समावेशी शिक्षा क्या है? समावेशी शिक्षा की विशेषताएं एवं रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन
कक्षा में बच्चों के साथ कार्य करते हुए आपने अनुभव किया होगा कि
हर बच्चा स्वयं में कोई न कोई विशिष्टता एवं विविधता लिए होता है । उनके रुचि और रुझानों में भी यह विविधता पाई जाती है।
यह विविधता काफी हद तक उनके परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण या शारीरिक आकार प्रकार से प्रभावित होती है। बच्चों में इस विविधता के कारण कुछ खास श्रेणियाँ उभरकर आती हैं। जैसे- तेज/धीमी गति से सीखने वाले, शारीरिक कारणों से सीखने में बाधा अनुभव करने वाले बच्चे, परिवेशीय व लैंगिक विविधता वाले बच्चे।
इनमें कुछ और श्रेणियाँ भी जुड़ सकती हैं। शिक्षक के रूप में इतनी विविधता से भरे बच्चों को हमें कक्षा के भीतर सीखने का समावेशी वातावरण देना होता है।
समावेशी शिक्षा अर्थात् ऐसी शिक्षा जो सबके लिए हो। विद्यालय में विविधताओं से भरे सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ एक कक्षा में शिक्षा देना ही समावेशी शिक्षा है।
समावेशी शिक्षा से तात्पर्य है वह शिक्षा जिसमें किसी एक विशेष व्यक्ति श्रेणी पर निर्भर न होकर सभी को शामिल किया जाता है ।
"समावेशन शब्द का अपने-आप में कुछ खास अर्थ नहीं होता है। समावेशन के चारों ओर जो वैचारिक, दार्शनिक, सामाजिक और शैक्षिक ढाँचा होता है वही समावेशन को परिभाषित करता है। समावेशन की प्रक्रिया में बच्चे को न केवल लोकतंत्र की भागीदारी के लिए सक्षम बनाया जा सकता है. बल्कि लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए दूसरों के साथ रिश्ते बनाना, अन्तक्रिया करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है।
(एन0सी0एफ0 2005, पृ0सं0 96)
समावेशी शिक्षा की विशेषताएं
यह विद्यालय में नामांकित सभी बच्चों के लिए है। बच्चों के शारीरिक मानसिक एवं बौद्धिक स्तर का खासतौर से ध्यान रखा जाता है।
ऐसी शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है जिनमें सभी बच्चे अपने स्तर और क्षमता के अनुसार शामिल होते हैं। बच्चों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता है।
. समावेशी, शिक्षा, कमजोर, प्रतिभाशाली, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच तथा दिव्यांगता में कोई भेद-भाव नहीं करती।
सभी बच्चों को सम्मान और अपनेपन की संस्कृति के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है। समावेशी शिक्षा "एकीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें दिव्यांग बच्चों को भी
सामान्य बच्चों की तरह ही शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है। शिक्षकों को अपनी कक्षा में सहयोग की भावना के विकास हेतु निम्नलिखित तरीकों का उपयोग करना चाहिए जिससे समावेशी महील का सृजन हो सके।
• खेलों का आयोजन
समस्या समाधान की प्रक्रिया में सभी बच्चों को शामिल करना।
किताबों व गीतों का आदान-प्रदान।
बच्चों का दल (Team) बनाना।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधताओं को स्वीकार करने नकी एक मनोवृत्ति है जिसके अन्तर्गत विविध क्षमताओं वाले बच्चे सामान्य शिक्षा प्रणाली में एक साथ सीखते हैं।
जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किये जाने वाले भेदभाव का निषेध करता है, उसी प्रकार समावेशी शिक्षा बच्चों को विभिन्न ज्ञानेन्द्रिय, शारीरिक, बौद्धिक. सामाजिक, आर्थिक आदि कारणों से उत्पन्न किसी भी प्रकार की विविधता के बावजूद स्वतंत्र अधिगमकर्ता के रूप में देखती है।
समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का समर्थन करती है।
समावेशी शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसमें शिक्षक केवल अपने शिक्षण कार्य को ही नहीं करते हैं बल्कि बच्चों को कक्षा में उचित ढंग से समायोजन करते हुए और उनके लिए विविधतापूर्ण गतिविधियों का निर्माण भी करते हैं।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि समावेशन की नीति को प्रत्येक विद्यालय और सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था में किये जाने की जरूरत है।
रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन
विद्यालय स्तर पर वर्ष भर शैक्षिक/सह शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। आयोजनों की आख्याओं के क्रमवार संकलन को दस्तावेजीकरण कहा जाता है। कार्यक्रमों के दस्तावेजीकरण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है
क्यों किया गया अर्थात इसके आयोजन का उद्देश्य क्या था?
कार्यक्रम में क्या-क्या हुआ?
कार्यक्रम की प्रमुख बातें क्या थी?
कब किया गया?
किस क्रम में किया गया?
कैसे हुआ अर्थात कौन सी प्रक्रिया अपनाई गई?
भविष्य में बेहतर आयोजन के लिए किस प्रकार की कार्ययोजना बनानी होगी? रियोटिंग- उपयुक्त रिपोटिंग किसी भी कार्यक्रम के आयोजन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह न केवल विभागीय सूचना मात्र होती है बल्कि हमारे द्वारा किए गए क्रियाकलापों का क्रमबद्ध एवं वैध दस्तावेज होती है जो किसी भी स्तर पर किए गए कार्य की स्पष्ट झलक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष को पाठक तक पहुचाती है।
रिपोर्टिंग के सम्बंध में ध्यान देने हेतु मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं
• कार्यक्रम के उद्देश्य व निष्कर्ष को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाए। भाषा सरल, सहज व सुस्पष्ट हो।
कम से कम शब्दों में पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा स्पष्ट करता हो। प्रमुख बिन्दुओं तथा उल्लेखनीय प्रसंगों को प्रमुखता से उभारा जाए।
. अनावश्यक प्रसंगों का उल्लेख करने से बचा जाए।
रिपोर्ट में वैध प्रमाणों जैसे फोटो/वीडियो/ समाचार पत्रों की कटिंग दिया जाए।
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