सीखने के प्रतिफल, शिक्षण-विधियाँ, समावेशी शिक्षा में आ शिक्षकों की भूमिका
रा.शै.अ.प्र.प. ने सीखने के प्रतिफल को विकसित किया है जो पठन सामग्री को रटकर याद करने पर आधारित मूल्यांकन से दूर हटाने के लिए बनाया गया है।
योग्यता (सीखने के प्रतिफल) आधारित मूल्यांकन पर जोर देकर, शिक्षकों और पूरी व्यवस्था को यह समझने में मदद की गई है कि बच्चे ज्ञान, कौशल और सामाजिक-व्यक्तिगत गुणों और दृष्टिकोणों में परिवर्तन के मामले में वर्ष के दौरान एक विशेष कक्षा में क्या हासिल करेंगे।
सीखने के प्रतिफल ज्ञान और कौशल से परिपूर्ण ऐसे कथन हैं जिन्हें बच्चों को एक विशेष कक्षा या पाठ्यक्रम के अंत तक प्राप्त करने की आवश्यकता है और यह अधिगम संवर्धन की उन शिक्षणशास्त्रीय विधियों से समर्थित हैं जिनका क्रियान्वयन शिक्षकों द्वारा करने की आवश्यकता है।
ये कथन प्रक्रिया आधारित हैं और समग्र विकास के पैमाने पर बच्चे की प्रगति का आकलन करने के लिए गुणात्मक या मात्रात्मक दोनों तरीके से जाँच योग्य बिंदु प्रदान करते हैं। पर्यावरणीय अध्ययन के लिए सीखने के दो प्रतिफल नीचे दिए गए हैं।
. विद्यार्थी विभिन्न आयुवर्ग के लोगों, जानवरों और पक्षियों में भोजन तथा पानी की आवश्यकता, भोजन और पानी की उपलब्धता तथा घर एवं आस-पास के परिवेश में पानी के उपयोग का वर्णन करता है।
• विद्यार्थी मौखिक/लिखित/अन्य तरीकों से परिवार के सदस्यों की भूमिका, परिवार के प्रभावों (लक्षणों/विशेषताओं/आदतों/प्रथाओं) और एक साथ रहने की आवश्यकता का मौखिक/लिखित या किसी अन्य माध्यम से वर्णन करता है।
उपर्युक्त सीखने के प्रतिफलों को प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से या जोड़े अथवा समूहों में काम करने के अवसर प्रदान किए जाते हैं और उन्हें आस-पास के परिवेश का अवलोकन और अन्वेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, उन्हें मौखिक लिखित चित्र/संकेतों में अपने अनुभव दर्ज एवं व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है।
बच्चों को बड़ों के साथ चर्चा करने और विभिन्न स्थानों पर जाने, उनकी पसंद के विषय पर उनसे जानकारी एकत्र करने और निष्कर्षों पर समूहों में चर्चा करने की अनुमति देने की आवश्यकता है।
आरंभिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल सभी बच्चों, जिसमें विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे (सी.डब्ल्यू.एस.एन.) और वंचित समूहों से संबंधित बच्चे भी सम्मिलित हैं, को प्रभावी रूप से सीखने के अवसर प्रदान करने के लिए हैं।
इन्हें विभिन्न पाठ्यक्रम क्षेत्रों, जैसे—पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और भाषा के लिए विकसित किया गया है।
सीखने के प्रतिफल सभी बच्चों, में विशेष आवश्यकता वाले बच्चे (सी.डब्ल्यू.एस.एन.) भी शामिल हैं, की शिक्षणशास्त्रीय प्रक्रियाओं और पाठ्यचर्या संबंधी अपेक्षाओं से जुड़े हैं।
वंचित समूहों से संबंधित बच्चों के प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं।
• अधिगम प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें और उन्हें अन्य बच्चों की तरह प्रगति करने में मदद करें। बच्चों की आपस में तुलना करने से बचें। • व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यचर्या और सीखने के परिवेश में बदलाव करना।
. विभिन्न पठन क्षेत्रों में अनुकूलित गतिविधियों का प्रावधान
• उम्र और सीखने के स्तरों के अनुरूप सुलभ पाठ और सामग्री। कक्षाओं का उपयुक्त प्रबंधन, जैसे—शोर, चकाचौंध आदि का प्रबंधन। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.), वीडियो या डिजिटल स्वरूप का उपयोग करके अतिरिक्त सहायता का प्रावधान।
गतिशीलता सहायक यंत्र (व्हील चेयर, बैसाखी, सफ़ेद बेंत), श्रवण-सहायक, ऑप्टिकल या गैर-ऑप्टिकल सहायता, शैक्षिक सहायता (टेलर फ्रेम, एबेकस आदि)। • अन्य बच्चों को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की विशेषताओं और कमज़ोरियों के प्रति संवेदनशील बनाना।
• आकलन के सफल समापन के लिए उपयुक्त विधि और अतिरिक्त समय का चयन करना। घरेलू भाषा के लिए सम्मान और सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश (जैसे-परंपराएँ और रीतिगत प्रथाएँ आदि) से जुड़वा।
सभी बच्चों के लिए सीखने के प्रतिफल प्राप्त करने हेतु शिक्षण-विधियाँ समावेशी शिक्षा-शिक्षकों की भूमिका :
शिक्षा प्रक्रिया का वह एक हिस्सा जो विशेष आवश्यकता वाले और हाशिए पर रह रहे अन्य बच्चों को समावेशित करता है, के लिए एक महत्वपूर्ण वैचारिक विश्लेषण की आवश्यकता है कि क्यों वर्तमान में उपलब्ध नियमित मुख्यधारा प्रणाली, विद्यालयी-उम्र के सभी बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने में सफल नहीं हो रही है।
इसके लिए आवश्यकता है कि स्थानीय संदर्भों में मौजूदा संसाधनों एवं नवीन प्रथाओं की पहचान, पहुँच, सहभागिता एवं अधिगम धातुओं की जाँच भी की जानी चाहिए।
नीचे दी गई कहानी 'द एनिमल स्कूल' (जानवरों का विद्यालय) पढ़ें। कहानी पढ़ने के बाद दिए गए प्रत्येक प्रश्न पर अपने विचार पूरे समूह के साथ साझा करें-
शिक्षकों को यह याद रखना चाहिए कि प्रभावी और समावेशी शिक्षण सभी बच्चों के लिए अच्छा है। इससे बच्चों की विलक्षण विशेषताओं/गुणों और कमज़ोरियों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है और इस प्रकार उनकी व्यक्तिगत अधिगम की आवश्यकताओं को भी पूरा किया जाता है।
सीखने के प्रतिफलों को प्राप्त करने के लिए सभी विद्यार्थियों को अधिगम के प्रभावी अवसर प्रदान करने होंगे, जिसके लिए विशिष्टता से समावेशिता तक एक नाटकीय बदलाव की आवश्यकता है। यदि हमें विद्यालय में सफलता (एन.सी.एफ. 2005) हासिल करनी है तो न केवल सांस्कृतिक विविधता बल्कि विविध सामाजिक तथा आर्थिक पृष्ठभूमि वाले और शारीरिक, मनोवैज्ञानिक एवं बौद्धिक विशेषताओं में भिन्नता वाले बच्चों को भी ध्यान में रखना होगा।
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