ कार्य करना है। साथ ही अधिगम स्तर के अनुसार उनके समूह निर्धारण में भी आसानी होगी।

प्रश्न बनाते समय यह भी ध्यान रखना है कि इसमें ज्ञानात्मक, बोधात्मक, अनुप्रयोगात्मक तर्कात्मक प्रश्न शामिल हों। कुल प्रश्नों का 20 प्रतिशत प्रश्न ज्ञानात्मक, 50 प्रतिशत बोधात्मक, 2 प्रतिशत अनुप्रयोगात्मक व 10 प्रतिशत तर्कात्मक प्रश्न होंगे यह आवश्यक है कि प्रश्नों की संख् अधिक न हो ताकि बच्चे उन्हें आसानी से हल कर सकें।

 भाषा (हिन्दी व अंग्रेजी) में मौखिक, लिखित व पढ़ने से संबंधित प्रश्न होंगे।


आरम्भिक परीक्षण की प्रक्रिया में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेंगे-


1. आरम्भिक परीक्षण के पूर्व:



लर्निंग आउटकम एवं आकलन

आप भली भांति अवगत हैं कि विद्यालयीय पाठ्यक्रम का निर्धारण एवं पाठ्यपुस्तकों/ कार्यपुस्तिकाओं का निर्माण विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए निर्धारित दक्षताओं के विकास क ध्यान में रखकर किया गया है।

 शिक्षक पाठ्यपुस्तकों/कार्यपुस्तिका व अन्य शिक्षण सहायक सामग्र के माध्यम से अपनी कक्षा-शिक्षण गतिविधियों को संचालित करते हैं।

 वास्तव में कक्षा शिक्षण के उपरान्त सबसे महत्वपूर्ण एवं व्यावहारिक पक्ष यह है कि क्या बच्चे उन दक्षताओं को प्राप्त कर रहे हैं अथवा नहीं।


लर्निंग आउटकम (अधिगम सम्बन्धी परिणाम):

लर्निंग आउटकम इसी बात पर बल देते हैं कि मात्र शिक्षक ही नहीं अपितु अभिभावक भी य जानें कि उनका बच्चा जिस कक्षा में है, उस कक्षा के विभिन्न विषयों में उसे क्या-क्या ज्ञान होन चाहिए और क्या-क्या ज्ञान उसने अर्जित कर लिया है।






'लर्निंग आउटकम (अधिगम सम्बन्धी परिणाम ) से आशय उन परिणामों (दक्षताओं) से है जो किसी कक्षा में अध्ययनरत विद्यार्थियों को उनके निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुरूप अपेक्षित दक्षताओं के प्राप्त होने पर परिलक्षित होते हैं।


यह एक 'परिणाम आधारित लक्ष्य है' जो कि बच्चे की प्रगति का आकलन गुणात्मक तथा संख्यात्मक रूप से करने हेतु अवलोकन बिन्दु प्रदान करता है।


लर्निंग आउटकम की अवधारणा को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर और स्पष्टता से समझा जा सकता है-

लर्निंग आउटकम बच्चों को प्राप्त दक्षता का मूल्यांकन करने और शिक्षकों को आगामी शिक्षण संबंधी दिशा प्रदान करने पर बल देते हैं।


परिणाम आधारित लर्निंग आउटकम प्राप्त करने के लिए शिक्षक अपने सोच, ज्ञान व अनुभव के आधार पर शिक्षण विधियों, नवाचारों एवं आई.सी.टी. का प्रयोग करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं।


यह बच्चों को जानने, समझने एवं पुस्तकीय ज्ञान का व्यवहार में उपयोग करने के लिए बच्चों में तर्क, चिन्तन एवं कल्पना शक्ति के विकास पर बल देते हैं।

 आइए, हम लर्निंग आउटकम को कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझते हैं। नीचे कक्षा 1 हिन्दी विषय के कुछ मूलभूत लर्निंग आउटकम दिए गए हैं


बच्चे परिवेशीय ध्वनियों, बोलियों, वाहन, घण्टी आदि की ध्वनियों को पहचानते हैं।


बच्चे प्रथम एवं अंतिम ध्वनि वाले शब्दों को पहचानते हैं, जैसे- पग, पर, पल, जग, पग/ हल, चल आदि।


बच्चे वर्ण/अक्षर की आकृति को पहचानते हैं। बच्चे वर्णों को जोड़कर अमात्रिक शब्द बनाते एवं पढ़ते हैं, जैसे- जल, हल, नल, चल, मगर, डगर आदि।


बच्चे वर्णों एवं अमात्रिक शब्दों को उनकी सही बनावट में लिखते हैं। इसी प्रकार सभी विषयों की पाठ्यपुस्तकों में लर्निंग आउटकम निर्धारित किए गए हैं।

 अब हम लर्निंग आउटकम के व्यावहारिक पक्ष को एक उदाहरण से समझते हैं। कक्षा 3 में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को गणित की कक्षा में जोड़-घटाना पर आधारित इबारती प्रश्नों को हल करना सिखाया गया। 

इसी कक्षा का एक छात्र राहुल बाजार से सामान लाने के लिए जाता है। यदि वह सामान लेकर बचे हुए रूपयों का हिसाब सही-सही रख रहा है, तो इसका आश यह निकलता है कि राहुल जोड़-घटाव की क्रिया का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर चुका है और यू ज्ञान उसके दैनिक जीवन में 'सीखने के प्रतिफल' के रूप में परिलक्षित हो रहा है।


इस प्रकार लर्निंग आउटकम हमें स्पष्ट रूप से यह बताता है कि बच्चे ने कौन-कौन दक्षता हासिल कर ली हैं।


अधिगम स्तर में अंतर:(learning gap)


अभी तक हमने लर्निंग आउटकम एवं इसकी आवश्यकता क्यों है, इस पर समझ बनार हमने यह जाना है कि लर्निंग आउटकम बच्चों की वास्तविक सीख के बारे में स्पष्ट सूचना देता किसी भी शिक्षक के लिए यह जानना बहुत आवश्यक है कि उसकी कक्षा में बच्चों की वास्तवि स्थिति क्या है।

एक परिस्थिति पर विचार करते हैं। आप उच्च प्राथमिक विद्यालय में गणित के शिक्षक तथा कक्षा 8 के बच्चों को पढ़ाते हैं। 

क्या आप सोचते हैं कि कक्षा 8 में प्रवेश लेने वाले सभी बच ने कक्षा 7 तक की गणित की मूलभूत दक्षताओं को प्राप्त कर लिया इसी प्रकार यदि आप हिन्दी अंग्रेजी या विज्ञान के शिक्षक हैं, तो क्या आप कह सकते हैं कि सभी बच्चों ने कक्षा 7 तक संबंधित विषयों की मूलभूत दक्षताओं प्राप्त कर ली हैं? ज्यादातर शिक्षकों का उत्तर 'ना' में होगा।

 इस संबंध में सरकारी विद्यालयों में किए अध्ययन भी यह बताते हैं कि बच्चों का वास्तविक अधिगम स्तर तथा कक्षानुरूप अपे अधिगम स्तर में अंतर (गैप) होता है।

ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?


क्या आप इस स्थिति को नजरअंदाज करते हुए सामान्य शिक्षण करते रहेंगे? क्या पाठ्यक्रम को पूरा करना ही आपका उद्देश्य होगा?


या फिर आप ऐसी स्थिति में अधिगम स्तर के अंतर को कम करने का प्रयास करेंगे।


सीखने के स्तर का आकलन:


आप बच्चों की प्रगति का आकलन कैसे करते हैं? सामान्यतः उत्तर होगा- संत्र परी अर्द्धवार्षिक परीक्षा या वार्षिक परीक्षा के माध्यम से । यदि किसी परीक्षा में एक बच्चा किसी विष 50 में 40 अंक प्राप्त करता है, तो क्या आप बता सकते हैं कि उसे क्या नहीं आ रहा है? 

क्या प्राप्त को देखकर आप बता सकते हैं कि बच्चे ने क्या-क्या सीख लिया है? या बच्चे ने उस विषय कक्षा अनुरूप किन-किन मूलभूत दक्षताओं को प्राप्त कर लिया है?

अंक आधारित मूल्यांकन हमें बच्चों की वास्तविक सीख स्तर को नहीं बता पाता है।

 यह इतना बताता है कि बच्चे ने 70 प्रतिशत या 80 प्रतिशत अंक प्राप्त किए और इससे माना जा सकता है कि बच्चे ने लगभग इतने प्रतिशत पाठ्यक्रम को समझा भी है।

 कोई शिक्षक यदि जिज्ञासु है तो उत्तरपुस्तिका को देखकर वह यह जान सकता है कि बच्चे ने किन-किन बिन्दुओं को समझ लिया है। इससे आगे इस प्रकार के मूल्यांकन का और कोई उपयोग नहीं होता है। इस चर्चा से यह स्पष्ट है कि इस प्रकार का मूल्यांकन बच्चों के अधिगम स्तर के अंतर को समझने तथा इसे कम करने में मददगार नहीं है। अब आप निश्चित रूप से यह सोच रहे होंगे कि वास्तविक अधिगम स्तर तथा अपेक्षित

अधिगम स्तर के मध्य अंतर को आखिर कैसे पता करें? इसके बाद एक प्रश्न और भी है- अधिगम स्थिति में अंतर को ज्ञात करने के पश्चात एक शिक्षक होने के नाते आप क्या करेंगे? अधिकांश शिक्षकों के लिए परेशानी यह है कि अधिगम स्तर में अंतर की स्थिति में बच्चे तापमान कक्षा के पाठ्यक्रम को कैसे पूरा कर पायेंगे।

अधिकांश शिक्षकों के लिए परेशानी यह है कि अधिगम स्तर में अंतर की स्थिति में बच्चे वर्तमान कक्षा के पाठ्यक्रम को कैसे पूरा कर पायेंगे। उदाहरण के लिए, यदि बच्चा वर्ण पहचान नहीं कर पा रहा है तो वह पाठ कैसे पढ़ेगा, उसे कैसे समझेगा? उसी प्रकार यदि बच्चा एक या दो अंकों का जोड़ नहीं कर पा रहा है तो वह हासिल का जोड़, या फिर गुणा-भाग और बीजगणित के सवालों को कैसे हल करेगा? 

आपने यह भी अनुभव किया होगा कि कुछ विद्यार्थी भाग के प्रश्न करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं यद्यपि उन्हें गुणा करना अच्छी तरह से आता है। ये परिस्थितियाँ एक लिए काफी कठिनाई पैदा करती हैं।




ध्यानाकर्षण (अधिगम आधारित शिक्षण) की आवश्कता एवं उद्देश्य

किसी भी कक्षा में कुछ बच्चे अपनी कक्षा एवं आयु के अनुसार
अधिगम सम्प्राप्ति स्तर अर्थात् परीक्षाओं तुलनात्मक रूप से कम अंक प्राप्त कर पाते हैं तथा उनका परीक्षा परिणाम भी सामान्य  बच्चों की तुलना में संतोषजनक नहीं होता है।


 प्रायः देखा गया है कि शिक्षक द्वारा विभिन्न शैक्षणिक प्रयासों के बावजूद बच्चों में भाषा कौशलों को ग्रहण करने में कठिनाई होती रही है।

 उदाहरणस्वरूप लिखने में वर्तनी की अशुद्धियाँ, वर्णों-शब्दों को पहचानने में कठिनाई तथा उच्चारण में काफी अशुद्धियाँ देखी गई हैं। इसके अलावा बच्चों में भाषा ज्ञान के बावजूद बोलने व बातचीत में झिझक महसूस करने जैसी समस्याएँ देखी ग हैं।

 इसी प्रकार गणित विषय में अंकों व चिह्नों की पहचान, संख्याओं के आरोही व अवरोही क्रम को समझने, जोड़, घटाना, गुणा व भाग तथा अधूरी गिनती को पूरा करना जैसी गणितीय क्रियाओं में या तो वे अशुद्धियाँ करते हैं या समझ नहीं पाते हैं।

 यही हाल लगभग अन्य विषयों में भी होता है।

क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे शैक्षिक तौर पिछड़ रहे बच्चे हमारे विद्यालयों से निराश न हो और उनमें पुनः आत्मविश्वास की जागृति हो और वे भी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें? उत्तर है हाँ। 

शिक्षक द्वारा इन बच्चों पर कुछ खास तकनीकों द्वारा ध्यानाकर्षण करने से यह संभव है।

वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में ध्यानाकर्षण तकनीकियों को अंगीकृत (अपनाया) करके शत-प्रतिशत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।


ध्यानाकर्षण शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य -


"उन बच्चों की मदद करना है जिन्हें कक्षा शिक्षण के दौरान अपनी कक्षा के स्तर के अनुरूप अवध शालाओं एवं कौशलों को सीखने में कठिनाई/परेशानी होती है,जिसके परिणामस्वरूप वे परीक्षाओं में तुलनात्मक रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। बच्चों द्वारा कक्षानुरूप अधिगम स्तर प्राप्त न कर पाने के कई कारण होते हैं, जैसे- पारिवारिक शैक्षिक स्थिति व वातावरण, आर्थिक स्थिति, शारीरिक या


मानसिक रूप से विशेष स्थिति, बच्चों के अनुरूप शिक्षण न होना, अध्यापकों का व्यवहार आदि । इनमें एक प्रमुख कारण है अध्यापकों का कठोर व्यवहार (Rigid Behaviour of Teacher ) व


बाल केन्द्रित शिक्षण विधियों का प्रयोग न करना।


प्रायः देखा गया है कि बच्चे शिक्षक के कठोर व्यवहार के कारण कक्षा में हो रहे पठन-पाठन में रुचि नहीं ले पाते। वे डरे-सहमे रहते हैं। अध्यापकों के व्यवहार में बच्चों के प्रति सहानुभूति न होने के कारण बच्चे अपनी समस्याएँ एवं जिज्ञासाएँ व्यक्त नहीं कर पाते हैं। पाठ न समझने पर भी समझ लेने की बात कह देते हैं। शिक्षक की उदासीनता एवं उसके कठोर व्यवहार के कारण बच्चों 

को विषयगत लर्निग आउटकम प्राप्त नहीं हो पाते हैं। अध्यापकों के तिरस्कार पूर्ण पारिवारिक कलह, ज्ञानेन्द्रिय विचारों अभिभावकों की शैक्षिक परिस्थितियों इत्यादि कारणों फलस्वरूप बच्चे सीखने में पिछड़ जाते हैं उनकी शैक्षिक सम्प्राप्ति के स्तर में कमी परिलक्षित हो है। 


ऐसी स्थिति में शिक्षक अपने कक्षा-शिक्षण में बच्चों की शैक्षिक सम्प्राप्ति स्तर में कमी को करने तथा उन्हें कक्षानुरूप लाने के लिए निम्नांकित बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित कर अपनी योजना बना सकते हैं -

. पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों पर आधारित प्रत्येक कक्षा (कक्षा 3 से 8 तक) के सभी विषय (प्रमुखतः हिन्दी, गणित, विज्ञान व अंग्रेजी) से संबंधित लर्निग आउटकम (विषय आधारित दक्षताएँ) को लक्ष्य बनाकर शिक्षण कार्य करें।


पठन-पाठन के दौरान कक्षा के सभी विद्यार्थियों का सतत अवलोकन करते हुए उनके कठिनाइयों का आकलन करना आवश्यक होगा, तभी ऐसे सभी बच्चों पर ध्यानाकर्षण की संभावना प्रबल होगी।


भावनात्मक विकास के लिए ध्यानाकर्षण की शुरुआत सत्र के प्रारम्भ में ही बच्चों की कठिनाई स्तर के अनुसार योजन बना कर व आवश्यक तैयारी करके करनी होगी। साथ ही बच्चों की संप्राप्ति को समझने लिए आवश्यक आकलन उपकरणों की व्यवस्था भी करनी होगी।

What does basic education mean? बेसिक शिक्षा का अर्थ

 एक बुनियादी शिक्षा शिक्षा का एक विकसित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य छात्रों को जिम्मेदार और सम्मानजनक वैश्विक नागरिक बनने का अवसर प्रदान करना है, ताकि उनके आर्थिक कल्याण और उनके परिवारों और समुदायों में योगदान करने के लिए, विभिन्न दृष्टिकोणों का पता लगाने और समझने के लिए, और  उत्पादक और संतोषजनक जीवन का आनंद लेने के लिए। 


 इसके अतिरिक्त, वाशिंगटन राज्य एक सार्वजनिक स्कूल प्रणाली प्रदान करने का इरादा रखता है जो सभी छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि को मजबूत करने पर बेहतर ध्यान केंद्रित करने के लिए विकसित करने और अनुकूलित करने में सक्षम है, जिसमें सभी छात्रों के लिए उच्च उम्मीदें शामिल हैं और सभी छात्रों को प्राप्त करने का अवसर मिलता है।  

व्यक्तिगत और शैक्षणिक सफलता-  इसके लिए, प्रत्येक स्कूल जिले के लक्ष्य, माता-पिता और समुदाय के सदस्यों की भागीदारी के साथ, प्रत्येक छात्र के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल विकसित करने के लिए अवसर प्रदान करना होगा:

 (1) समझ के साथ पढ़ें- प्रभावी ढंग से लिखें, और विभिन्न तरीकों और सेटिंग्स और विभिन्न प्रकार के दर्शकों के साथ सफलतापूर्वक संवाद करें।

 (२) गणित की मुख्य अवधारणाओं और सिद्धांतों को जानना और लागू करना;  सामाजिक, शारीरिक और जीवन विज्ञान;  नागरिक शास्त्र और इतिहास, विभिन्न संस्कृतियों और प्रतिनिधि सरकार में भागीदारी सहित;  भूगोल;  कला;  और स्वास्थ्य और फिटनेस।

 (3) विश्लेषणात्मक, तार्किक और रचनात्मक रूप से सोचें, और प्रौद्योगिकी साक्षरता और प्रवाह को एकीकृत करने के साथ-साथ अलग-अलग अनुभव और ज्ञान के कारण निर्णय लेने और समस्याओं को हल करने के लिए।

 (4) काम और वित्त के महत्व को समझें और प्रदर्शन, प्रयास और निर्णय सीधे भविष्य के कैरियर और शैक्षिक अवसरों को प्रभावित करते हैं।

बुनियादी शिक्षा का महत्व: अमर्त्य सेन

 राष्ट्रमंडल शिक्षा सम्मेलन, एडिनबर्ग में अमर्त्य सेन का पूरा भाषण 

 मंगलवार 28 अक्टूबर, 2003

शिक्षा पर इस राष्ट्रमंडल देशों की बैठक में बोलने का अवसर मिलना मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है।  मुझे इस बात की भी खुशी है कि आपने एडिनबर्ग को इस महत्वपूर्ण सम्मेलन के स्थान के रूप में चुना है।  

एडिनबर्ग के साथ अपने स्वयं के जुड़ाव पर मुझे बहुत गर्व है, यहाँ दो विश्वविद्यालयों के पूर्व छात्र होने के माध्यम से, एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और हेरियट-वॉट विश्वविद्यालय (मेरे कनेक्शन केवल मानद डिग्री के माध्यम से हैं, लेकिन वे यहाँ वास्तविक स्थिति से निकटता की भावना पैदा करते हैं) और  रॉयल सोसाइटी ऑफ़ एडिनबर्ग से संबंधित और इस महान शहर के साथ अन्य संघों के माध्यम से भी।

  इसलिए मैं आपको सुंदर एडिनबर्ग और इसके अद्भुत बौद्धिक समुदाय में स्वागत करता हूं, जिनमें से एक अकादमिक जिप्सी के रूप में मुझे खानाबदोश सदस्य होने का सौभाग्य प्राप्त है।  लेकिन इस स्वागत के लिए मुझे अपने विश्वास को जोड़ना होगा कि शिक्षा के सबसे बड़े और सबसे बड़े चैंपियन एडम ह्यूम की जगह एडम स्मिथ और डेविड ह्यूम की शिक्षा में अंतर को बंद करने के लिए एक बैठक के लिए इससे बेहतर जगह नहीं हो सकती है।


 शैक्षिक अंतराल को बंद करना, और शैक्षिक पहुंच, समावेश और उपलब्धि में भारी असमानताओं को दूर करना क्यों महत्वपूर्ण है?  एक कारण, दूसरों के बीच, दुनिया को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए और अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए इसका महत्व है।

  एचजी वेल्स ने अपने इतिहास की रूपरेखा में यह कहते हुए अतिशयोक्ति नहीं की: "मानव इतिहास शिक्षा और तबाही के बीच एक दौड़ बन जाता है। अगर हम शिक्षा की कक्षा से बाहर दुनिया के लोगों के विशाल वर्गों को छोड़ते रहें, तो हम बनाते हैं।"  दुनिया न केवल कम है, बल्कि कम सुरक्षित भी है।

 दुनिया की अनिश्चितता अब पहले से बीसवें दशक में एचजी वेल्स के समय की तुलना में अधिक थी

 दरअसल, 11 सितंबर 2001 की भयानक घटनाओं के बाद से - और उसके बाद दुनिया का क्या हुआ

 शारीरिक असुरक्षा की समस्याओं के बारे में बहुत जागरूक रहा है।  लेकिन मानव असुरक्षा कई अलग-अलग तरीकों से आती है - न कि केवल आतंकवाद और हिंसा के कारण।

  दरअसल, यहां तक ​​कि 11 सितंबर, 2001 के ही दिन, न्यूयॉर्क में अत्याचार सहित शारीरिक हिंसा से अधिक लोगों की मौत फ्रैम एड्स से हुई थी। 

 मानव असुरक्षा कई अलग-अलग तरीकों से विकसित हो सकती है, और शारीरिक हिंसा उनमें से एक है।  जबकि आतंकवाद और नरसंहार से लड़ना महत्वपूर्ण है (और इसमें भी, शिक्षा की बड़ी भूमिका हो सकती है, जैसा कि मैं वर्तमान में चर्चा करूंगा), हमें मानवीय असुरक्षा और इसकी विविध अभिव्यक्तियों की बहुवचन प्रकृति को भी पहचानना होगा।

 जैसा कि होता है, बुनियादी शिक्षा के कवरेज और प्रभावशीलता को चौड़ा करने में लगभग हर तरह की मानवीय असुरक्षा को कम करने में एक शक्तिशाली निवारक भूमिका हो सकती है, यह संक्षेप में विचार करने के लिए उपयोगी है कि शिक्षा में विसंगतियों और उपेक्षाओं को दूर करने के लिए अलग-अलग तरीके से मानव असुरक्षा को कम करने में योगदान दिया जा सकता है।  दुनिया।

 सबसे बुनियादी मुद्दा प्राथमिक तथ्य से संबंधित है, अशिक्षा और असंख्यता असुरक्षा के रूप हैं।

 अपने आप में।  पढ़ने या लिखने या बिंदु या संवाद करने में सक्षम न होना एक जबरदस्त अभाव है।  असुरक्षा का चरम मामला वंचितता की निश्चितता है, और थल भाग्य से बचने के किसी भी अवसर की अनुपस्थिति।  

सफल स्कूली शिक्षा का पहला और सबसे तात्कालिक योगदान इस बुनियादी अभाव - इस चरम असुरक्षा का प्रत्यक्ष रूप से कम होना है - जो वैश्विक आबादी के एक बड़े हिस्से के जीवन को बर्बाद करना जारी रखता है, कम से कम राष्ट्रमंडल में नहीं। 

 बुनियादी शिक्षा जो अंतर मानव जीवन को बना सकता है वह देखने में आसान है।  इसे आसानी से सराहा भी जाता है।

 यहां तक ​​कि सबसे गरीब परिवारों द्वारा भी।  व्यक्तिगत रूप से बोलना।  यह मेरे लिए अद्भुत रहा है कि मैं कितनी आसानी से देख पाता हूं

 शिक्षा के महत्व को सबसे गरीब और परिवारों से वंचित माना जाता है।

 भारत में प्राथमिक शिक्षा पर कुछ अध्ययनों से smerges कि हम वर्तमान में के माध्यम से कर रहे हैं

 "प्रतीति ट्रस्ट-ए ट्रस्ट का उद्देश्य बुनियादी शिक्षा और लिंग इक्विटी है जिसे मुझे स्थापित करने का विशेषाधिकार मिला है

 भारत और बांग्लादेश में मेरे नोबेल पुरस्कार राशि टीम 1998 का ​​उपयोग करके)।  जैसे हमारी पढ़ाई के नतीजे

 आओ, यह पता लगाना उल्लेखनीय है कि माता-पिता सबसे गरीब और सबसे उदास परिवारों से कैसे अधिक हैं।

 अपने बच्चों को बुनियादी शिक्षा देना, जिससे वे बिना किसी बाधा के बड़े हो सकें।

 वे - माता-पिता - जिन्होंने खुद को तोड़ दिया था।

 दरअसल, अक्सर किए गए दावों के विपरीत, हमने अपने बच्चों - बेटियों के साथ-साथ लड़कों को भी स्कूल भेजने के लिए माता-पिता द्वारा कोई बुनियादी अनिच्छा नहीं देखी है - स्कूल में किफायती, प्रभावी और सुरक्षित स्कूली शिक्षा के अवसर प्रदान किए गए हैं।  बेशक, माता-पिता के सपनों को आकार देने में कई बाधाएं हैं। 

 परिवारों की आर्थिक परिस्थितियां अक्सर उनके लिए बहुत कठिन होती हैं।

 अपने बच्चों को स्कूल भेजें, खासकर जब फीस का भुगतान करना हो।

 राष्ट्रमंडल भर में अप्रभावीता की बाधा को दृढ़ता से दूर किया जाना चाहिए - 

 वास्तव में, अक्सर किए गए दावों के विपरीत, हमने माता-पिता द्वारा अपने बच्चों की बेटियों के साथ-साथ लड़कों को स्कूल जाने के लिए कोई बुनियादी अनिच्छा नहीं दिखाई है, बशर्ते कि उनके पड़ोस में वास्तव में मौजूद किफायती, प्रभावी और सुरक्षित अवसर उपलब्ध हों, 2 देने में कई बाधाएं हैं।   माता-पिता के सपने हैं,  परिवारों की आर्थिक परिस्थितियों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बहुत मुश्किल कर दिया है, विशेष रूप से इस बात पर कि फीस का भुगतान कैसे किया जाए।

 बेशक, इस बात से अवगत हूं कि बाजार प्रणाली के कुछ चैंपियन स्कूल की फीस को बाजार में छोड़ना चाहते हैं।

 लेकिन यह एक गलती नहीं हो सकती है लेकिन सामाजिक दायित्व के लिए आवश्यक अवसर दिया जाना चाहिए

 सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा।  दरअसल, एडम स्मिथ, जिन्होंने शक्ति और पहुंच का क्लासिक विश्लेषण प्रदान किया।

 बहुत छोटी अवधि के लिए जनता को सुविधा मिल सकती है, प्रोत्साहित कर सकते हैं, और लगभग पर भी थोप सकते हैं।

 लोगों के पूरे शरीर, शिक्षा के सबसे आवश्यक भागों को प्राप्त करने की आवश्यकता, अन्य बाधाएं भी हैं।  

कभी-कभी स्कूलों में बहुत कम स्टाफ होता है (विकासशील देशों के कई प्राथमिक स्कूलों में केवल एक शिक्षक होता है), और माता-पिता अक्सर बच्चों की सुरक्षा के बारे में चिंतित होते हैं, खासकर लड़कियों के बच्चे (विशेष रूप से शिक्षक के असफल होने पर, जो अक्सर पर्याप्त होते हैं। 

 कई गरीब देशों में) अक्सर, माता-पिता की अनिच्छा का तर्कसंगत आधार होता है। अन्य बाधाएँ भी हैं।  बहुत गरीब परिवार अक्सर श्रम योगदान पर भरोसा करते हैं, यहां तक ​​कि सभी को ट्रॉम भी करते हैं

 बच्चों, और यह स्कूली शिक्षा की मांगों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है।  हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण अभ्यास है।

 कठिनाई से उत्पन्न, नियमन के साथ-साथ आर्थिक बनाकर भी हटाया जाना चाहिए।

 सभी को स्कूली शिक्षा के लाभ।  यह हमारे योगदान को समझने में दूसरे मुद्दे पर सहयोग है।

 मानव असुरक्षा को दूर करने में स्कूली शिक्षा।  लोगों को पाने में मदद करने के लिए बुनियादी शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है

 रोजगार और लाभकारी रोजगार।  हमेशा मौजूद रहते हुए यह आर्थिक संबंध, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

 तेजी से वैश्वीकरण की दुनिया जिसमें सख्त विनिर्देश के अनुसार गुणवत्ता नियंत्रण और उत्पादन हो सकता है।

 आश्चर्य नहीं कि कमी के लिए वैश्विक वाणिज्य के अवसरों के शीघ्र उपयोग के सभी मामले गरीबी ने व्यापक आधार पर बुनियादी शिक्षा में मदद की है।  उदाहरण के लिए, जापान में, पहले से ही 19 वीं शताब्दी के मध्य में इस कार्य को उल्लेखनीय स्पष्टता के साथ देखा गया था।  

मौलिक शिक्षा संहिता जारी-

 1872 में (1868 में मीजी बहाली के तुरंत बाद), यह सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक प्रतिबद्धता व्यक्त की।

 "साक्षर परिवार के साथ कोई समुदाय नहीं होना चाहिए, न ही एक निरक्षर व्यक्ति वाला परिवार। 

1910 तक शैक्षिक अंतराल के समापन जापान के तेजी से आर्थिक विकास का उल्लेखनीय इतिहास शुरू हुआ।  

 जापान लगभग पूरी तरह से पुनरावृत्त था, कम से कम युवाओं के लिए, और 1913 तक, हालांकि अभी भी बहुत गरीब है।

 ब्रिटेन या अमेरिका, जापान ब्रिटेन की तुलना में अधिक पुस्तकों का प्रकाशन कर रहे थे और दो बार से अधिक संयुक्त राज्य अमेरिका।  शिक्षा पर एकाग्रता, काफी हद तक, प्रकृति और गति का निर्धारण करती है।

यहां दो गलतियां हैं।  सबसे पहले, वर्गीकरण बहुत कच्चा है।  उदाहरण के लिए, भारत को हिंदू सभ्यता के बॉक्स में डाल दिया जाता है, भले ही इसके 130 मिलियन मुस्लिम (पूरे ब्रिटिश और फ्रांसीसी से अधिक) हों आबादी को एक साथ रखा गया है), भारत में दुनिया में तथाकथित "मुस्लिम देशों" की तुलना में कई अधिक मुस्लिम हैं।

 हंटिंगटन का वर्गीकरण केवल हिंदू संप्रदायों को आराम देता है। दूसरी गलती यह है कि किसी व्यक्ति का धर्म उसे या उसके यथोचित रूप से पर्याप्त रूप से परिभाषित करता है। लेकिन हर  इंसान की पहचान राष्ट्रीयता, भाषा, स्थान से संबंधित कई अलग-अलग घटक हैं।

 वर्ग, पेशा, इतिहास, धर्म, राजनीतिक विश्वास और इतने पर।  एक बांग्लादेशी मुसलमान न केवल मुस्लिम है, बल्कि बंगाली भी है और संभवतः बंगाली साहित्य और अन्य सांस्कृतिक उपलब्धियों की समृद्धि पर काफी गर्व है।

  इसी तरह, अरब दुनिया का इतिहास, जिसके साथ एक अरब बच्चा आज संभावित रूप से संबंधित है, न केवल इस्लाम की उपलब्धियां (जैसे वे महत्वपूर्ण हैं), बल्कि गणित, विज्ञान और साहित्य में महान धर्मनिरपेक्ष उपलब्धियां भी हैं जो अरब का हिस्सा और पार्सल हैं  इतिहास।  आज भी, जब एक वैज्ञानिक कहता है, इंपीरियल कॉलेज एक "एल्गोरिथ्म" का उपयोग करता है, तो वह अनजाने में नौवीं शताब्दी के अरब गणितज्ञ, अल-ख्वारिज़मी की नवीनता का जश्न मनाता है, जिसके नाम से एल्गोरिथ्म शब्द व्युत्पन्न हुआ है (शब्द 'बीजगणित'  "उनकी किताब से आता है, 'अल जाब वा-अल-मुकाबला")। 

 सिर्फ सभ्यताओं के धर्म-आधारित वर्गीकरण के संदर्भ में लोगों को परिभाषित करने के लिए खुद को राजनीतिक असुरक्षा के लिए योगदान दिया जा सकता है, क्योंकि इस दृष्टिकोण से लोगों को केवल "मुस्लिम दुनिया, 'या" पश्चिमी दुनिया,' या 'हिंदू' कहने के रूप में देखा जाता है  दुनिया। "या" बौद्ध दुनिया, "और इसी तरह। अन्य सभी चीजों को अनदेखा करने के लिए।"

 लोगों को वर्गीकृत करने में धर्म की तुलना में लोगों को संभावित रूप से जुझारू शिविरों में स्थापित करना है।  मैं व्यक्तिगत रूप से विश्वास करता हूं।

 विश्वास आधारित राज्य को कम करने के बजाय, यूके सरकार विस्तार करने में गलती करती है।

 स्कूलों, उदाहरण के लिए मुस्लिम स्कूलों को जोड़ना।  हिंदू स्कूलों और सिख स्कूलों में पहले से मौजूद ईसाई विशेषकर जब नए धार्मिक स्कूल बच्चों को तर्कपूर्ण तरीके से खेती करने का अवसर बहुत कम देते हैं।

 पसंद और उनकी पहचान के विभिन्न घटक (क्रमशः भाषा से संबंधित) तय करते हैं, साहित्य, धर्म, जातीयता, सांस्कृतिक इतिहास, वैज्ञानिक हितों, आदि पर ध्यान दिया जाना चाहिए।  वहाँ है न केवल हमारी सामान्य मानवता के महत्व पर चर्चा करने की आवश्यकता है, बल्कि इस तथ्य पर भी बल देना चाहिए कि हमारे विविधताएं कई अलग-अलग रूप ले सकती हैं और हमें यह देखने के लिए अपने तर्क का उपयोग करना होगा।

 हम कारण की पहुंच को कम करने के बजाय विस्तार करने वाले गैर-संप्रदाय और गैर-पारिशीय पाठ्यक्रम का महत्व अतिरंजित करना मुश्किल हो सकता है। 

 शेक्सपियर ने इस तथ्य के बारे में बात की थी कि "कुछ पुरुष महान पैदा होते हैं, कुछ महानता प्राप्त करते हैं, और कुछ उन पर बहुत जोर देते हैं। बच्चों की स्कूली शिक्षा में, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पास युवा पर छोटापन नहीं है।

 राष्ट्रमंडल के विचार में इस तरह के व्यापक दृष्टिकोण के पीछे दर्शन पर कुछ पेश करना है। राष्ट्रमंडल के प्रमुख के रूप में रानी ने आधी सदी पहले, उनके राज्याभिषेक के तुरंत बाद, 1953 में स्पष्टता और बल के साथ मूल परिप्रेक्ष्य रखा:


 कॉमनवेल्थ ।  मनुष्य की भावना के उच्चतम गुणों पर निर्मित एक पूरी तरह से नई अवधारणा है: मित्रता, निष्ठा और स्वतंत्रता और शांति की इच्छा।

 मित्रता और वफादारी को बढ़ावा देने में, और स्वतंत्रता और शांति के लिए प्रतिबद्धता की सुरक्षा में, बुनियादी शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

  इसके लिए आवश्यक है कि एक ओर, कि शिक्षा की सुविधाएँ सभी को उपलब्ध हों, और दूसरी ओर, कि बच्चों को कई अलग-अलग पृष्ठभूमि और दृष्टिकोणों से विचारों से अवगत कराया जाए और उन्हें खुद के लिए सोचने और तर्क करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

 बुनियादी शिक्षा केवल कौशल विकसित करने के लिए प्रशिक्षण के लिए एक व्यवस्था नहीं है (जैसा कि महत्वपूर्ण है), यह दुनिया की प्रकृति की मान्यता भी है, इसकी विविधता और समृद्धि के साथ, और स्वतंत्रता और तर्क के महत्व की सराहना भी है।  मित्रता उस समझ की आवश्यकता - वह दृष्टि कभी मजबूत नहीं रही।